Ghazals On Maa | Ghazals On Mother in Hindi | माँ पर कुछ चुनिंदा ग़ज़लें
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“माँ”
लबो पर उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो कभी खफा नहीं होती
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है
ए अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया
मेरी ख्वाहिश* है की मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपटूँ कि बच्चा हो जाऊँ
माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिंदी मुस्कराती है
*ख्वाहिश = इच्छा
मुनव्वर राना
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” माँ “
बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका, बासन, चिमटा, फूंकनी जैसी माँ
बांस की खुर्री खाट के ऊपर, हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी, थकी दोपहरी जैसी माँ
चिड़ियों के चहकार में गूंजे, राधा – मोहन अली- अली
मुर्गी की आवाज़ से खुलती, घर की कुण्डी जैसी माँ
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन, थोड़ी थोड़ी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर, चलती नटनी जैसी माँ
बाँट के अपना चेहरा, माथा, आँखें, जाने कहाँ गयी
फटे पुराने इक एलबम, में चंचल लड़की जैसी माँ..
निदा फ़ाज़ली
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कदम जब चूम ले मंज़िल तो जज़्बा मुस्कुराता है
दुआ लेकर चलो माँ की तो रस्ता मुस्कुराता है
किया नाराज़ माँ को और बच्चा हँस के ये बोला
के ये माँ है मियाँ इसका तो गुस्सा मुस्कुराता है
किताबोँ से निकलकर तितलियाँ ग़ज़लेँ सुनाती हैँ
टिफिन रखती है मेरी माँ तो बस्ता मुस्कुराता है
सभी रिश्ते यहाँ बर्बाद हैँ मतलब परस्ती से
मगर सदियोँ से माँ-बेटे का रिश्ता मुस्कुराता है
सुहब उठते ही जब मैँ चूमता हूँ माँ की आँखोँ को
ख़ुदा के साथ उसका हर फरिश्ता मुस्कुराता है
मेरी माँ के बिना मेरी सभी ग़ज़लेँ अधूरी हैँ
अगर माँ लफ़्ज़ शामिल हो तो किस्सा मुस्कुराता है
दिया था जो उसे हामिद ने मेले से कभी लाकर
अमीना की रसोई मेँ वो चिमटा मुस्कुराता है
वो उजला हो के मैला हो या मँहगा हो के सस्ता हो
ये माँ का सर है इस पे हर दुपट्टा मुस्कुराता है
फरिश्तोँ ने कहा आमाल का संदूक क्या खोलेँ
दुआ लाया है माँ की, इसका बक्सा मुस्कुराता है
सिराज फैजल खान
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माँ के नाम
बचपन में अच्छी लगे यौवन में नादान
आती याद उम्र ढ़ले क्या थी माँ कल्यान
करना माँ को खुश अगर कहते लोग तमाम
रौशन अपने काम से करो पिता का नाम
विद्या पाई आपने बने महा विद्वान
माता पहली गुरु है सबकी ही कल्यान
कैसे बचपन कट गया बिन चिंता कल्यान
पर्दे पीछे माँ रही बन मेरा भगवान
माता देती सपन है बच्चों को कल्यान
उनको करता पूर्ण जो बनता वही महान
बच्चे से पूछो जरा सबसे अच्छा कौन
उंगली उठे उधर जिधर माँ बैठी हो मौन
माँ कर देती माफ़ है कितने करो गुनाह
अपने बच्चों के लिए उसका प्रेम अथाह
सरदार कल्याण सिंह
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