Lord Rama Son Lava (Luv) And Yamraj Story : एक बार राम अपनी सभा में बैठे थे कि एक सेवक ने आकर कहा — हे महाराज ! आपका वृद्ध मन्त्री सुमन्त्र स्वर्गगामी हो गया ।उसकी पत्नियाँ सती होने हेतु आपकी आज्ञा मागती हैं ।यह समाचार सुनकर श्री राम जी एक रथ पर आरुढ़ होकर सुमन्त्र के घर गये ।वहाँ पहुँच कर उन्होंने सुमन्त्र की जन्म कुन्डली मँगायी और उसे पण्डितों को दिखलाया ।उससे यह ज्ञात हुआ कि नौ हजार नौ सौ निन्यानवे वर्ष सुमन्त्र की कुल आयु थी।उसमें सब तो व्यतीत हो गये, अब केवल नौ दिन शेष रह गये हैं ।तब श्री राम ने गुरु वशिष्ठ को बुलाकर उनसे कहा कि हे गुरो! त्रेतायुग में दस हजार वर्ष मनुष्य की आयु मानी गयी है ।इस नियम से यमराज ने मेरे राज्य में मेरा अपमान किया है, जो इस नियम की अवहेलना की है ।ज्ञात होता है वह मेरे द्वारा दण्डित होगा ।क्योंकि मेरे इस मंत्री की आयु में अभी नौ दिन शेष हैं, फिर यमराज ने क्यों इन्हें अपने यहाँ मँगा लिया है? अतः अब मैं यम को बाँध कर यहाँ ले आता हूँ और सुमंत्र को जीवित करता हूँ ।
वशिष्ठ जी से ऐसा कहकर श्री रामचन्द्र जी गरुड़ पर जा बैठे और धनुषटंकार करते हुए यमराज की संयमिनीपुरी की ओर चल दिये ।मार्ग में देखा तो यम के दूत सुमन्त्र को बाँधे लिए जा रहे थे ।दृष्टि पड़ते ही राम ने दूतों को मारकर सुमन्त्र को छुड़ा लिया ।इस पर यमदूतों ने विनयपूर्वक कहा कि हमने आपका क्या अपराध किया था कि जिसके कारण आपने हमारा यह अधिकार छीन लिया है ।राम ने कहा कि अभी इसके जीवन के नौ दिन शेष हैं फिर तुम लोग इसे कैसे बाँध कर ले जा रहे हो? जब इसके दिन पूरे हो जाँय तब सानन्द इसे ले जाना।राम की बात सुनकर यमदूत बोले — राघव इसके जन्म की कथा अपूर्ण है ।जब यह जन्म लेने लगा था, तब माता की योनि से सर्वप्रथम इसके दोनों हाथ और मस्तक बाहर निकल आये थे ।तदनन्तर दसवें दिन इसके और अंग निकले थे ।श्रेष्ठ मंत्रों से पण्डितों ने इसकी रक्षा कर ली थी।इसी से इसका नाम सुमन्त्र पड़ा था।तब जिस दिन इसके हाथ तथा मस्तक बाहर आया था, उसी दिन से आज तक इसकी आयु समाप्त हो गयी।आप जो इसके नौ दिन बतलाते हैं, यह संदिग्ध है।अतएव हे राम ! इसमें हमारा कोई दोष नहीं है ।आपने व्यर्थ ही हमें मारा है ।
तब उनकी इस बात को सुनकर राम ने कहा — हे यम के दूतों! जिस दिन माता के गर्भ से इसका जन्म हुआ है, वही दिन इसके जन्म का दिन है ।उसी दिन को इसके माता पिता तथा ज्योतिषियों ने इसका जन्म दिन अंकित किया है ।अतएव वास्तव में अभी इसके नौ दिन शेष हैं ।तुम लोग जाओ और आज के दसवें दिन इसे ले जाना।उस दिन मैं अवरोध नहीं करूँगा ।
राम जी की बात को सुनकर दूत वहीं से लौट गये ।राम जी भी लौटकर अयोध्या चले आये।राम सुमन्त्र के घर आये।वहाँ उन्होंने सब लोगों को सुमन्त्र के साथ प्रसन्न देखा।सुमन्त्र ने राम को देखकर प्रणाम किया और उनकी पूजा की।पश्चात् राम अपने भवन को गये ।सुमन्त्र ने अपने जीवन के नौ दिन शेष जानकर पर्याप्त पुण्य दान किया ।यम के दूत अपनी पगड़ी फेंक कर यम से बोले — हे यमराज ! तुम कैसे अपने अधिकार की रक्षा करते हो? अपने अनुचरों की यह दुर्दशा देख कर क्या तुम्हें लज्जा नहीं आती? मार्ग में राम ने हमसे सुमन्त्र को छुड़ा लिया और कहा कि अभी इसके जीवन के नौ दिन शेष हैं ।जब उसके वह नौ दिन पूरे हो जाँयगे तभी राम उसे आने देंगे ।अब हम लोग जल में डूबकर अपने प्राण विसर्जन कर देंगे ।
तब दूतों की यह बात सुनकर यमराज क्रोध के मारे लाल हो गये और दूतों से कहा कि तुम सब कुछ भी खेद प्रकट न करो।मैं आज ही राम को बाँध कर उनके इस कृत्य का दण्ड दूँगा।तुम जाकर सेना तैयार करो।तब तक मैं इन्द्र के पास जाता हूँ ।ऐसा कहकर यमराज तत्क्षण इन्द्र के पास चले गये ।उन्हें सारा वृतान्त सुनाया और सहायता करने की प्रार्थना की।यम की बातें सुनकर इन्द्र ने कहा कि हे यमराज ! क्या तुम उन्मत्त तो नहीं हो गये हो? तभी तो भगवान विष्णु के साथ युद्ध करना चाहते हो ।अब यही उचित है कि तुम अपनी संयमिनीपुरी लौट जाओ।राम का तुम क्या कर सकते हो? उनसे भयभीत होकर ही तो मैंने अपने यहाँ से पारिजात और कल्पवृक्ष इन दोनों देववृक्षों को उठा दिया था ।
इन्द्र का ऐसा बचन सुनकर यमराज अग्निलोक को चले गये और जब सहायता माँगी, तब अग्नि ने भी वैसा ही उत्तर दिया ।तब उन्होंने नैऋत्य, वरुण, वायु, कुबेर, ईशान, रवि, चन्द्र, बुध, गुरु, शनि, राहुल, केतु तथा मंगल सभी से सहायता माँगी, परंतु यम को सबने इन्द्र के समान कोरा उत्तर दिया ।फिर यम लौट कर ब्रह्मा के पास गये ।पातालवासी और सप्तद्वीप के राजाओं से भी सहायता माँगी, किन्तु राम के प्रतिरोध में उनकी किसी ने सहायता नहीं की।तब क्रुद्ध यमराज अपनी ही सेना लेकर राम के साथ युद्ध करने अयोध्या को चले ।
यमराज एक विशाल भैंसे पर सवार थे ।वहाँ पहुँच कर उन्होंने चारों ओर से अयोध्या को घेर लिया, जिसमें नौ द्वार थे और उनके चारों ओर नौ खाइयाँ खुदी हुईं थीं ।कितनी ही तोपें वहाँ लगी थीं ।उसके उत्तर की ओर सरयू नदी वह रही थी ।नाना प्रकार के महलों से युक्त वह पुरी पताकाओं से अलंकृत थी।यमराज के द्वारा अयोध्या को घिरा देख राम ने लव से कहा कि तुम यमराज से युद्ध करने के लिए जाओ।दुन्दुभी की आवाज के मध्य लव रथ पर आरूढ़ होकर अयोध्या के बाहर आये और यमराज के साथ भयंकर युद्ध करना आरंभ कर दिया ।लव के बाणों से घायल यमराज के करोड़ों अनुयायी धराशायी हो गये ।
सब को मरा देख क्रोधित यमराज लव के साथ भयंकर युद्ध करने लगे ।उन्होंने लव के रथ, सारथी, धनुष, कवच और मुकुट को शीघ्र ही काट डाला ।इससे लव को क्रोध आ गया ।वह तत्काल ही एक दूसरे रथ पर जा बैठे और यमराज के साथ अति भयंकर युद्ध करना आरंभ कर दिया ।लव ने अपने बाणों से यमराज के भैंसे को मूर्च्छित करके पृथ्वी पर गिरा दिया ।फिर शीघ्र ही सौ बाणों से यमराज पर प्रहार किया ।तब यमराज ने अति क्रुद्ध होकर लव पर यम-दण्ड का प्रहार कर दिया ।यम- दण्ड को देखकर लव ने ब्रह्मास्त्र चला दिया ।वह देख यम-दण्ड लौट पड़ा।यम व्याकुल होकर भाग चले।काल के समान ब्रह्मास्त्र उनके पीछे चला।इससे सूर्य को यह ज्ञात हुआ कि अब यमराज बच नहीं सकते और इस प्रकार अब मेरा पुत्र यम मारा जायेगा।तब सूर्य स्वयं रथ पर बैठ कर लव के समीप आये और उनसे विनती करने लगे ।अस्त्र को लौटा कर यम को बचाने की लव से प्रार्थना करने लगे ।
सूर्य ने कहा — वत्स लव ! तुमने इस अस्त्र को चलाया है, तुम्हीं इसका निवारण कर सकते हो।तुम भी हमारे ही वंश में उत्पन्न हुए हो और यम भी मेरा ही पुत्र है।तुम अपने पूर्वजों को क्यों मार डालना चाहते हो? यदि एक पुत्र मूर्ख हो जावे तो क्या उसके साथ सब मूर्ख हो जावें? संग्राम से पलायन किए हुए शत्रु की वीरगण रक्षा ही करते हैं ।इस प्रकार जब सूर्य ने बहुत प्रार्थना की, तब लव ने ब्रह्मास्त्र का संवरण कर लिया ।तदनन्तर लव को आगे किए हुए यमराज के साथ सूर्य राम जी का दर्शन करने के लिए प्रसन्नतापूर्वक अयोध्या नगरी में आए।यह देख देवताओं ने हर्ष से अपने अपने वाद्य बजाए।लव पर फूलों की वर्षा की।लव ने जाकर राम जी को सादर प्रणाम किया ।
आचार्य, डा.अजय दीक्षित
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