Hindi Short Stories : 5 प्रेरक हिंदी लघु कथाएं : 5 Moral Hindi Short Stories
First Hindi Moral Short Story: किसान ने सुधारा उसे ठगने वाले परिवार को
एक गरीब किसान के पास एक छोटा-सा खेत और एक बैल था। बड़े परिश्रम से उसने डेढ़ सौ रुपए इकट्ठे किए और एक और बैल पशु हाट से खरीदा। रास्ते में लौटते समय उसे चार लड़के मिले, जिन्होंने उससे बैल खरीदना चाहा। किसान ने सोचा कि यदि मुझे डेढ़ सौ से अधिक मिल गए तो बेहतर बैल खरीदूंगा। उसने बैल की कीमत लड़कों को दो सौ बताई। वे बोले, ‘कीमत तो ज्यादा है। किसी समझदार व्यक्ति को पंच बनाकर फैसला करा लेते हैं।’ वास्तव में चारों लड़के एक ठग पिता की संतान थे और उन्होंने अपने पिता को ही पंच बना दिया। पिता ने बैल की कीमत मात्र पचास रुपए तय की। वचन से बंधे किसान को बैल पचास रुपए में बेचना पड़ा, किंतु वह इस धोखे को समझ गया। अगले दिन किसान सुंदर महिला के वेश में चारों भाइयों से मिला। उन्होंने विवाह की इच्छा व्यक्त की। तब वह बोला, ‘जो सबसे पहले मेरे लिए बनारसी साड़ी, मथुरा के पेड़े और सहारनपुर के आम लाएगा, मैं उसी से शादी करूंगी।’
चारों शहर की ओर दौड़ पड़े। तब ठग पिता को अकेले में किसान ने खूब पीटा और अपना धन वापस ले लिया। चारों लड़के वापस लौटे तो पिता को बेहाल पाकर मन मसोसकर रह गए, क्योंकि किसान का पता तो जानते नहीं थे। अगले दिन किसान हकीम बनकर वृद्ध ठग की चोटों का उपचार करने पहुंचा और लड़कों को चार जड़ी-बूटी लाने भेज दिया। इस बार उसने ठग की पिटाई कर अपना बैल छुड़ा लिया। चारों भाई लौटे तो पिता को और बदतर अवस्था में पाया। उन्होंने प्रण लिया कि कभी किसी के साथ ठगी नहीं करेंगे।
कथा का सार– अन्यायी को अंतत: बहुत बुरा परिणाम भोगना पड़ता है और तब उसे अपने किए पर घोर पश्चाताप होता है।
Second Hindi Moral Short Story: बुरा करने का फल बुरा ही होता है
एक बार किसी गांव से तीन भाई धन कमाने के लिए परदेश रवाना हुए। रास्ते में उन्हें उन्हीं की तरह यात्रा पर निकला किसान मिला, जिसके पास कुछ धन था। सभी भाइयों के मन में किसान को ठगने का विचार आया। उन्होंने उसे यात्रा में साथ ले लिया। रात को वे एक मंदिर में रुके तो तीनों भाइयों ने किसान को खाना लेने भेजा। जब वह खाना लेकर आया तो उसे किसी काम में उलझाकर अधिकांश खाना तीनों ने खा लिया। किसान बेचारा अधपेटा ही रह गया। वह आगे के लिए सावधान हो गया। अगले दिन जब किसान को उन्होंने लड्डू लाने के लिए भेजा तो किसान ने अपना हिस्सा पहले ही खा लिया। कम लड्डू देखकर तीनों ने कहा, ‘तुमने हमारे बिना लड्डू कैसे खा लिए?’ किसान ने एक और लड्डू मुंह में उठाकर रखा और कहा, ‘ऐसे।’ तीनों मन मसोसकर रह गए और बाद में किसान से बदला लेने का निश्चय किया।
परदेश में धन कमाकर लौटने से पहले तीनों ने किसान से रात को खीर बनवाई और कहा, ‘जिसे सबसे अच्छा सपना आएगा, वही इस खीर को सुबह खाएगा।’ चतुर किसान ने उनके सोने के बाद सारी खीर खा ली। सुबह तीनों भाइयों ने सपने सुनाने शुरू किए। एक ने कहा, ‘मैंने जयपुर नरेश को सपने में मेरा सत्कार करते देखा।’ दूसरा बोला, ‘मैं ओरछा दरबार में राजा के साथ नर्तकियों का नृत्य देख रहा था।’
तीसरे ने कहा, ‘मैं तो सपने में मक्का पहुंच गया।’ इसके बाद किसान बोला, ‘सपने में मुझे एक बलिष्ठ आदमी ने खूब मारा और सारी खीर खाने को बाध्य कर दिया।’ यह सुनते ही तीनों चिल्लाए, ‘तूने हमें जगाया क्यों नहीं? हम तुझे बचा लेते।’ किसान बोला, ‘कैसे जगाता? तुम तीनों तो तीन अलग शहरों में थे।
कथा का सार– दूसरों के लिए बुरा सोचने वाला अंतत: स्वयं भी अशुभ का शिकार होता है। अत: सद्व्यवहार पाने के लिए खुद भी सदाचरण करना चाहिए।
Third Hindi Moral Short Story: कौए ने पाई नकल की भीषण सजा
एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक गरुड़ रहता था। उसी पहाड़ की तलहटी में एक विशाल वृक्ष था, जिस पर एक कौआ अपना घोंसला बनाकर रहता था। तलहटी में आस-पास के गांवों में रहने वाले पशु पालकों की भेड़-बकरियां चरने आया करती थीं। जब उनके साथ उनके मेमने भी होते तो गरुड़ प्राय: उन्हें अपना शिकार बना लेता था। चूंकि गरुड़ विशाल पक्षी होता है और उसकी शक्ति अधिक होती है, इसलिए वह ऐसा आसानी से कर लेता था।
कौआ प्राय: यह दृश्य देखता था कि जैसे ही कोई मेमना नजर आया कि गरुड़ अपनी चोटी से उड़ान भरता और तलहटी में जाकर मेमने को झपट्टा मारकर सहज ही उठा लेता। फिर बड़े आराम से अपने घोंसले में जाकर उसे आहार बनाता। कौआ रोज यह देखता और रोमांचित होता। रोज देख-देखकर एक दिन कौए को भी जोश आ गया। उसने सोचा कि यदि गरुड़ ऐसा पराक्रम कर सकता है तो मैं क्यों नहीं कर सकता?
आज मैं भी ऐसा ही करूंगा। वह तलहटी पर चौकन्ना होकर निगाह रखने लगा। कुछ देर बाद कौए ने एक मेमने को तलहटी में घास खाते हुए देखा। उसने भी गरुड़ की ही तरह हवा में जोरदार उड़ान भरी और आसमान में जितना ऊपर तक जा सकता था, उड़ता चला गया। फिर तेजी से नीचे आकर गरुड़ की भांति झपट्टा मारने की कोशिश की, किंतु इतनी ऊंचाई से हवा में गोता लगाने का अभ्यास न होने के कारण वह मेमने तक पहुंचने की बजाए एक चट्टान से जा टकराया। उसका सिर फूट गया, चोंच टूट गई और कुछ ही देर में उसकी मृत्यु हो गई।
कथा का सार– अपनी स्थिति और क्षमता पर विचार किए बिना किसी की नकल करने के विपरीत परिणाम भुगतने पड़ते हैं। इसलिए सदैव अपनी मौलिकता में रहें और विवेकयुक्त अनुकरण करें।
Fourth Hindi Moral Short Story: बाजीराव पेशवा ने दिखाई विनम्रता
बाजीराव पेशवा मराठा सेना के प्रधान सेनापति थे। एक बार वे किसी युद्ध में विजयी होकर सेना सहित राजधानी लौट रहे थे। मार्ग में उन्होंने मालवा में पड़ाव डाला। भूख-प्यास से सभी बेहाल थे, किंतु खाने के लिए अब उनके पास पर्याप्त सामग्री नहीं थी। यह देखकर बाजीराव ने अपने एक सरदार को बुलाकर किसी खेत से फसल कटवाकर छावनी में लाने का आदेश दिया। सरदार सैनिकों की एक टुकड़ी लेकर पास के गांव में पहुंचा और एक किसान को सबसे बड़े खेत पर ले जाने को कहा। किसान को लगा कि यह कोई अधिकारी है, जो खेतों का निरीक्षण करने आया है। बड़े खेत पर जाते ही सरदार ने सैनिकों को फसल काटने का आदेश दिया।
यह सुनते ही किसान चकरा गया। उसने हाथ जोड़कर कहा, ‘महाराज! आप इस खेत की फसल न काटें। मैं आपको दूसरे खेत पर ले चलता हूं।’ सरदार और उसके सैनिक किसान के साथ चल पड़े। वह उन्हें कुछ मील दूर ले गया और वहां एक छोटे-से खेत की ओर संकेत कर कहा, ‘आपको जितनी फसल चाहिए, यहां से काट लीजिए।’ सरदार ने नाराज होते हुए कहा, ‘यह खेत तो बहुत छोटा है। फिर तुम हमें यहां इतनी दूर क्यों लाए?’
तब किसान नम्रता से बोला, ‘वह खेत किसी दूसरे का था। मैं अपने सामने उसका खेत कैसे कटता देखता? यह खेत मेरा है, इसलिए आपको यहां लाया।’ किसान का बड़ा दिल देखकर सरदार का गुस्सा ठंडा हो गया। उसने फसल नहीं कटवाई और बाजीराव को सारी बात बताई। तब बाजीराव ने अपनी गलती सुधारते हुए किसान को उसकी फसल के बदले पर्याप्त धन दिया और फसल कटवाई। नम्रता, बड़प्पन को दर्शाती है।
कथा का सार– वस्तुत: ओहदेदार होकर भी विनम्रता रखना ही शेष समाज की दृष्टि में संबंधित को श्रद्धेय बनाता है।
Fifth Hindi Moral Short Story: चार विद्वान ब्राह्मण
बहुत पुरानी बात है। चार विद्वान ब्राह्मण मित्र थे। एक दिन चारों ने संपूर्ण देश का भ्रमण कर हर प्रकार का ज्ञान अर्जित करने का निश्चय किया। चारों ब्राह्मणों ने चार दिशाएं पकड़ीं और अलग-अलग स्थानों पर रहकर अनेक प्रकार की विद्याएं सीखीं। पांच वर्ष बाद चारों अपने गृहनगर लौटे और एक जंगल में मिलने की बात तय की। चूंकि चारों परस्पर एक-दूसरे को अपनी गूढ़ विद्याओं व सिद्धियों को बताना चाहते थे, अत: इसके लिए जंगल से उपयुक्त अन्य कोई स्थान नहीं हो सकता था।
जब चारों जंगल में एक स्थान पर एकत्रित हुए तो वहां उन्हें शेर के शरीर की एक हड्डी पड़ी हुई मिली। एक ब्राह्मण ने कहा, ‘मैं अपनी विद्या से इस एक हड्डी से शेर का पूरा अस्थि पंजर बना सकता हूं।’ उसने ऐसा कर भी दिखाया। तब दूसरे ब्राह्मण ने कहा, ‘मैं इसे त्वचा, मांस और रक्त प्रदान कर सकता हूं।’ फिर उसने यह कर दिया। अब उन लोगों के समक्ष एक शेर पड़ा था, जो प्राणविहीन था।
अब तीसरा ब्राह्मण बोला, ‘मैं इसमें अपनी सिद्धि के चमत्कार से प्राण डाल सकता हूं।’ चौथे ब्राह्मण ने उसे यह कहते हुए रोका, ‘यह मूर्खता होगी। हमें तुम पर विश्वास है, किंतु यह करके न दिखाओ।’ किंतु तीसरे ब्राह्मण का तर्क था कि ऐसी सिद्धि का क्या लाभ जिसे क्रियान्वित न किया जाए। उसका हठ देखकर चौथा ब्राह्मण तत्काल पास के पेड़ पर चढ़कर बैठ गया। तीसरे ब्राह्मण के मंत्र पढ़ते ही शेर जीवित हो गया। प्राणों के संचार से शेर को आहार की आवश्यकता महसूस हुई और उसने सामने मौजूद तीनों ब्राह्मणों को मारकर खा लिया। चौथे ब्राह्मण ने समझदारी से अपने प्राण बचा लिए।
कथा का सार- किसी भी कार्य को करने से पहले उसके परिणामों पर भली-भांति विचार कर लेना चाहिए, अन्यथा विपरीत स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
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Rajeshwari says
Good stories
Found very helpful in my exams
Dharmendra Prajapati says
Bahut he acche story hai.