अपने आपको सिकंदर के सैनिकों का वंशज होने का दावा करने वाले यहां के लोगों की भाषा भी हिमाचल में बोली जाने वाली भाषा से बहुत अलग है। ऐसा कहा जाता है कि मलाणा के लोग जो भाषा बोलते हैं वह ग्रीक में बोली जाने वाली भाषा से काफी हद तक मेल खाती है। यहां के लोगों की शक्ल-सूरत भी ग्रीक देश के लोगों की तरह ही है। इस बात को कम ही लोग जानते हैं कि विश्व में सबसे अच्छा चरस हिमाचल की मलाणा की पार्वती घाटी में तैयार होता है। यहां चरस को काला सोना कहा जाता है। इस इलाके की खास बात यह है कि चरस के अलावा दूसरी फसल नहीं होती। चारों ओर से ऊंची पहाड़ियों से घिरा और मलाणा नदी के मुहाने पर बसा मलाणा हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में समुद्र तल से 8640 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
सबसे पुरानी लोकतांत्रिक व्यवस्था
कहा जाता है कि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के मलाणा में विश्व की सबसे पुरानी लोकतांत्रिक व्यवस्था अभी भी पल रही है। भारत का अंग होते हुए भी मलाणा की अपनी एक अलग न्याय और कार्यपालिका है। भारत सरकार के कानून यहां नहीं चलते। इस गांव की अपनी अलग संसद है, जिसके दो सदन हैं पहली ज्येष्ठांग (ऊपरी सदन) और कनिष्ठांग (निचला सदन)। ज्येष्ठांग में कुल 11 सदस्य हैं। जिनमें तीन सदस्य कारदार, गुर व पुजारी स्थायी सदस्य होते हैं। शेष आठ सदस्यों को गांववासी मतदान द्वारा चुनते हैं। इसी तरह कनिष्ठांग सदन में गांव के प्रत्येक घर से एक सदस्य को प्रतिनिधित्व दिया जाता है। यह सदस्य घर का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति होता है। अगर ज्येष्ठांग सदन के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाये तो पूरे ज्येष्ठांग सदन को पुनर्गठित किया जाता है।
जमलू देवता का मंदिर |
इस संसद में घरेलु झगडे, जमीन-जायदाद के विवाद, हत्या, चोरी और बलात्कार जैसे मामलों पर सुनवाई होती है। दोषी को सजा सुनाई जाती है। संसद भवन के रूप में यहां एक ऐतिहासिक चौपाल है जिसके ऊपर ज्येष्ठांग सदन के 11 सदस्य और नीचे कनिष्ठांग सदन के सदस्य बैठते हैं। अगर संसद किसी विवाद का निपटारा करने में विफल रहती है तो मामला स्थानीय देवता जमलू के सुपुर्द कर दिया जाता है और इस मामले में देवता का निर्णय माना जाता है।
सभी तरह के मामलों का निपटारा
इस संसद में घरेलु झगडे, जमीन-जायदाद के विवाद, हत्या, चोरी और बलात्कार जैसे मामलों पर सुनवाई होती है। दोषी को सजा सुनाई जाती है। संसद भवन के रूप में यहां एक ऐतिहासिक चौपाल है जिसके ऊपर ज्येष्ठांग सदन के 11 सदस्य और नीचे कनिष्ठांग सदन के सदस्य बैठते हैं। अगर संसद किसी विवाद का निपटारा करने में विफल रहती है तो मामला स्थानीय देवता जमलू के सुपुर्द कर दिया जाता है और इस मामले में देवता का निर्णय माना जाता है।
बकरों को चीरकर जहर भरते कठीयाला। |
जिसका बकरा पहले मरा वह दोषी
जमलू देवता के फैसला सुनाए जाने का तरीका भी बड़ा अजीब है। यहां वादी और प्रतिवादी दोनों पक्षों से एक-एक बकरा मंगाया जाता है। इसके बाद दोनों बकरों की टांग चीरकर उसमें निर्धारित मात्रा में जहर भरा जाता है। जिस पक्ष का भी बकरा पहले मर जाता है उसे दोषी मान लिया जाता है। इसके बाद उस पक्ष को सझा भुगतनी पड़ती है। बकरा मरने के बाद, इसको देवता का फैसला माना जाता है। देवता के इस फैसले को कोई चुनौती नहीं दे सकता। अगर किसी ने इस देवता के फैसले को चुनौती देने की कोशिश भी की तो उसे समाज से बाहर निकाल दिया जाता है। देवता के फैसले के समय बकरों को चीरने और जहर भरने का काम चार लोग करते हैं। इन्हे कठियाला कहा जाता है। यहां आने वालों के लिए देवता की ओर से दो समय का खाने-पीने का सामान व निवास करने की जगह दी जाती है।
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