2 Line Dosti Shayari | 2 लाइन दोस्ती शायरी | WhatsApp | Facebook | Images | Pictures
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दोस्ती अपनी भी असर रखती है “‘फ़राज़”
बहुत याद आएँगे ज़रा भूल कर तो देखो
अहमद फ़राज़
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लाख बेमेहर सही दोस्त तो रखते हो “फ़राज़”
इन्हें देखो कि जिन्हें कोई सितमगर ना मिला
अहमद फ़राज़
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तुम तक़ल्लुफ़ को भी इख़लास समझते हो “फ़राज़”
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
(तक़ल्लुफ़ = शिष्टाचार; इख़लास = दोस्ती, मित्रता)
अहमद फ़राज़
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हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम कुछ यानी
हमारे दोस्तों के बेवफ़ा होने का वक़्त आया
हरी चंद अख़्तर
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इक नया ज़ख़्म मिला एक नई उम्र मिली
जब किसी शहर में कुछ यार पुराने से मिले
कैफ़ भोपाली
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दोस्ती और किसी ग़रज़ के लिए
वो तिजारत है दोस्ती ही नहीं
(तिजारत = व्यापार)
इस्माइल मेरठी
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दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त
दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से
हफ़ीज़ होशियारपुरी
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जहाँ दुनिया निगाहें फेर लेगी
वहाँ ऐ दोस्त तुमको हम मिलेंगे
रविश सिद्दकी
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गुनगुनाना तो तकदीर में लिखा कर लाए थे
खिलखिलाना दोस्तों से तोहफ़े में मिल गया
अज्ञात
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जिन्दगी आप की ही नवाजिश है
वरना ऐ दोस्त हम मर गये होते
(नवाजिश = कृपा, इनायत)
अब्दुल हमीद अदम
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यह चन्द लमहे जो गुजरे तेरी रफाकत में
न जाने वह कितने वर्ष काम आयेंगे
(रफाकत = दोस्ती, मैत्री, मोहब्बत)
अज्ञात
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यों लगे दोस्त तेरा मुझसे ख़फा हो जाना
जिस तरह फूल से ख़ुश्बू का जुदा हो जाना
क़तील शिफाई
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मेरे दोस्त की पहचान यही काफी है
वो हर शख्स को दानिस्ता* खफा करता है
(* दानिस्ता = जान बूझकर)
अहमद फ़राज़
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एक ताबीज़ तेरी मेरी दोस्ती को भी चाहिए
थोड़ी सी दिखी नहीं कि नज़र लगने लगती है
अज्ञात
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ये कह कर मुझे मेरे दुश्मन हँसता छोड़ गए
तेरे दोस्त काफी हैं तुझे रुलाने के लिए
अहमद फ़राज़
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यह कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त़ नासेह
कोई चारासाज होता कोई गमगुसार होता
मिर्जा गालिब
(नासेह = नसीहत करने वाला, उपदेश देनेवाला; चारासाज = चिकित्सक; गमगुसार = हमदर्द, दर्द बांटने वाला)
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हम ने सुना था की दोस्त वफ़ा करते हैं “फ़राज़”
जब हम ने किया भरोसा तो रिवायत ही बदल गई
अहमद फ़राज़
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ऐ दोस्त यूँ तो हम तेरी हसरत को क्या कहें
लेकिन ये ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी नहीं
फिराक गोरखपुरी
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मेरे दोस्तों की पहचान इतनी मुशिकल नहीं “फराज”
वो हँसना भूल जाते हैं मुझे रोता देखकर
अहमद फ़राज़
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शिद्दत-ए-दरद से शर्मिंदा नहीं मेरी वफा “फराज़”
दोस्त गहरे हैं तो फिर जख्म भी गहरे होंगे
अहमद फ़राज़
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मिरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिए
तू दोस्त है तो नसीहत न कर ख़ुदा के लिए
शाज़ तमकनत
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दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
राहत इंदौरी
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दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
अब्दुल हमीद अदम
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वो पूछते हैं इतने गम में भी खुश कैसे हो
मैने कहा, प्यार साथ दे न दे, यार साथ हैं
अज्ञात
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मुझको ही तलब का ढब नहीं आया
वरना ऐ दोस्त तेरे पास क्या नहीं था?
नदीम कासिमी
(तलब = माँगना, याचना, इच्छा, ख्वाहिश, चाह)
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मुझे मेरे दोस्तों से बचाइये “राही”
दुश्मनों से मैं ख़ुद निपट लूँगा
सईद राही
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मेरी ख़ुशी से मेरे दोस्तों को ग़म है “शमीम”
मुझे भी इस का बहुत ग़म है, क्या किया जाए
शमीम जयपुरी
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देखा जो तीर खा के कमीं-गाह की तरफ़
अपने ही दोस्तों से मुलाक़ात हो गई
(कमीं-गाह = वह स्थान जहाँ से घात लगा कर हमला किया जाता है)
हफ़ीज़ जालंधरी
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आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं
(शय = चीज़)
जिगर मुरादाबादी
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तू मेरा दोस्त है दुश्मन है मुझे कुछ तो बता
तेरा किरदार तराज़ू नहीं होता मुझ से
जाज़िब ज़ियाई
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तुम अपने दोस्तों के ज़रा नाम तो बता दो
मैं अपने दुश्मनों की तादाद तो समझ लूँ
अज्ञात
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आ गया जौहर अजब उल्टा ज़माना क्या कहें
दोस्त वो करते हैं बातें जो अदू करते नहीं
(अदू = दुश्मन, शत्रु)
माधव राम जौहर
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आड़े आया न कोई मुश्किल में
मशवरे दे के हट गए अहबाब
(मशवरे = सलाह; अहबाब = दोस्त, परिचित)
जोश मलीहाबादी
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छूटकर तेरे आस्ताँ से ऐ दोस्त
तू ही कह दे, कहाँ रहें हम
(आस्ताँ – चौखट, दहलीज)
फिराक गोरखपुरी
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वो ज़माना भी तुम्हें याद है तुम कहते थे
दोस्त दुनिया में नहीं “दाग” से बेहतर अपना
दाग देहलवी
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जमाने की अदावत का सबब थी दोस्ती जिनकी
अब उनको दुश्मनी है हमसे, दुनिया इसको कहते हैं
(अदावत – दुश्मनी, शत्रुता)
‘बेखुद’ देहलवी
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मेरे दोस्तों की दिलआजारियों में
मेरी बेहतरी की कोई बात होगी
(दिलआजारी = कोई ऐसी बात कहना या करना, जिससे किसी का दिल दुखे, सताना, कष्ट देना)
अब्दुल हमीद ‘अदम’
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भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली
बशीर बद्र
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दुश्मनी जम कर करो मगर इतना याद रहे
जब भी फिर दोस्त बन जाये, शर्मिन्दा न हो
बशीर बद्र
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