महाभारत हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें धर्म से लेकर व्यवहारिक जीवन तक हर विषय का ज्ञान मिलता है। इसलिए, इसे पांचवां वेद भी कहा जाता है। महाभारत में ऐसी कई बातें बताई गई हैं, जिनका पालन करके जीवन को सुखद बनाया जा सकता है। महाभारत के अनुशासन पर्व में पांच ऐसे लोगों के बारे में बताया गया है, जिनका सम्मान करने से मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
इस बात को महाभारत में दिए गए श्लोक से अच्छी तरह समझा जा सकता है-
श्लोक
शुश्रूषते यः पितरं न चासूयेत् कदाचन,
मातरं भ्रातरं वापि गुरुमाचार्यमेव च।
तस्य राजन् फलं विद्धि स्वर्लोके स्थानमर्चितम्,
न च पश्येत नरकं गुरुशुश्रूषयात्मवान्।।
अर्थात- जो मनुष्य पिता, माता, बड़े भाई, गुरु और आचार्य की सेवा करता है। कभी उनके गुणों को दोष की दृष्टि से नहीं देखता, उसे निश्चित ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है। ऐसे पुरुष को कभी भी नरक के दर्शन नहीं करना पड़ते।
1. माता-पिता
जो मनुष्य हमेशा अपने माता-पिता का सम्मान करता है, उनकी आज्ञा का पालन करता है वह जीवन में निश्चित ही हर सफलता पाता है, जैसे भगवान राम। भगवान राम अपने पिता के वचन की रक्षा करने के लिए 14 साल के लिए वनवास चले गए। उसी तरह मनुष्य को अपने माता-पिता की हर इच्छा का सम्मान करना चाहिए। इससे निश्चित ही उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
2. बड़ा भाई
बड़ा भाई भी पिता जैसा ही माना जाता है। जिस प्रकार पांडवों ने अपने बड़े भाई युधिष्ठिर की हर आज्ञा का पालन किया। कभी उनकी इच्छा के विरुद्ध नहीं गए। उसी तरह मनुष्य को भी अपने बड़े भाई को पिता के समान ही मान कर उसका सम्मान करना चाहिए। बड़े भाई का आदर-सम्मान करने से मनुष्य को जीवन में हर काम में सफलता जरूर मिलती है।
3. गुरु
जिस व्यक्ति से मनुष्य जीवन में कभी भी कोई ज्ञान की बात या कला सीखने को मिल जाए, वह उस मनुष्य के लिए गुरु कहलाता है। एकलव्य ने द्रोणाचार्य को दूर से देखकर ही उनसे धनुष विद्या सीख ली और द्रोणाचार्य को गुरु की तरह सम्मान दिया। द्रोणाचार्य के गुरु दक्षिणा में अंगूठा मांगने पर भी उनमें दोष नहीं देखा और द्रोणाचार्य की मांगी हुई दक्षिणा उन्हें दे दी। उसी प्रकार हमें भी जिससे कुछ भी सीखने को मिल जाए, उसे गुरु की तरह सम्मान करना चाहिए।
4. आचार्य
जो मनुष्य को विद्या देता है, वह आचार्य कहलाता है। जो मनुष्य हमेशा अपने आचार्य की आज्ञा का पालन करता है। कभी उसकी दी हुई विद्या पर शंका नहीं करता और उनकी दी गई विद्या को अपनाता है। वह मनुष्य जीवन में आने वाली हर कठिनाई को आसानी से पार कर जाता है। आचार्य का सम्मान करने वाले को धरती पर ही स्वर्ग के समान सुख मिलता है। इसलिए मनुष्य को हमेशा अपने आचार्य का सम्मान करना ही चाहिए।
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prakashman shrestha says
no character in Mahabharat is a full ideal. They are all pundits, encaptivated in localized duty-Dharma. They need to be heard and not followed.
Every charcter in Ramayan is full-ideal. Even if one intetnalizes even an inassumingly small character, one becomes whole, a coomplete man.