Afsar Merathi (अफसर मेरठी)
Afsar Merathi Shayari Part – 1
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1
खुदा तौफीक देता है उन्हें जो यह समझते हैं
कि खुद अपने ही हाथों से बना करती हैं तकदीरें
(तौफीक = दैव योग से ऐसे कारण पैदा हो जाना जिससे अभिलषित वस्तु की प्राप्ति में सुगमता हो, ईश्वर की कृपा, सामर्थ्य, शक्ति , योग्यता, पात्रता, अहलियत)
Khuda taufik deta hai unhein jo yah samjhte hian
Ki khud apne hi haathon se bana karti hai taqdirein
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2
खेलना जब उनको तुफानों से आता ही न था
फिर वह कश्ती के हमारे नाखुदा क्यों हो गये
(नाखुदा = मल्लाह, नाविक)
Khelna jab unko tufaano se aata hi na tha
Phir wah kashti ke hamaare naakhuda kyon ho gaye
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3
जो गम हद से जियादा हो, खुशी नजदीक होती है
चमकते हैं सितारे रात जब तारीक होती है
(तारीक = अंधेरी)
Jo gham had se jiyaada ho, khushi nazdik hoti hai
Chamkte hain sitaare raat jab taareeq hoti hai
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4
लिल्लाह! यह तुम देखने वालों से न पूछो
कि क्या चीज हो तुम देखने वालों की नजर में
(लिल्लाह = ईश्वर के लिए, ईश्वर के नाम पर)
Lillaah! yah tum dekhne waalon se na poochho
Ki kya cheez ho tum dekhne waalon ki nazar mein
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5
तुमको पा लेने में वह बेताब कैफियत कहाँ
जिन्दगी वह है जो तेरी जुस्तजू में कट जाय
(बेताब कैफियत = बेकरारी का आलम; जुस्तजू = तलाश, खोज)
Tumko paa lene mein wah betaab kaifiyat kahan
Zindagi wah hai jo teri justjoo mein kat jaaye
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6
दीखावे के हैं सब ये दुनिया के मेले
भरी बज्म में हम रहे हैं अकेले
Deekhaave ke hain sab ye duniya ke mele
Bhari bajm mein ham rahe hain akele
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7
मजहब क्या है, राहें मुख्तलिफ हैं एक मंजिल की
मंजिल क्या है, जहाँ सब कुछ है मगर राहें नहीं हैं
(मुख्तलिफ = पृथक-पृथक, अलग-अलग)
Majhab kya hai, raahein mukhtlif hain ek manzil ki
Manzil kya hai, jahan sab kuchh hai magar raahein nahin hain
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8
महवे-तलाशे-राहत तू यह भी जानता है
कहते हैं जिसको राहत वह गम की इन्तिहा है
(महवे-तलाशे-राहत = सुख-चैन की तलाश में लीन)
Mahve-talaashe-raahat tu yah bhi jaanta hai
Kehate hain jisko raahat wah gham ki intiha hai
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9
मौत है वह राज जो आखिर खुलेगा एक दिन
जिन्दगी है वह मुअम्मा, कोई जिसका हल नहीं
(मुअम्मा = प्रतियोगिता, पहेली)
Maut hai wah raaz jo aakhir khulega ek din
Zindagi hai wah muamma, koi hal jiska nahin
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10
यह बज्मे-फलक इससे होगी न सूनी
अगर टूट जायेंगे दो – चार तारे
(बज्मे-फलक = आकाश की महफिल यानी तारों की महफिल)
Yah bajme-phalak isse hogi na sooni
Agar toot jaayenge do-chaar taare
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