कहानी आम की | आम का वैज्ञानिक नाम मेंगीफेरा इंडिका है। आमों की प्रजाति को मेंगीफेरा कहा जाता है। भारत, पाकिस्तान और फिलीपींस में राष्ट्रीय फल माना जाता है और बांग्लादेश में इसके पेड़ को राष्ट्रीय पेड़ का दर्जा प्राप्त है।
आखिर आम का नाम आम और मैंगो कैसे पड़ा?
संस्कृत भाषा में इसे आम्रः कहा जाता है, इसी से हिन्दी, मराठी, बंगाली, मैथिली आदि भाषाओं में इसका नाम “आम” पड़ गया। मलयालम में इसका नाम मान्न है। 1490 के अंत में पुर्तगाली लोग केरल से मसालों के साथ आम और इसका नाम भी ले गए। वे लोग इसे मांगा बोलते थे। मांगा से अंग्रेजी में मैंगो हो गया। आमों की अलग-अलग भारतीय प्रजातियों जैसे लंगड़ा, दशहरी, अल्फांसो, चौसा जैसे कई आम हैं जिनके नामकरण के पीछे दिलचस्प कहानियां हैं।
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कहानी आम की | दशहरी, लंगड़ा, अल्फांसो….., जानिए कैसे पड़े आमों के ये नाम?
अल्फांसो – आम की इस वेरायटी का नाम भारत में पुर्तगाली उपनिवेश स्थापित करने वाले जनरल अल्फांसों डी अल्बुकर्क के नाम पर रखा गया हैं।
लंगड़ा – कहा जाता है कि इस आम की वेरायटी को पहली बार उगाने वाला व्यक्ति एक पैर से लंगड़ा था, इसलिए इसे लंगड़ा कहा जाता है।
दशहरी – लखनऊ के पास दशहरी गांव में ये आम पहली बार उगाया गया था। गांव के नाम पर इसे दशहरी कहते हैं। इसका पहला पेड़ आज भी ज़िंदा है।
चौसा – कहा जाता है कि शेरशाह सूरी ने पटना के पास चौसा की लड़ाई में जीतने के बाद आम की नई वेरायटी का नाम चौसा रखा था।
गुलाब ख़ास – आम की इस वेरायटी में गुलाबी रंग और गुलाब की खुशबू और स्वाद के कारण इसे गुलाब ख़ास नाम दिया गया है।
तोतापुरी – इस वेरायटी के आम की तोते की चोंच जैसी नोक और रंग के कारण इसे तोतापुरी या तोतापरी आम कहा जाता है।
सफेदा – इस वेरायटी के आम का छिलका हल्की सफेदी लिए हुए होता है। इसलिए इसको सफेदा कहा जाता हैं।
सिंदूरी – आम की इस वेरायटी में छिलकों पर हरे रंग के अलावा सिंदूरी रंग भी दिखाई देता है। इसलिए इसे सिंदूरी कहा जाता है।
केसर – गुजरात में होने वाले इस आम के छिलकों का रंग केसरिया होता है। इसलिए इन आमों को केसर कहा जाता है।
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