आचार्य चाणक्य की नीतियों में श्रेष्ठ जीवन के कई सूत्र छिपे हुए हैं, जो आज भी कारगर हैं। इन नीतियों का पालन करने पर वर्तमान की कई परेशानियों से बचा जा सकता है और साथ ही, सुखद भविष्य की नींव रखी जा सकती है। यहां जानिए चाणक्य की एक ऐसी नीति, जिसमें 3 व्यक्ति और 1 पक्षी के विषय में बताया है जो ऐसे काम भी कर सकते हैं, जिनके विषय में हम सोच भी नहीं सकते हैं…
आचार्य कहते हैं-
कवय: किं न पश्यन्ति किं न कुर्वन्ति योषित:।
मद्यपा किं न जल्पन्ति किं न खादन्ति वायसा:।।
कवि कुछ भी सोच सकते है
इस श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि कवि की सोच कहीं भी पहुंच सकती है। कवि सब कुछ देख सकता है। एक कहावत भी है जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि। यानी जहां सूर्य की रोशनी भी नहीं पहुंच सकती है, वहां कवि की सोच पहुंच जाती है। कवि हमारी सोच से भी काफी आगे की बात अपनी कविताओं में लिख सकते हैं।
स्त्रियां बिना सोचे कर सकती हैं कोई भी काम
चाणक्य कहते हैं कि पुरुषों की तुलना में अधिकतर स्त्रियां अधिक दुस्साहसी होती हैं। सामान्यत: पुरुष कोई भी जोखिम भरा काम करने से पहले कई बार सोचते हैं, जबकि अधिकांश स्त्रियां दुस्साहस के कारण कुछ भी काम बिना सोचे-समझे ही कर बैठती हैं। इस दुस्साहस के कारण स्त्रियों को कई बार परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। दुस्साहस भी एक बुराई है और इससे बचने का प्रयास करना चाहिए।
शराबी कुछ भी बक सकते हैं
नशा, किसी भी इंसान की सोचने-समझने की शक्ति को खत्म कर देता है। जब तक व्यक्ति नशे की हालत में होता है, वह कुछ भी सोच नहीं पाता है। सही-गलत पहचान नहीं पाता है। आमतौर पर जब शराब का नशा हद से अधिक हो जाता है तो नशा करने वाला व्यक्ति सारी मर्यादाएं भूल जाता है और उसके मन में जो आता है, वह बक देता है, बोल देता है। नशे की हालत में व्यक्ति को मारने पर भी उसकी बोली बंद नहीं होती है। हम सोच भी नहीं सकते, ऐसे काम नशे की हालत मे व्यक्ति कर सकता है।
कौआं खा सकता है कुछ भी
इस नीति के अंत में चाणक्य ने बताया है कि कौएं में सोचने-समझने की प्रवृत्ति नहीं होती है। कौआं यह समझ नहीं पाता है कि उसे क्या खाना है और क्या नहीं। यह पक्षी कुछ भी चीज खा लेता है। इस पक्षी में समझ की भी कमी होती है। कौएं के स्वभाव से यह सीख सकते हैं कि खान-पान के संबंध में विशेष ध्यान रखना चाहिए। जो चीजें नुकसानदायक हैं, अशुद्ध हैं, उन्हें खाने से बचना चाहिए।
कौन थे आचार्य चाणक्य
भारत के इतिहास में आचार्य चाणक्य का महत्वपूर्ण स्थान है। एक समय जब भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था और विदेशी शासक सिकंदर भारत पर आक्रमण करने के लिए भारतीय सीमा तक आ पहुंचा था, तब चाणक्य ने अपनी नीतियों से भारत की रक्षा की थी। चाणक्य ने अपने प्रयासों और अपनी नीतियों के बल पर एक सामान्य बालक चंद्रगुप्त को भारत का सम्राट बनाया जो आगे चलकर चंद्रगुप्त मौर्य के नाम से प्रसिद्ध हुए और अखंड भारत का निर्माण किया।
चाणक्य के काल में पाटलीपुत्र (वर्तमान में पटना) बहुत शक्तिशाली राज्य मगध की राजधानी था। उस समय नंदवंश का साम्राज्य था और राजा था धनानंद। कुछ लोग इस राजा का नाम महानंद भी बताते हैं। एक बार महानंद ने भरी सभा में चाणक्य का अपमान किया था और इसी अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए आचार्य ने चंद्रगुप्त को युद्धकला में पारंपत किया। चंद्रगुप्त की मदद से चाणक्य ने मगध पर आक्रमण किया और महानंद को पराजित किया।
आचार्य चाणक्य की नीतियां आज भी हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। जो भी व्यक्ति नीतियों का पालन करता है, उसे जीवन में सभी सुख-सुविधाएं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
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