Ahmad Faraz (अहमद फ़राज़)
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Har ek baat na kyon zehar si humari lage
Har ek baat na kyon zehar si humari lage
Ki hum ko dast-e zamana se zakhm kaari lage
Udaasiyan hon musalsal toh dil nahin rota
Kabhi kabhi ho toh ye kaifiyat bhi pyaari lage
Bazaahir ek hi shab hai firaaq-e yaar magar
Koi guzaarne baithe toh umar saari lage
Ilaaj is dil-e dard-aashna ka kya kijiye
Ki teer ban ke jise harf-e ghumgusaari lage
Humare paas bhi baitho bas itna chaahte hain
Humare saath tabiyat agar tumhari lage
‘Faraz’ tere ghum ka khyaal hai warna
Ye kya zaroor woh soorat sabhi ko pyaari lage
Ahmad Faraz
<—–Khamosh ho kyon, daad-e-jafa kyon nahi dete Zakhm ko phool to sar sar ko saba kahte hain—>
Collection of Ghazals and Lyrics of Ahmad Faraz
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हर एक बात न क्यों ज़हर सी हमारी लगे
हर एक बात न क्यों ज़हर सी हमारी लगे
कि हम को दस्ते-ज़माना* से जख्म* कारी* लगे
उदासीयाँ हो मुसलसल* तो दिल नहीं रोता
कभी-कभी हो तो यह कैफीयत* भी प्यारी लगे
बज़ाहिर* एक ही शब* है फराके-यार* मगर
कोई गुज़ारने बैठे तो उमर सारी लगे
इलाज इस दर्दे-दिल-आश्ना* का क्या कीजे
कि तीर बन के जिसे हर्फ़े- ग़मगुसारी* लगे
हमारे पास भी बैठो बस इतना चाहते हैं
हमारे साथ तबियत अगर तुमहारी लगे
‘फराज़’ तेरे जुनूँ* का खयाल है वरना
यह क्या जरूर की वो सूरत सभी को प्यारी लगे
दस्ते-ज़माना = संसार के हाथों
जख्म = घाव
कारी = गहरे
मुसलसल = लगातार
कैफीयत = दशा
बज़ाहिर = प्रत्यक्षत:
शब = रात्रि
फराके-यार = प्रिय की जुदाई
दर्दे-दिल-आश्ना = दर्द को जानने वाले दिल का
हर्फ़े- ग़मगुसारी = सहानुभूति के शब्द
जुनूँ = उन्माद
अहमद फ़राज़
<—–खामोश हो क्यों, दादे-जफा क्यों नहीं देते जख्म को फूल तो सर-सर को सबा कहते है—>
अहमद फ़राज़ की ग़ज़लों और गीतों का संग्रह
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