Dr. APJ Abdul Kalam Ke 15 Prerak Prasang – देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, भारत के एक प्रख्यात भारतीय वैज्ञानिक होने के साथ-साथ भारत के 11वें एवं पहले गैर राजनीतिज्ञ राष्ट्रपति थे, जिन्हें “मिसाइल मैन” के नाम से भी जाना जाता था। मिसाइलमैन के नाम से लोकप्रिय एपीजे अब्दुल कलाम की जयंती ( APJ Abdul Birth Anniversary) 15 अक्टूबर को और उनकी पुण्यतिथि ( APJ Abdul Kalam Death Anniversary) 27 जुलाई को मनाई जाती है। उनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम में हुआ था और उनका निधन 27 जुलाई 2015 को शिलांग में दिल का दौरा पढ़ने से हुआ था। 15 अक्टूबर 2019 को देश उनकी 88 वी जयंती मनाएगा। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन देशवासियों के लिए, खासतौर पर बच्चों और युवाओं के लिए हमेशा प्रेरणा का स्त्रोत रहा है। हम यहाँ उनके जीवन से जुड़े 15 प्रेरक प्रसंग बता रहे है। आशा है आप सभी को पसंद आएंगे।
Dr. APJ Abdul Kalam Ke Prerak Prasang
प्रेरक प्रसंग 1 – तीव्र इच्छा शक्ति
दीपावली त्योहार का दिन था, एक छोटा मुस्लिम बालक भी हिन्दुओं का यह उल्लासपूर्ण पर्व मनाना चाहता था, लेकिन वह बहुत गरीब था, और चूँकि अखबार बेचकर वो बेचारा अपनी पढ़ाई का खर्च जुटाता था और दो पैसे की मदद अपने गरीब बाप की भी किया करता था, अतः उसके पास पर्याप्त पैसों की कमी थी। संयोगवश उस दिन उसने अखबार बेचकर अन्य दिनों की अपेक्षा पाँच पैसे ज्यादा कमाये। तब वह पटाखे वाले के पास जाता है और उससे एक रॉकेट की माँग करता है, परन्तु वह विक्रेता रॉकेट देने से मना कर देता है यह कहते हुए कि पाँच पैसे में रॉकेट नहीं आता है। बालक निराश हो जाता है और दुकानदार से कहता है, ‘अच्छा मुझे पाँच पैसे के खराब पटाखे ही दे दो?’
‘खराब मतलब? वे किस काम आयेंगे?’
‘मैं उनसे रॉकेट बना लूँगा?’
इसके बाद वह पाँच पैसे में ढेर सारे खराब पटाखों का कूड़ा उठा लाया और एक नहीं कई रॉकेट बनाये और उस दिन उसके गाँव में मुस्लिम मोहल्ले में गगन की दूरी नापने वाले दीवाली के रॉकेट केवल उस बालक के आँगन से ही छोड़े गये थे। वह बालक ही आगे चलकर मिसाइल-मैन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। और बाद में वह बालक भारत का राष्ट्रपति भी बना। उस बालक का नाम ए. पी. जे. अब्दुल कलाम था।
यदि मन में कुछ करने की तीव्र इच्छा हो तो आप अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग कर के प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना सकते हैं।
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प्रेरक प्रसंग 2 – जब कलाम ने बच्चों को घुमाने की जिम्मेदारी स्वयं ली
यह बात उस समय कि है, जब कलाम इसरो के बहुत ही महत्वपूर्ण और लंबे समय से चले आ रहे प्रोजेक्ट पर अन्य 70 वैज्ञानिकों के साथ दिन-रात मेहनत कर रहे थे। मिशन में आ रही तकनकी दिक्कतों से वे मिशन की सफलता को लेकर संशय में थे। लेकिन वे आशावान भी थे।
उस समय कलाम अपने ऑफिस में बैठ कर प्रोजेक्ट के बारीकियों पर विचार कर रहे थे और इस परेशानी के समय में भी वे एक हिंदी गीत कि कुछ लाईने गुनगुना रहे थे –
होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब,
हम होंगे कामयाब एक दिन…
हो-हो-हो पूरा हैं विश्वास, मन में है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन।।
उसी समय कलाम के चेंबर में एक वैज्ञानिक ने आकर उनसे आग्रह किया कि क्या वह आज शाम साढ़े पांच बजे काम खत्म करके घर जा सकता है। उसका कहना था कि उसने अपने बच्चों को आज प्रदर्शनी में ले जाने का वादा किया है। यह सुनकर कलाम ने उसे आज्ञा दे दी। वह वैज्ञानिक खुशी-खुशी फिर काम पर लग गया।
उसके बाद वह वैज्ञानिक काम में इतना लीन हो गया की उसे अपने बच्चों से किये वादों का भी ख्याल नहीं रहा। उसे इस बात कि तब सूध हुई जब उसने कई घंटे बाद अपनी घड़ी देखी। जिसमें साढ़े आठ बज रहे थे।
यह देख वह जल्दी-जल्दी कलाम के चेंबर में पहुंचा, लेकिन उसे यह देखकर निराशा हुई की डॉ. कलाम वहां नहीं थे। उसे अपने बच्चों से किए वादे न पूरा करने का दुख था।
वह उदासमन अपने घर लौट आया। घर लौटने पर उसने अपनी पत्नी से पूछा- बच्चे कहां है?
तो पत्नी ने उत्तर देते हुए कहा- ‘तुम नहीं जानते? तुम्हारे मैनजर डॉ. कलाम घर आए थे और बच्चों को अपने साथ प्रदर्शनी दिखाने ले गए।‘
यह सुनकर वह मन नही मन कलाम को धन्यवाद देते हुए हंसने लगा।
दरसल, जब डॉ. कलाम ने देखा कि वैज्ञानिक जोर-सोर एवं पूरी तरह संलगन होकर काम में लगे हुए हैं, तो उन्होंने सोचा की इन्हें काम को बीच में नहीं छोड़ना चाहिए। उनका ध्यान नहीं भटकना चाहिए। लेकिन जब किसी ने अपने बच्चों से वादा किया है तो वे जरूर प्रदर्शनी देखने जाएंगे। इसलिए उन्होंने बच्चों को घुमाने का काम स्वयं करने का फैसला किया और उन्हें प्रदर्शनी दिखाने ले गए।
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प्रेरक प्रसंग 3 – साथी वैज्ञानिकों की फिक्र
यह प्रसंग उस समय का हैं, जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंघान क्रेंद्र के वैज्ञानिक नये उपग्रह के प्रेक्षेपण के संबंध में फ्रांस गये हुए थे और उसी समय अंतराल में उन्हें भारत में भी नये उपग्रह के प्रक्षेपण को समयबद्ध तरीके से पूर्ण करना था। उस समय डॉ. कलाम भारत के राष्ट्रपति थे। लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि वे राष्ट्रपति का पद संभालते हुए भी कभी अपने मुख्य पेशे से दूर नहीं हुए। वे उस समय इसरो के प्रेक्षेपण प्रणाली के मुख्य अधिकारी के रूप में कई प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों की टीम का नेर्तित्व करते थे।
जब वैज्ञानिक फ्रांस के फ्रेंच गुयाना से भारत लौट रहे थे तब एयपोर्ट के अधिकारियों ने उनका पासपोर्ट जांच कर उन्हें विशेष व्यक्तियों को दी जाने वाली सुरक्षा दे दी! यह देखकर वैज्ञानिक कुछ उलझा हुआ महसूस करने लगे।
तब उन्होंने उन अधिकारियों से पूछा – क्या कोई समस्या है?
इस पर एयरपोर्ट के एक अधिकारी ने कहां – उन्होंने हमें ऐसा ही करने को कहा है।
कुछ समय पश्चात, एयरपोर्ट के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उनसे आग्रह किया की आपलोगों की फ्लाइट आधे घंटे बाद है। इसलिए तब तक आप लोग विशेष रूप से राष्ट्राध्यक्षों के लिए बनाए गए रेस्ट रूम का प्रयोग कर सकते हैं। इस बात को सुनकर एक वैज्ञानिक ने कहा कि हमारे पास पहले से ही विशेष श्रेणी के टीकट उपल्बध है और हमारी फ्लाइट बस अब से तीन घंटे बाद उड़ान भरने वाली है।
तब फिर एक एयरपोर्ट का अधिकारी उनको समझाते हुए बोला कि – ‘राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने उनको विशेष र्निदेश दिये हैं और कहा है कि इसरो के वैज्ञानिक कुछ दिनों से काफी व्यस्त हैं। उन्हें ईनसेट-4बी के प्रेक्षेपण के सिल-सिले में काफी भागा-दौड़ी करनी पड़ रही हैं। इस लिए उनका विशेष ख्याल रखा जाए। इसी बात को ध्यान में रखते हुए स्वयं राष्ट्रपति जी ने अभी कुछ देर पहले ही विशेष विमान की व्यवस्था करवाई है। अब आप लोग तीन घंटे बाद नहीं बस आधे घंटे मे ही भारत के लिए आराम से रवाना हो सकते हैं।‘ वैज्ञानिक बहुत खुश थे। वे रेस्ट रूम में मात्र आधे घंटे रूके तथा तुरंत ही भारत के लिए रवाना हो गए।
डॉ. कलाम अपने इतने व्यस्त समय में भी यह स्मरण रखते थे या यू कहे कि उन्हें फिक्र रहती थी कि आज संचार उपग्रह का प्रेक्षेपण होने वाला है तथा इसको सफल बनाने के लिए कितने ही वैज्ञानिक देश-विदेश में भागा-दौड़ी कर रहे है ताकि यह अभियान सफल हो जाए।
Moral Stories Of Dr. APJ Abdul Kalam’s Life
प्रेरक प्रसंग 4 – सहानुभूतिशील तथा सरल व्यक्तित्व
एक दिन सुबह ग्यारह बजे डॉ. कलाम ने माशेलकर जी के यहां फोन किया और कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा गठित नॉलेज टास्क फोर्स की बैठक बुलाई है। उस समय डॉ. कलाम तथा डॉ. माशेलकर परिचालन समिति पर एक साथ काम कर रहे थे। डॉ. माशेलकर ने बैठक में शामिल होने में असमर्थता जताई और बताया कि उन्हें चार बजे की फलाइट से पुणे जाना था। उन्होंने कलाम को बताया कि उसी सुबह पुणे से उनके पास फोन आया था कि उनकी पत्नी गंभीर रूप से बीमार हैं। उनका पुणे जाना बहुत आवश्यक है। उन्हें लगा की महत्वपूर्ण दायित्व पहले पूरे करने चाहिए। इसलिए उन्होंने सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए थे और पहली फ्लाइट से वे वापस पुणे जा रहे थे। उस समय स्थिति इतनी तनाव पूर्ण थी कि माशेलकर खुद पर नियंत्रण नहीं कर सके और फोन पर ही रो पड़े। डॉ. कलाम ने उन्हें सांत्वना दी। उनकी बातचीत समाप्त हो गई।
किंतु पंद्रह मिनट बाद वे ये देखकर आश्चर्यचकित रह गये थे कि, डॉ. कलाम अपनी एक मीटिंग छोड़कर उनके ऑफिस में थे। उन्होंने उनके साथ एक घंटा बिताया।
यह घटना हमें यह बताती हैं, कि कलाम दूसरों का किताना ध्यान रखते थे और उदारह्दय व्यक्ति थे।
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प्रेरक प्रसंग 5 – बेहतरीन नेतृत्वकर्ता
एक बार ए पी जे अब्दुल कलाम जी का interview लिया जा रहा था. उनसे एक सवाल पूछा गया और उस सवाल के जवाब को ही हम यहाँ बता रहे हैं –
सवाल: क्या आप हमें अपने व्यक्तिगत जीवन से कोई उदहरण दे सकते हैं कि हमें हार को किस तरह स्वीकार करना चाहिए? एक अच्छा Leader हार को किस तरह फेस करता हैं ?
ए पी जे अब्दुल कलाम जी: मैं आपको अपने जीवन का ही एक अनुभव सुनाता हूँ. 1973 में मुझे भारत के satellite launch program, जिसे SLV-3 भी कहा जाता हैं, का head बनाया गया। हमारा Goal था की 1980 तक किसी भी तरह से हमारी Satellite ‘रोहिणी’ को अंतरिक्ष में भेज दिया जाए. जिसके लिए मुझे बहुत बड़ा बजट दिया गया और Human resource भी Available कराया गया, पर मुझे इस बात से भी अवगत कराया गया था की निश्चित समयतक हमें ये Goal पूरा करना ही है।
हजारों लोगों ने बहुत मेहनत की। 1979 तक- शायद अगस्त का महीना था- हमें लगा की अब हम पूरी तरह से तैयार हैं। Launch के दिन प्रोजेक्ट Director होने के नाते. मैं कंट्रोल रूम में Launch बटन दबाने के लिए गया। Launch से 4 मिनट पहले Computer उन चीजों की List को जांचने लगा जो जरुरी थी. ताकि कोई कमी न रह जाए. और फिर कुछ देर बाद Computer ने Launch रोक दिया l वो बता रहा था की कुछ चीज़े आवश्यकता अनुसार सही स्थिति पर नहीं हैं l
मेरे साथ ही कुछ Experts भी थे. उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया की सब कुछ ठीक है, कोई गलती नहीं हुई हैं और फिर मैंने Computer के निर्देश को Bypass कर दिया । और राकेट Launch कर दिया.FIRST स्टेज तक सब कुछ ठीक रहा, पर सेकंड स्टेज तक गड़बड़ हो गयी. राकेट अंतरिक्ष में जाने के बजाय बंगाल की खाड़ी में जा गिरा। ये एक बहुत ही बड़ी असफ़लता थी।
उसी दिन, Indian Space Research Organisation (I.S.R.O.) के चेयरमैन प्रोफेसर सतीश धवन ने एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई । प्रोफेसर धवन, जो की संस्था के प्रमुख थे. उन्होंने Mission की असफ़लता की सारी ज़िम्मेदारी खुद ले लीं और कहा कि हमें कुछ और Technological उपायों की जरुरत थी। पूरी देश दुनिया की Media वहां मौजूद थी़ । उन्होंने कहा की अगले साल तक ये कार्य संपन्न हो ही जायेगा।
अगले साल जुलाई 1980 में हमने दोबारा कोशिश की । इस बार हम सफल हुए । पूरा देश गर्व महसूस कर रहा था। इस बार भी एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई गयी। प्रोफेसर धवन ने मुझे Side में बुलाया और कहा – ” इस बार तुम प्रेस कांफ्रेंस Conduct करो”
उस दिन मैंने एक बहुत ही जरुरी बात सीखी -जब असफ़लता आती हैं तो एक LEADER उसकी पूरी जिम्मेदारी लेता हैं और जब सफ़लता मिलती है तो वो उसे अपने साथियों के साथ बाँट देता हैं।
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प्रेरक प्रसंग 6 – एक समान आदर की भावना
अब्दुल कलाम अपने जीवन में खुद को कभी बड़ा व्यक्ति नही मानते थे वे अपने को सबके बराबर एक समान समझते थे जब उन्हें वाराणसी में आईआईटी (BHU) के दीक्षांत समारोह में बुलाया गया तो उन्होंने देखा की स्टेज में 5 कुर्सिया लगी हुई है जिनमे बीच वाली कुर्सी बड़ी और उन सबसे ऊची भी थी जिसपर उन्हें बैठने को कहा गया तो कलाम सर ने उसपर बैठने से मना कर दिया और कहा की मै भी आप लोगो के बराबर का ही व्यक्ति हु अगर सम्मान करना है तो इसपर कुलपति जी को बैठाईए, फिर ऊँची कुर्सी वहा से हटा दी जाती हैं जिसके बाद अब्दुल कलाम सबके समान वाली कुर्सी पर ही बैठे. इस तरह अब्दुल कलाम अपने को सबके बराबर ही मानते थे यही नही अपनी इसी समानता के भाव के चलते अब्दुल कलाम कुरान और गीता दोनों का अध्धयन करते थे यानी उनके लिए कोई भी ग्रन्थ छोटा या बड़ा नही था बस ज्ञान जहा से मिले ले लेना चाहिए यही उनकी सोच थी
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प्रेरक प्रसंग 7 – राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम ने एक बार ये कहानी सुनाई थी
जब मैं छोटा बच्चा था तब प्रतिदिन मेरी माँ हम सब के लिए खाना बनाया करती थी।
एक रात की बात है, माँ ने सब्जी रोटी बनायीं और पिताजी को परोस दिया। मैंने देखा रोटी बिलकुल जली हुई थी!
मैं ये सोच रहा था की किसी ने ये बात नोटिस करी या नहीं मेरे पिता ने वो रोटी बिना कुछ कहे प्रेम से खा ली और मुझसे पुछा “बेटा आज स्कूल का दिन कैसा रहा? “
मुझे याद है की मेरी माँ ने उस दिन जली रोटी बनाने के लिए पिताजी से क्षमा मांगी थी जिसपर पिताजी ने हँसते हुए कहा था. चिंता मत करो मुझे जली रोटियां पसंद हैं !
बाद में जब मैंने पिताजी से पुछा क्या आपको जली रोटियां सच में पसंद हैं?
पिता जी ने ना में सर हिलाते हुए कहा – एक जली हुई रोटी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकती पर जले हुए शब्द बहुत कुछ बिगाड़ सकते हैं।
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प्रेरक प्रसंग 8 – इंसानियत
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने इमारत की दीवार पर टूटे हुए शीशों के टुकड़े लगाने के सुझाव को ठुकरा दिया था। क्योकि इससे दीवार पर बैठने वाले पक्षियों को चोट लग सकती थी
यह बात उस समय की है, जब डॉ एपीजे अब्दुल कलाम डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाईजेशन (DRDO) में काम कर रहे थे। तब भवन की सुरक्षा के लिए उनके साथ काम कर रहे अन्य लोगों ने इमारत की दीवार पर टूटे हुए शीशों के टुकड़े लगाने के बारे में सुझाव दिया। लेकिन जब यह बात डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को पता चली, तब उन्होंने ऐसा करने से सबको रोक। क्योकि ऐसा करने से, उस दीवार पर बैठने वाले पक्षी घायल हो सकते थे।
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प्रेरक प्रसंग 9 – बच्चो का ख्याल
जब युवाओं और किशोरों ने राष्ट्रपति कलाम के साथ एक बैठक का अनुरोध किया, तो राष्ट्रपति ने न केवल बच्चों को अपने कीमती समय दिया, बल्कि बच्चों के विचारों को ध्यान से सुना!
राष्ट्रपति के रूप में, अक्सर डॉ कलाम के कार्यालय को देश भर से युवाओं से बैठक के लिए अनुरोध प्राप्त होते थे। डॉ कलाम राष्ट्रपति भवन में उनके निजी कक्ष में बच्चों को अपना कीमती समय देने के अलावा उनके विचारों को सुनते और बच्चों को फीडबैक भी देते थे. कभी कभी तो वह बच्चों से उनके आइडियाज के बारे में फॉलो-up भी कर लेते थे.
एक बार की बात है
जब यह घोषित किया गया था की डॉ कलाम अगले राष्ट्रपति होंगे, इसके तुरंत बाद, उन्होंने एक भाषण देने के लिए एक मामूली स्कूल का दौरा किया। उनकी सुरक्षा का इंतज़ाम वहां बहुत कम था, और बिजली जाने पर उन्होंने स्थिति का नियंत्रण भी किया।
लगभग 400 छात्रों को सम्बोधित करते हुए डॉ कलाम बिजली जाने पर भीड़ के बीच में चले गए और छात्रों से उन्हें घेर लेने को कहा. फिर बिना किसी माइक्रोफोन के उहोंने 400 छात्रों से बात की और, हमेशा की तरह, एक प्रेरक भाषण दिया जो उन बच्चों को हमेशा याद रहेगा।
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प्रेरक प्रसंग 10 – अपना पूरा बचत और पैसा दान में दिया
राष्ट्रपति कलाम ने PURA (Providing Urban Amenities to Rural Areas) नामक एक ट्रस्ट को अपने पूरे जीवन की बचत और वेतन दान से दिया।
सरकार तत्कालीन एवं सभी पूर्व राष्ट्रपतियों का अच्छी तरह से ख्याल रखती है। ये जानने के बाद, राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान डॉ कलाम ने ग्रामीण आबादी के लिए शहरी सुविधाएं उपलब्ध कराने की दिशा में काम करने वाले एक कोष को अपनी सारी दौलत और जीवन बचत देने का फैसला किया। ऐसा कहा जाता है की, डॉ कलाम ने डॉ वर्गीज कुरियन, जो की अमूल के संस्थापक हैं, को फोन किया, और कहा: “अब जब मैं भारत का राष्ट्रपति बन गया हूँ, सरकार मेरे जीवन भर मेरा ख्याल रखेगी. ऐसे में मैं अपनी बचत और वेतन के साथ क्या कर सकता हूँ?
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प्रेरक प्रसंग 11 – विनम्रता
डॉ कलाम इतने विनम्र थे कि वह अपने प्रशंसकों के लिए उनके साथ तस्वीरें लेने के देने की खातिर के लिए थोड़ा देर से समारोह से जाने में नहीं हिचकिचाते थे !
एक बार डॉ कलाम आईआईएम अहमदाबाद में एक समारोह में मुख्य अतिथि थे। घटना से पहले, वह साठ छात्रों के एक वर्ग के साथ लंच कर रहे थे। दोपहर के भोजन के अंत में, सभी छात्र पूर्व राष्ट्रपति के साथ एक तस्वीर चाहते थे।
देरी का हवाला देते हुए कार्यक्रम के आयोजक छात्रों को रफादफा करने की कोशिश करते रहे ; लेकिन हर किसी को आश्चर्य चकित करते हुए डॉ कलाम ने आयोजकों को शांत रहने के लिए कहा और कहा की हर व्यक्ति जो उनके साथ एक तस्वीर चाहता है, जब तक ले नहीं लेगा, वह नहीं जाएंगे।
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प्रेरक प्रसंग 12 – एक समान आदर की भावना
राष्ट्रपति कलाम ने राष्ट्रपति बनने के बाद केरल की अपनी पहली यात्रा के दौरान केरल के राजभवन में “राष्ट्रपति अतिथि के रूप में” किसे आमंत्रित किया?
1. एक सड़क का मोची
2. एक बहुत ही छोटे से होटल का स्वामी
यह मजाक नहीं है। राष्ट्रपति के रूप में डॉ कलाम त्रिवेंद्रम की अपनी पहली यात्रा के दौरान वे केरल के राजभवन में “राष्ट्रपति मेहमान ‘के रूप में अपनी तरफ से किन्ही दो लोगों को बुलाने का अधिकार था | डॉ कलाम ने त्रिवेंद्रम में एक वैज्ञानिक के रूप में एक महत्वपूर्ण समय बिताया था और उन्होंने एक सड़क के किनारे मोची को आमंत्रित किया जो केरल में उनके समय के दौरान डॉ कलाम के काफी करीब था. उन्होंने उस छोटे से होटल के मालिक को भी आमंत्रित किया जहाँ डा कलाम अक्सर अपने भोजन के लिए जाते थे।
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प्रेरक प्रसंग 13 – संघर्ष से ही आगे बढ़ते है लोग
अब्दुल कलाम बेहद गरीब मछुवारे परिवार से तालुक्क रखते थे और अपने परिवार की आजीविका चलाने और अपनी पढाई करने के लिए पिताजी का साथ देते हुए बचपन में सडको के किनारे सुबह सुबह अखबार बेचा करते थे भले ही इनके पिताजी ज्यादा पढ़े लिखे नही थे लेकिन कलाम को हमेसा यही शिक्षा देते थे की यदि जीवन में आगे बढना है तो संघर्ष का साथ कभी नही छोड़ना, जितना अधिक संघर्ष करोगे उतना अधिक सफलता भी मिलेगी और इसी संघर्ष के बल पर एक गरीब मछुवारे से देश के राष्ट्रपति के रूप में अपना जीवन सफर किया जो की संघर्ष द्वारा मिली सफलता की एक मिशाल है।
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प्रेरक प्रसंग 14 – टर्निंग पॉइंट
यह बात उस समय की है, जब ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहब मात्र 10 वर्ष की उम्र में पाचंवी कक्षा में पढ़ते थे. उनके स्कूल में एक बहुत ही बेहतरीन अध्यापक शिव सुबरमण्यिम अय्यर हुआ करते थे. उनकी क्लास को सभी बच्चे बहुत ही ध्यानपूर्वक Attend करते थे. एक दिन उन्होंने ब्लैक बोर्ड पर पंख फड़फड़ाते पक्षी का चित्र बनाया. जिसमें उन्होने पक्षी के सिर, पूंछ तथा पूरे शरीर को अंकित कर (उकेर कर) समझाया कि, पक्षी अपने आपको कैसे हवा में उठाते है, और उड़ान भरते है. उन्होंने यह भी समझाया कि उड़ान के वक्त वे कैसे दिशा बदलते है. करीब 25 मिनट तक के लैक्चर में उन्होंने बताया कि पक्षियों के उठाव, खिंचाव व 10, 20 या 30 पक्षी मिलकर अलग-अलग आकृतियां (Formations) किस प्रकार बनाते हैं. क्लास की समाप्ति पर उनहोंने जानना चाहा कि, कौन-कौन से बच्चे को अच्छी तरह समझ में आया, तब कलाम साहब ने कहा कि ’’मुझे समझ में नहीं आया. ’’ तब उन्होंने दूसरे बच्चों को पूछा तो ज्यादातर बच्चों ने यही जवाब दिया कि उन्हे भी समझ में नहीं आया. वे बच्चों के ऐसे प्रत्युतर (Response) के बावजूद भी सुबरमणियम सर असहज नहीं हुए. प्रतिबद्व अध्यापक (Comitted Teacher) होने के नाते उन्होंने बच्चों से कहा कि शाम को हम सब समुद्र तट पर चलेगें वहाँ पक्षियों को प्रकृतिक रूप से उड़ते हुए देखेंगें जिससे सारी बात समझ में आ जायेगी।
उस शाम को सुबरमणियम सर कलाम साहब की पूरी क्लास को रामेश्वरम् के समुद्र तट पर ले गये. पूरी क्लास ने आनन्द पूर्वक गरजती हुई समुद्री लहरों को रेतीले किनारों से टकराते हुए देखा, साथ ही पक्षियों को मिठी चहचहाट की आवाज करते हुए 10 से 20 के ग्रुप में विभिन्न आकृतियां ( थ्वतउंजपवदे) बनाकर उड़ते हुए देखा. पक्षियों को सुन्दर फोरमेशन में उड़ते हुए देखा तथा अध्यापक जी से उसका कारण समझा तो पूरी क्लास दंग (आश्चर्यचकित) रह गई, उन्होंने समझाया कि उड़ान भरते समय पक्षी किस तरह नजर आते हैं, पक्षी पंख फड़फड़ाते है तब उनकी पूंछ का झुकाव/मरोड़ कैसे चलता है. इससे बच्चों ने ध्यान से नोटिस किया कि पक्षी जिस दिशा में चाहते है उसी दिशा में उड़ते हुए मुड़ जाते हैं. उन्होने क्लास से अगला सवाल किया कि इन पक्षियों में इंजन कहाँ होता है और इन्हे शक्ति कहाँ से मिलती है कलाम साहब इस पर बताते हैं, ’’हमारे समझ में आ गया कि पक्षियों की जो इच्छा होती है, उसकी पूर्ती के लिये वे अपनी अंतः प्रेरणा से अपने शरीर से ही शक्ति प्राप्त करते हैं. यह सब बातें हमें 15 मिनट में ही समझ में आ गई.’’ आगे वे कहते है कि ’’ऐसे महान अध्यापक द्वारा हमें एक सैद्धांतिक पाठ को प्रायोगिक रूप से प्रकृति में उपलब्ध जीवन्त उदाहरण के साथ समझाया जिससे हमें पक्षियों की पूरी गतिकी (We understand whole Bird dynamics) समझ में आ गई.
कलाम साहब बताते हैं कि, ’’मेरे लिये यह घटना पक्षियों की उड़ान समझना मात्र नहीं रहा. पक्षियों की उड़ान मेरे अन्दर घुस (Enter) गई थी, और मेरे अन्दर विशेष प्रकार के भाव जागृत हो गये और मैने तय कर लिया कि मेरी भविष्य की पढ़ाई, उड़ान तथा उड़ान सिस्टम से सम्बन्धित रहेगी. इस प्रकार सुब्रमणियम सर के वास्तविक अध्यापन (Real Teaching) की इस घटना ने मेरा भविष्य का कैरियर तय कर दिया था. यह घटना मेरे जीवन में मील का पत्थर (Turning Ponit) साबित हुई.’’
एक दिन शाम को क्लास के बाद कलाम साहब ने अपने अध्यापक महोदय से जानकारी हासिल की कि उन्हे उड़ान के सम्बन्ध में पढ़ने के लिये आगे कैसे पढ़ाई करनी चाहिये. तो उन्होने बताया कि आप पूरी मेहनत और काबलियत के साथ कक्षा आठवीं तथा हाई स्कूल तक की पढ़ाई करों उसके बाद उड़ान के सम्बन्ध में इन्जिनियंरिग कॉलेज में पढ़ाई करना. इस प्रकार अध्यापक जी की इस सलाह और पक्षियों की उड़ान अभ्यास को समझाने की इस घटना ने कलाम साहब के जीवन का लक्ष्य तय कर दिया. वे कहते है कि ’’इस घटना से मेरे जीवन को एक लक्ष्य तथा मिशन मिल गया.’’ कॉलेज में फिजिक्स का अध्ययन करने के बाद MIT में एरोनोटिकल इंन्जिनियंरिग का कोर्स किया. इस प्रकार मेरा जीवन एक रॉकेट इन्जिनियर, एरोस्पेस इंजिनियर तथा टैक्नोलोजिस्ट के रूप में तब्दील हो गया.
मित्रों, कलाम साहब के जीवन के आगे का पूरा सफर हम जानते हैं. इस प्रकार हम सबको, विशेष कर बच्चों को हमेशा आंख, कान व दिमाग खुला रखना चाहिये, ताकि जीवन में जब भी ज्ञान रूपी प्रकाश की कोई किरण आये तो कलाम साहब का अनुकरण करते हुए अपने जीवन का लक्ष्य सहीसमय पर निर्धारित कर लें।
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