Mazdoor Diwas Shayari | Labor / Labour Day Shayari | मज़दूर दिवस शायरी | मई दिवस शायरी
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परेशानियाँ बढ़ जाए तो इंसान मजबूर होता हैं श्रम करने वाला हर व्यक्ति मजदूर होता हैं
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किसी को क्या बताये कि कितने मजबूर हैं हम बस इतना समझ लीजिये कि मजदूर हैं हम
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सो जाता हैं फुटपाथ पे अखबार बिछा कर मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाता मुनव्वर राना
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आने वाले जाने वाले के लिए आदमी मजदूर हैं राहें बनाने के लिए हफ़ीज जालंधरी
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अब उन की ख़्वाब-गाहों में कोई आवाज़ मत करना बहुत थक-हार कर फ़ुटपाथ पर मज़दूर सोए हैं नफ़स अम्बालवी
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होने दो चरागाँ महलों में क्या हम को अगर दीवाली हैं मजदूर हैं हम मजदूर हैं हम मजदूर की दुनिया काली हैं जमील मजहरी
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कुचल कुचल के न फ़ुटपाथ को चलो इतना यहाँ पे रात को मज़दूर ख़्वाब देखते हैं अहमद सलमान
Mazdoor Diwas Shayari | Labour Day Shayari | मज़दूर दिवस शायरी | मई दिवस शायरी
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मिल मालिक के कुत्ते भी चर्बीले हैं लेकिन मजदूरों के चेहरे पीले हैं तनवीर सिप्रा
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लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की यकुम* मई को भी मज़दूरों ने मज़दूरी की अफ़ज़ल ख़ान
* यकुम – फर्स्ट , प्रथम
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तू क़ादिर ओ आदिल है मगर तेरे जहाँ में हैं तल्ख़ बहुत बंदा-ए-मज़दूर के औक़ात अल्लामा इक़बाल
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अगर इस जहाँ में मजदूर का न नामों निशाँ होता फिर न होता हवामहल और न ही ताजमहल होता
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मैं मजदूर हूँ मजबूर नहीं यह कहने में मुझे शर्म नहीं अपने पसीने की खाता हूँ मैं मिटटी को सोना बनाता हूँ
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अमीरी में अक्सर अमीर अपनी सुकून को खोता हैं मजदूर खा के सूखी रोटी बड़े आराम से सोता हैं
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मजदूर अपना कर्म करता जरूर हैं इसलिए देश को उस पर गुरूर हैं
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मजदुर ऊंचाई की नींव हैं गहराई में हैं पर अन्धकार में क्यूँ उसे तुच्छ ना समझना वो देश का गुरुर हैं
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हाथो में लाठी हैं मजबूत उसकी कद-काठी हैं हर बाधा वो कर देता हैं दूर दुनिया उसे कहती हैं मजदूर
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