Munawwar Rana
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Mujhko gahraayi me mitti ki uttar jana hai
Mujhko gahraayi me mitti ki uttar jana hai
Zindgi baandh le Saaman-E-Safar jana hai
Ghar ki dehleez pe raushan hain wo bujhti aankhein
Mujhko mat rok mujhe laut ke ghar jana hai
Mai wo mele me bhatakta ik baccha hoon
Jiske Maa- Baap ko rote hue mar jana hai
Zindgi taash ki patton ki tarah hai meri
Aur patton ko baharhaal bikhar jana hai
Ek benaam se rishte ki tamnna lekar
Is kabootar ko kisi chhat pe utar jana hai
Munawwar Rana
<—-Tujh me sailaabe-bala thodi jawaani kam Jise dushman samjhta hoon wohi apna —–>
Collection of Munawwar Rana Ghazals and SHayari
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मुझको गहराई में मिट्टी की उतर जाना है
मुझको गहराई में मिट्टी की उतर जाना है
ज़िंदगी बाँध ले सामाने-सफ़र जाना है
घर की दहलीज़ पे रौशन हैं वो बुझती आँखें
मुझको मत रोक मुझे लौट के घर जाना है
मैं वो मेले में भटकता हुआ इक बच्चा हूँ
जिसके माँ-बाप को रोते हुए मर जाना है
ज़िंदगी ताश के पत्तों की तरह है मेरी
और पत्तों को बहरहाल बिखर जाना है
एक बेनाम से रिश्ते की तमन्ना लेकर
इस कबूतर को किसी छत पे उतर जाना है
मुनव्वर राना
<—-तुझ में सैलाबे-बला थोड़ी जवानी कम है जिसे दुश्मन समझता हूँ वही अपना निकलता है—–>
मुनव्वर राना कि ग़ज़लों और शायरियों का संग्रह
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