प्रतिदिन कई लोगों से हमारा संपर्क होता है, उनमें से कुछ अच्छे चरित्र और व्यवहार वाले होते हैं तो कुछ बुरे स्वभाव वाले होते हैं। अच्छे लोगों से सीखने और लेने के लिए काफी कुछ रहता है लेकिन हम बुरे लोगों से भी अच्छी बातें ग्रहण कर सकते हैं। इस संबंध में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि
श्लोक
विषादप्यमृतं ग्राह्ममेध्यादपि कांचनम्।
नीचादप्युत्तमां विद्यां स्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि।।
इसका अर्थ है कि विष से अमृत ले लेना चाहिए। गंदगी में यदि सोना पड़ा हुआ है तो उसे उठा लेना चाहिए। कोई नीच व्यक्ति है और उसके पास कोई उत्तम विद्या है तो उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। यदि किसी दुष्टकुल यानि संस्कारहीन परिवार में कोई सुसंस्कारी स्त्री है तो अविवाहित युवा को उस कन्या से विवाह कर लेना चाहिए।
आचार्य चाणक्य कहते हैं यदि कहीं बुराई है तो वहां से अच्छाई ग्रहण की जा सकती है। यदि कहीं विष है और वहां अमृत भी हो तो वहां से केवल अमृत को ही स्वीकार करना चाहिए। इसी प्रकार यदि कहीं गंदगी में सोने के आभूषण या अन्य मूल्यवान वस्तु पड़ी हो तो उसे उठा लेना चाहिए। इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति स्वभाव से नीच है, अधर्मी है लेकिन उसके पास को उत्तम विद्या है तो उससे वह विद्या प्राप्त कर लेना चाहिए।
चाणक्य के अनुसार यदि किसी परिवार के सदस्यों के संस्कार और व्यवहार अच्छा नहीं है लेकिन वहां रहने वाली स्त्री सुसंस्कारी, शिक्षित है, गुणवान है, अविवाहित है तो उससे किसी योग्य वर को विवाह कर लेना चाहिए।
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Chankay niti about marriage with girl
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