हिंदू धर्म में प्राचीन काल से ही पुण्य और पाप कर्मों के संबंध में कई आवश्यक नियम प्रचलित हैं। इन्हीं के आधार पर हमारे कर्मों को पाप और पुण्य की श्रेणी में विभाजित किया जाता है। आचार्य चाणक्य ने कुछ ऐसे कार्य बताए हैं जिन्हें पाप की श्रेणी में रखा जाता है।
चाणक्य कहते हैं-
अनल विप्र गुरु धेनु पुनि, कन्या कुंवारी देत।
बालक के अरु वृद्ध के, पग न लगावहु येत।।
अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गौ, कुमारी कन्या, वृद्ध और बालक, इन सातों को कभी भी हमारे पैर नहीं लगना चाहिए।
आचार्य चाणक्य के अनुसार अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गाय, अविवाहित कन्या, बुजूर्ग लोग, छोटे बच्चे इन्हें किसी भी व्यक्ति का पैर लगता है तो उसे पाप का भागी होना पड़ता है। ऐसे लोगों के पुण्य कम हो जाते हैं और उन्हें दोष लगता है। शास्त्रों के अनुसार अग्नि को पवित्र और देवता माना जाता है। इसी वजह से अग्नि को पैर लगना अशुभ माना गया है। इसी प्रकार गुरु, ब्राह्मण और गाय को भी पवित्र और पूजनीय माना जाता है। इन्हें पैर लगने से इनका अपमान माना जाता है। इनके साथ ही कुंवारी कन्या, वृद्ध लोग और छोटे बच्चे भी सम्मान के ही पात्र होते हैं। अत: इन्हें भी हमारा पैर नहीं लगना चाहिए।
किसी भी परिस्थिति में किसी का भी अपमान करना अनुचित ही माना जाता है। इन सात लोगों को जाने-अनजाने हमारा पैर लगना या ठोकर लगना मूर्खता का ही परिचय है। अत: हमेशा ही ऐसा प्रयास करना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति का अनादर हमारे द्वारा न हो। यदि भूलवश ऐसा हो जाता है तो इसके लिए तुरंत ही क्षमा याचना करना चाहिए।
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