Mahamrityunjaya Vasuki Nag Stotra :- नाग देवताओ के अवतारों को सम्बोधन करने के उद्देश्य से रचित इस स्तोत्र में विभिन्न नाग देवताओ के नाम के साथ स्तुति कर भक्त नाग देवों को प्रसन्न करते हैं , क्योंकि यही वो निम्नलिखित नागो के नाम है जो इस पृथ्वी के भार को अपने मणि पर ग्रहण किये हुए है। इसलिये ये हमारा परम् कर्तव्य है की हम नाग देवता को प्रसन्न करें ।
जीवन है संजीवनी मूल तत्त्व पहचान ।
नाग छिहत्तर भर सकें मुर्दों में भी प्रान ।।
“अजय”सदा जो जपत है नाग छिहत्तर नाम ।
कृपा बरसती शिव जी की बनते बिगडे काम ।।
1 2 3
शेष,वासुकी नाग,ऐरावत ।
4 5 6
धनंजय,तक्षक,उग्रक मनभावक ।।
7 8 9 10
कर्कोटक,कालिया,मणिनाग,आपूरण ।
11 12
पिंजरक,एलापत्र,करते भीषण रण ।।
13 14 15
वामन नील,अनील,शबल है
16 17
कल्माष,आर्यक,करते न छल हैं
18 19 20
उग्रक, दधिमुख,सुमनाख्य,अटल हैं
21 22
कलशपोतक,विमलपिण्डक,सफल हैं
23 24 25
आप्त,शंख,वालशिख,कमल हैं
26 27
पिंगल,कम्बल,हरते हर छल हैं
28 29
निष्टानिक,हेमगुह बलधारी
30 31
नहुष,बाह्मकर्ण, इच्छाधारी
32 33 34
हस्तिपद, वृत्त ,मुद्रपिण्डक
35 36
आश्वतर,कालीय,देत हक
37 38 39
संवर्तक,पह्म,शंखमुख
40 41
पिण्डारक,क्षेमक दे हरसुख
42 43
कूष्माण्डक,विल्वक,बलशाली
44 45
करवीर,पुष्पदंष्ट्र,जीवन माली
46 47
बिल्वपाण्डुर,मूषकाद,निरले
48 49
शंखशिरा,हरिद्रक आले
50 51
पूर्णभद्र,अपराजित,सुंदर
52 53
ज्योतिक,श्रीवह,हरते हर डर
54 55 56
कौरव्य, धृतराष्ट्र,शंखपिण्ड सोहें
57 58
विरजा,सुबाहु,मोर मन मोहें
59 60 61
शालिपिण्ड,हस्तिपिण्ड,पिठरक
62 63 64
सुमुख,कुठर,कुंजर,मनमोहक
65 66 67
कोणपाशन,कुमुद,प्रभाकर
68 69 70
कुमुदाक्ष,तित्तिर,हलिक,नाहर
71 72 73
बहुमूलक,कर्दम,वा कर्कर,
74 75 76
कुण्डोदर,महोदर,अकर्कर
कृपा करो शिव अगम अगोचर ।
हर लो हर दुख जय श्री हरि हर ।।
शेषनाग ना शेष रहे मल ।
कंचन काया कर-भर दो बल ।।
यंत्र शेष का धार के,जपै शेष का नाम ।
रक्षा श्री हरि हर करें ,ना लागे कुछ दाम ।।
अजय सप्त ज्योती करैं षट रिपुओं का नाश ।
काया को ना छू सकै,यमराजा का पाश ।।
सप्त बार नित पाठ कर,आरति करै विशेष ।
तन,मन में व्यापे नही काल दंड का क्लेश ।।
आचार्य डा.अजय दीक्षित “अजय”
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