Narsingh Jayanti Vrat Katha Pujan Vidhi | वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नृसिंह जयंती मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु का वध किया था। इस दिन व्रत रखने और नृसिंह भगवान की पूजा करने का विशेष महत्व है। यह पर्व मुख्यतः दक्षिण भारत में मनाया जाता है।
नृसिंह जयंती व्रत कथा | Narsingh Jayanti Vrat Katha
प्राचीन काल में कश्यप नामक एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम दिति था। उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम हरिण्याक्ष तथा दूसरे का हिरण्यकशिपु था। हिरण्याक्ष को भगवान श्री विष्णु ने वाराह रूप धरकर तब मार दिया था, जब वह पृथ्वी को पाताल लोक में ले गया था।
इस कारण हिरण्यकशिपु बहुत कुपित हुआ। उसने भाई की मृत्यु (हत्या) का प्रतिशोध लेने के लिए कठिन तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। उसने ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया कि उसे न तो कोई मानव और न ही पशु मार सकेगा, न दिन में उसकी मृत्यु होगी न रात में, न घर के भीतर और न बाहर, न धरती पर और न आकाश में, न किसी अस्त्र से और न ही किसी शस्त्र से। यह वरदान पाकर उसकी मति मलीन हो गई और अहंकार में भरकर वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा।
उन्हीं दिनों उसकी पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। धीरे- धीरे प्रह्लाद बड़ा होने लगा। हालाँकि उसने एक राक्षस के घर में जन्म लिया था, किंतु राक्षसों जैसे कोई भी दुर्गुण उसमें नहीं थे। वह भगवान का भक्त था तथा अपने पिता के अत्याचारों का विरोध करता था।
भगवान-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बड़ी चालें चलीं, नीति-अनीति सभी का प्रयोग किया किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से न डिगा। अंत में उसने प्रह्लाद की हत्या करने के बहुत से षड्यंत्र रचे मगर वह सभी में असफल रहा। भगवान की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बाँका न हुआ।
एक बार हिरण्यकशिपु ने उसे अपनी बहन होलिका (जिसे वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी) की गोद में बैठाकर जिन्दा ही चिता में जलवाने का प्रयास किया, किंतु उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई और प्रह्लाद जस का तस रहा। जब हिरण्यकशिपु का हर प्रयास विफल हो गया तो एक दिन क्रोध में आग-बबूला होकर उसने म्यान से तलवार खींच ली और प्रह्लाद से पूछा- ‘बता, तेरा भगवान कहाँ है?’ ‘पिताजी!’ विनम्र भाव से प्रह्लाद ने कहा- ‘भगवान तो सर्वत्र हैं।’ ‘क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ (खंभे) में भी है?’ ‘हाँ, इस खंभे में भी हैं।’ यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर तलवार से प्रहार कर दिया। तभी खंभे को चीरकर श्री नृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जाँघों पर डालकर उसकी छाती नखों से फाड़ डाली। इसके बाद प्रह्लाद के कहने पर ही भगवान श्री नृसिंह ने उसे मोक्ष प्रदान किया तथा प्रह्लाद की सेवा भक्ति से प्रसन्न होकर वरदान दिया कि आज के दिन जो लोग मेरा व्रत करेंगे, वे पाप से मुक्त होकर मेरे परमधाम को प्राप्त होंगे।
जिस स्थान पर उन्होंने हिरण्यकशिपु का वध किया, वह न घर के भीतर था, न बाहर। उस समय गोधुलि बेला थी, अत: न दिन था और न रात। नृसिंह न पूरी तरह मानव थे और न ही पशु।
हिरण्यकशिपु का वध करते समय उन्होंने उसे अपनी गोद में लिटाया था, अत: वह न ध्ारती पर था और न आकाश में। उन्होंने अपने नख से उसका वध किया, अत: न अस्त्र का उपयोग हुआ और न शस्त्र का। इसी दिन को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है।
नृसिंह जयंती पूजन विधि | Narsingh Jayanti Pujan Vidhi
नृसिंह जयंती के दिन भक्तगण प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर, स्नानोपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। भक्तगण इस दिन व्रत रखते हैं। मान्यता है कि नृसिंह जयंती के दिन व्रत रखने से भक्त के सारे दुख दूर हो जाते हैं। साथ ही नृसिंह मंत्र का जाप भी किया जाता है।
मध्याह्नकाल में संकल्प लिया जाता है तथा सायंकाल नृसिंह पूजन किया जाता है। भगवान नृसिंह की मूर्ति के पास देवी लक्ष्मी की मूर्ति भी रखी जाती है और पूरे भक्ति भाव से दोनों की पूजा की जाती है।
भगवान नृसिंह की पूजा के लिए फल, पुष्प, कुमकुम, केसर, पंचमेवा, नारियल, अक्षत और पीताम्बर रखा जाता है। गंगाजल, काले तिल, पंचगव्य एवं हवन सामग्री का पूजन में उपयोग किया जाता है।
भगवान नृसिंह का बीज मंत्र | Bhagwan Narsingh Ka Beej Mantra
नृसिंह मंत्र से तंत्र मंत्र बाधा, भूत पिशाच भय, अकाल मृत्यु, असाध्य रोग आदि से छुटकारा मिलता है तथा जीवन में शांति की प्राप्ति होती है। ‘श्रौं’/ क्ष्रौं (नृसिंह बीज) मंत्र का 40 दिनों तक जाप करें। आपकी सारी इच्छाएं पूरी होंगी। ध्यान रहे कि इस मंत्र का जाप रात में ही करें और जाप से पहले एक घी का दीपक जला लें।
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