Mazdoor Diwas Poems In Hindi | Labor / Labour Day Poems In Hindi | मज़दूर दिवस पर कवितायें
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मैं एक मजदूर हूँ
मैं एक मजदूर हूँ भगवान की आंखों से मैं दूर हूँ
छत खुला आकाश है हो रहा वज्रपात है
फिर भी नित दिन मैं गाता राम धुन हूं
गुरु हथौड़ा हाथ में कर रहा प्रहार है
सामने पड़ा हुआ बच्चा कराह रहा है
फिर भी अपने में मगन कर्म में तल्लीन हूँ
मैं एक मजदूर हूँ भगवान की आंखों से मैं दूर हूँ ।
आत्मसंतोष को मैंने जीवन का लक्ष्य बनाया
चिथड़े-फटे कपड़ों में सूट पहनने का सुख पाया
मानवता जीवन को सुख-दुख का संगीत है
मैं एक मजदूर हूँ भगवान की आंखों से मैं दूर हूँ ।
राकेशधर द्विवेदी
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मैं मजदूर हूँ ।
मैं मजदूर हूँ । किस्मत से मजबूर हूँ ।
सपनों के आसमान में जीता हूँ, उम्मीदों के आँगन को सींचता हूँ ।
दो वक्त की रोटी खानें के लिये, अपने स्वभिमान को नहीँ बेचता हूँ ।
तन को ढकने के लिये फटा पुराना लिबास है । कंधों पर जिम्मेदारीहै जिसका मुझे अहसास है ।
खुला आकाश है छत मेरा बिछौना मेरा धरती है । घास-फूस के झोपड़ी में सिमटी अपनी हस्ती है ।
गुजर रहा जीवन अभावों में, जो दिख रहा प्रत्यक्ष है । आत्मसंतोष ही मेरे जीवन का लक्ष्य है ।
गरीबी और लाचारी से जूझ जूझकर हँसना भूल चुका हूँ ।
अनगिनत तनावों से लदा हुआ, आँसू पीकर मजबूत बना हूँ।
कंचन कृतिका
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दुनिया जगर-मगर है कि मज़दूर दिवस है
दुनिया जगर-मगर है कि मज़दूर दिवस है चर्चा इधर-उधर है कि मज़दूर दिवस है
मालिक तो फ़ायदे की क़वायद में लगे हैं उन पर नहीं असर है कि मज़दूर दिवस है
ऐलान तो हुआ था कि घर इनको मिलेंगे अब भी अगर-मगर है कि मज़दूर दिवस है
साधन नहीं है कोई भी, भरने हैं कई पेट इक टोकरी है, सर है कि मज़दूर दिवस है
हाथों में फावड़े हैं ‘यती’ रोज़ की तरह उनको कहाँ ख़बर है कि मज़दूर दिवस है
ओमप्रकाश यती
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जिसके कंधो पर बोझ बढ़ा
जिसके कंधो पर बोझ बढ़ा वो भारत माँ का बेटा
कौन जिसने पसीने से भूमि को सींचा वो भारत माँ का बेटा
कौन वह किसी का गुलाम नहीं अपने दम पर जीता हैं
सफलता एक एक कण ही सही लेकिन है अनमोल जो मज़दूर कहलाता हैं
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