Importance Of Peepal And Tulsi In Vaisakh Month | ब्राह्मण ने पूछा – धर्मराज ! वैशाख मास में प्रात:काल स्नान करके एकाग्रचित्त हुआ पुरुष भगवान माधव का पूजन किस प्रकार करें? आप इसकी विधि का वर्णन करें।
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धर्मराज ने कहा – ब्रह्मन् ! पत्तों की जितनी जातियाँ हैं, उन सबमें तुलसी, भगवान श्रीविष्णु को अधिक प्रिय है। पुष्कर आदि जितने तीर्थ हैं, गंगा आदि जितनी नदियाँ हैं तथा वासुदेव आदि जो-जो देवता हैं, वे सभी तुलसीदल में निवास करते हैं। अत: तुलसी सर्वदा और सब समय भगवान श्रीविष्णु को प्रिय है। कमल और मालती का फूल छोड़कर तुलसी का पत्ता ग्रहण करें और उसके द्वारा भक्तिपूर्वक माधव की पूजा करें। उसके पुण्य फल का पूरा-पूरा वर्णन करने में शेष भी समर्थ नहीं है। जो बिना स्नान किए ही देवकार्य या पितृकार्य के लिए तुलसी का पत्ता तोड़ता है, उसका सारा कर्म निष्फल हो जाता है तथा वह पंचगव्य पान करने से शुद्ध होता है।
जैसे हर्रे बहुतेरे रोगों को तत्काल हर लेती है, उसी प्रकार तुलसी दरिद्रता और दु:खभोग आदि से संबंध रखने वाले से अधिक से अधिक पापों को भी शीघ्र ही दूर कर देती है(दारिद्र्यदु:खभोगादिपापानि सुबहून्यपि ।। तुलसी हरते क्षिप्रं रोगानिव हरीतकी।94।8-9)। तुलसी काले रंग के पत्तों वाली हो या हरे रंग की, उसके द्वारा श्रीमधूसूदन का पूजन करने से प्रत्येक मनुष्य विशेषत: भगवान का भक्त नर से नारायण हो जाता है।
जो पूरे वैशाख भर तीनों संध्याओं के समय तुलसी दल से मधुहन्ता श्रीहरि का पूजन करता है, उसका पुन: इस संसार में जन्म नहीं होता। फूल और पत्तों के न मिलने पर अन्न आदि के द्वारा – धान, गेहूँ, चावल अथवा जौ के द्वारा भी सदा श्रीहरि का पूजन करें। तत्पश्चात सर्वदेवमय भगवान विष्णु की प्रदक्षिणा करें। इसके बाद देवताओं, मनुष्यों, पितरों तथा चराचर जगत का तर्पण करना चाहिए।
पीपल को जल देने से दरिद्रता, कालकर्णी (एक प्रकार का रोग होता है), दु:स्वप्न, दुश्चिन्ता तथा संपूर्ण दु:ख नष्ट हो जाते हैं। जो बुद्धिमान पीपल के पेड़ की पूजा करता है, उसने अपने पितरों को तृप्त कर दिया, भगवान विष्णु की आराधना कर ली तथा सम्पूर्ण ग्रहों का भी पूजन कर लिया।
अष्टांग योग का साधन, स्नान करके पीपल के वृक्ष का सिंचन तथा श्रीगोविन्द का पूजन करने से मनुष्य कभी दुर्गति को नहीं प्राप्त होता। जो सब कुछ करने में असमर्थ हो, वह स्त्री या पुरुष यदि पूर्वोक्त नियमों से युक्त होकर वैशाख की त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा – तीनों दिन भक्ति से विधिपूर्वक प्रात: स्नान करें तो सब पातकों से मुक्त होकर अक्षय स्वर्ग का उपभोग करता है।
जो वैशाख मास में प्रसन्नता के साथ भक्तिपूर्वक ब्राह्मणों को भोजन कराता है तथा तीन रात तक प्रात:काल एक बार भी स्नान करके संयम और शौच का पालन करते हुए श्वेत या काले तिलों को मधु में मिलाकर बारह ब्राह्मणों को दान देता है और उन्हीं के द्वारा स्वस्तिवाचन कराता है तथा “मुझ पर धर्मराज प्रसन्न हों” इस उद्देश्य से देवताओं और पितरों का तर्पण करता है, उसके जीवन भर के किए हुए पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं। जो वैशाख की पूर्णिमा को मणिक (मटका), जल के घड़े, पकवान तथा सुवर्णमय दक्षिणा दान करता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।
आचार्य, डा.अजय दीक्षित
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