Jigar Moradabadi
जिगर मुरादाबादी कि एक बहुत हि बेहतरीन और बड़ी ग़ज़ल। नेट पर यह ग़ज़ल हर जगह अधुरी है, पर हम अपने पाठको के लिये सम्पूर्ण ग़ज़ल एक जगह दे रहे है।
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Ik lafz-e-mohabbat ka adana sa fasana hai
Ik lafz-e-mohabbat ka adana sa fasana hai
simate to dil-e-ashiq phaile to zamana hai
Ye kis ka tasavvur hai ye kis ka fasana hai
Jo ashk hai aankhon mein tasbih ka dana hai
Hum ishq ke maron ka itna hi fasana hai
Rone ko nahi koi hansane ko zamana hai
Wo aur vafa-dushman manenge na mana hai
Sab dil ke shararat hai aankhon ka bahana hai
Kya husn ne samajha hai kya ishq ne jana hai
Hum khak-nashinon ke thokar mein zamana hai
Wo husn-o-jamal un ka ye ishq-o-shabab apana
Jine ke tamanna hai marana ka zamana hai
Ya wo the khafa hum se ya hum the khafa un se
Kal un ka zamana tha aj apana zamana hai
Ashkon ke tabassum mein aahon ke tarannum mein
masoom mohabbat ka masoom fasana hai
Aankhon mein nami si hai chup-chup se wo baithe hain
Nazuk si nigahon mein nazuk sa fasana hai
Hai ishq-e-junun-pesha han ishq-e-junun-pesha
Aaj ek sitamagar ko hans hans ke rulana hai
Ye ishq nahi aasan itna to samajh lije
Ek aag ka dariya hai aur dub ke jana hai
Kya shart-e-mohabbat hai kya shart-e-zamana hai
Aawaz bhi zakhmi hai aur geet bhi gana hai
Us paar utarne ki ummeed bahut kam hai
Kishti bhi purani hai toofan ko bhi aana hai
Samjhe ya na samjhe wo andaaz mohabbat ke
ek shakhs ko aankho se haal-e-dil sunana hai
Bholi si ada koi phir ishq ki zid par hai
Phir aag ka dariya hai aur doob ke jana hai
Dil sang-e-malaamat ka har chand nishaana hai
Dil phir bhi mera dil hai dil hi to zamana hai
Aansu to bahot se hain aankhon mein ‘jigar’ lekin
Bindh jaye so moti hai rah jaye so dana hai
Jigar Moradabadi
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इक लफ्ज़-ए-मोहब्बत का अदना सा फ़साना है
इक लफ्ज़-ए-मोहब्बत का अदना सा फ़साना है
सिमटे तो दिले आशिक फैले तो ज़माना है
ये किस का तसव्वुर है ये किस का फ़साना है
जो अश्क है आखों में तस्बीह का दाना है
हम इश्क में मारों का बस इतना फ़साना है
रोने को नहीं कोई हसने को ज़माना है
वो और वफ़ा दुश्मन मानेंगे न माना है
सब दिल कि शरारत है आंखो क बहाना है
क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क ने जाना है
हम खाक नशीनो की ठोकर में ज़माना है
वो हुस्न-ओ-जमाल उन का ये इश्क़-ओ-शबाब अपना
जीने की तमन्ना है मरने क ज़माना है
या वो थे खफा हमसे या हम थे खफा उनसे
कल उनका ज़माना था आज अपना ज़माना है
अश्कों के तबस्सुम में आहों के तरन्नुम में
मासूम मोहब्बत क मासुम फ़साना है
आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं
नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है
है इश्क़-ए-जुनून-पेशा हाँ इश्क़-ए -जुनून-पेशा
आज एक सितमगर को हंस हंस के रुलाना है
ये इश्क नहीं आसान बस इतना समझ लीजे
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है
क्या शर्त-ए-मोहब्बत है क्या शर्त-ए-ज़माना है
आवाज़ भी ज़ख़्मी है और गीत भी गाना है
उस पार उतरने की उम्मीद बहुत कम है
किश्ती भी पुरानी है तूफ़ा को भी आना है
समझे या ना समझे वो अंदाज़ मोहब्बत के
एक शक्स को आँखों से हाल-ए-दिल सुनाना है
भोली सी अदा कोई फिर इश्क की ज़िद पर है
फिर आग का दरिया है और डूब के जाना है
दिल संग-ए-मलामत का हर चन्द निशाना है
दिल फिर भी मेरा दिल है दिल ही तो जमाना है
आंसू तो बहुत से हैं आँखों में जिगर लेकिन
बिंध जाए वो मोती है रह जाए सो दाना है
जिगर मुरादाबादी
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Er. Maqbool Akram Siddiqui says
bhut umda