Engineer’s Day In Hindi या अभियन्ता दिवस – अभियन्ता दिवस (Engineer’s Day) 15 सितम्बर को मनाया जाता हैं। इंजिनियर डे के द्वारा दुनिया के समस्त इंजिनियरों को सम्मान दिया जाता है। देश के बड़े बड़े वैज्ञानिक, इंजिनियर ने देश के विकास के लिए अनेकों अनुसन्धान किये। जैसे डॉक्टर को सम्मान देने के लिए डॉक्टर्स डे मनाया जाता है, टीचरों को सम्मान देने के लिए टीचर डे मनाया जाता है, बच्चों को सम्मान देने के लिए बाल दिवस मनाया जाता है, माता को सम्मान देने के लिए मदर्स डे मनाया जाता है, उसी तरह इंजिनियरों को भी एक दिन विशेष सम्मान दिया जाता है।
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आज के वक्त में दुनियाँ के हर क्षेत्र में इंजिनियर का नाम हैं। दुनियाँ की प्रगति में इंजिनियर का हाथ हैं फिर चाहे वो कोई भी फील्ड हो। तकनिकी ज्ञान के बढ़ने के साथ ही किसी भी देश का विकास होता हैं। इससे समाज के दृष्टिकोण में भी बदलाव आता हैं। इस तरह पिछले दशक की तुलना में इस दशक में दुनियाँ का विकास बहुत तेजी से हुआ इसका श्रेय दुनियाँ के इंजिनियर को जाता हैं।
इसके उदहारण के लिये अगर हम अपने हाथ में रखे स्मार्ट फोन को ही देखे और पीछे मुड़कर इसके इतिहास को याद करे, तो हमें होने वाले बदलावों का अहसास हो जाता हैं। अभी से लगभग 15 वर्ष पहले एक टेलीफोन की जगह लोगो के हाथों में मोबाइल फोन आये थे, जिसमे वो कॉल और एस एम एस के जरिये अपनों के और भी करीब हो गये। वहीँ कुछ वक्त बीतने पर यह मोबाइल फोन, स्मार्ट फ़ोन में बदल गया।
कल तक अपने करीब आये थे। आज दुनियाँ मुट्ठी में आ गई। अपनों से बात करने से लेकर बिल भरना, शॉपिंग करना, बैंक के काम आदि कई काम एक स्मार्ट फोन के जरिये संभव हो पाये। और ऐसे परिवर्तन हर कुछ मिनिट में बदलकर और बेहतर रूप लेते जा रहे हैं, इस तरह के विकास का श्रेय इंजिनियर्स को जाता हैं।
यह तो केवल एक उदाहरण था। ऐसे कई क्षेत्र हैं जहाँ इंजिनियर ने अपने करतब दिखाये हैं और दुनियाँ को एक जगह पर बैठ- बैठे आसमान तक की सैर करवाई हैं।
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क्यों मनाया जाता है इंजीनियर दिवस Engineer’s Day
इंजीनियर दिवस हमारे देश के प्रसिद्ध इंजीनियर सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की याद में उनके जन्मदिवस 15 सितंबर को मनाया जाता है। यह दिन मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म दिवस हैं, जो कि एक महान इंजिनियर थे, इसलिए उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए इस दिन को इंजीनियर्स डे के नाम पर समर्पित किया गया। इन्हें एक अच्छे इंजिनियर के तौर पर सफलतम कार्य करने हेतु 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
इन दिन को मनाने का लक्ष्य हमारे देश के युवाओं को इंजीनियरिंग के करियर के प्रति प्रेरित करना है और जिन इंजीनियरों ने हमारे देश के उत्थान में अपना योगदान दिया गया है उनकी सराहना करना है।
किस देश में कब मनाया जाता है इंजिनियर डे
भारत देश में इंजिनियर डे 15 सितंबर को मनाया जाता है उसी प्रकार विश्व के कई देशों में इंजिनियर डे मनाया जाता है। आइये जानते है की किस देश में कब मनाया जाता है इंजिनियर डे –
देश तारीख
अर्जेंटीना 16 जून
बांग्लादेश 7 मई
बेल्जियम 20 मार्च
कोलंबिया 17 अगस्त
आइसलैंड 10 अप्रैल
ईरान 24 फ़रवरी
इटली 15 जून
मैक्सिको 1 जुलाई
पेरू 8 जून
रोमानिया 14 सितम्बर
तुर्की 5 दिसम्बर
मोक्षमुंडम विश्वेश्वरैया
भारत देश में इंजिनियर डे महान इंजिनियर और राजनेता मोक्षमुंडम विश्वेश्वरैया की याद में मनाया जाता है, तो चलिए इनके जीवन को करीब से जानते है।
मोक्षमुंडम विश्वेश्वरैया जीवन परिचय (Mokshagundam Visvesvaraya biography in hindi) –
एम् विश्वेश्वरैया भारत के महान इंजिनियरों में से एक थे, इन्होंने ही आधुनिक भारत की रचना की और भारत को नया रूप दिया। उनकी दृष्टि और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में समर्पण भारत के लिए कुछ असाधारण योगदान दिया।
क्रमांक जीवन परिचय बिंदु विश्वेश्वरैया जीवन परिचय
1. पूरा नाम मोक्षमुंडम विश्वेश्वरैया
2. जन्म 15 सितम्बर, 1960
3. जन्म स्थान मुद्देनाहल्ली गाँव, कोलर जिला, कर्नाटका
4. माता-पिता वेंकचाम्मा – श्रीनिवास शास्त्री
5. मृत्यु 14 अप्रैल 1962
मोक्षमुंडम विश्वेश्वरैया की शिक्षा
विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितम्बर को 1860 में मैसूर रियासत में हुआ था, जो आज कर्नाटका राज्य बन गया है। इनके पिता श्रीनिवास शास्त्री संस्कृत विद्वान और आयुर्वेदिक चिकित्सक थे। इनकी माता वेंकचाम्मा एक धार्मिक महिला थी। जब विश्वेश्वरैया 15 साल के थे, तब उनके पिता का देहांत हो गया था। चिकबल्लापुर से इन्होंने प्रायमरी स्कूल की पढाई पूरी की, और आगे की पढाई के लिए वे बैंग्लोर चले गए। 1881 में विश्वेश्वरैया ने मद्रास यूनिवर्सिटी के सेंट्रल कॉलेज, बैंग्लोर से बीए की परीक्षा पास की। इसके बाद मैसूर सरकार से उन्हें सहायता मिली और उन्होंने पूना के साइंस कॉलेज में इंजीनियरिंग के लिए दाखिला लिया। 1883 में LCE और FCE एग्जाम में उनका पहला स्थान आया। (ये परीक्षा आज के समय BE की तरह है)
मोक्षमुंडम विश्वेश्वरैया का करियर –
इंजीनियरिंग पास करने के बाद विश्वेश्वरैया को बॉम्बे सरकार की तरफ से जॉब का ऑफर आया, और उन्हें नासिक में असिस्टेंट इंजिनियर के तौर पर काम मिला। एक इंजीनियर के रूप में उन्होंने बहुत से अद्भुत काम किये। उन्होंने सिन्धु नदी से पानी की सप्लाई सुक्कुर गाँव तक करवाई, साथ ही एक नई सिंचाई प्रणाली ‘ब्लाक सिस्टम’ को शुरू किया। इन्होने बाँध में इस्पात के दरवाजे लगवाए, ताकि बाँध के पानी के प्रवाह को आसानी से रोका जा सके। उन्होंने मैसूर में कृष्णराज सागर बांध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऐसे बहुत से और कार्य विश्वेश्वरैया ने किये, जिसकी लिस्ट अंतहीन है।
1903 में पुणे के खड़कवासला जलाशय में बाँध बनवाया। इसके दरवाजे ऐसे थे जो बाढ़ के दबाब को भी झेल सकते थे, और इससे बाँध को भी कोई नुकसान नहीं पहुँचता था। इस बांध की सफलता के बाद ग्वालियर में तिगरा बांध एवं कर्नाटक के मैसूर में कृष्णा राजा सागरा (KRS) का निर्माण किया गया। कावेरी नदी पर बना कृष्णा राजा सागरा को विश्वेश्वरैया ने अपनी देख रेख में बनवाया था, इसके बाद इस बांध का उद्घाटन हुआ. जब ये बांध का निर्माण हो रहा था, तब एशिया में यह सबसे बड़ा जलाशय था।
1906-07 में भारत सरकार ने उन्हें जल आपूर्ति और जल निकासी व्यवस्था की पढाई के लिए ‘अदेन’ भेजा। उनके द्वारा बनाये गए प्रोजेक्ट को अदेन में सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया गया। हैदराबाद सिटी को बनाने का पूरा श्रेय विश्वेश्वरैया जी को ही जाता है। उन्होंने वहां एक बाढ़ सुरक्षा प्रणाली तैयार की, जिसके बाद समस्त भारत में उनका नाम हो गया। उन्होंने समुद्र कटाव से विशाखापत्तनम बंदरगाह की रक्षा के लिए एक प्रणाली विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
विश्वेश्वरैया को मॉडर्न मैसूर स्टेट का पिता कहा जाता था। इन्होने जब मैसूर सरकार के साथ काम किया, तब उन्होंने वहां मैसूर साबुन फैक्ट्री, परजीवी प्रयोगशाला, मैसूर आयरन एंड स्टील फैक्ट्री, श्री जयचमराजेंद्र पॉलिटेक्निक संस्थान, बैंगलोर एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, स्टेट बैंक ऑफ़ मैसूर, सेंचुरी क्लब, मैसूर चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स एवं यूनिवर्सिटी विश्वेश्वरैया कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग की स्थापना करवाई।
इसके साथ ही और भी अन्य शैक्षिणक संस्थान एवं फैक्ट्री की भी स्थापना की गई। विश्वेश्वरैया ने तिरुमला और तिरुपति के बीच सड़क निर्माण के लिए योजना को अपनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
दीवान ऑफ़ मैसूर (Diwan of Mysore) –
1908 में विश्वेश्वरैया ने अपने काम से थोड़े समय का ब्रेक लिया और विदेश यात्रा में चले गए, यहाँ उन्होंने देश के औद्योगिक विकास के बारे में गहन चिंतन किया। विदेश से लौटने के बाद इन्होने थोड़े समय के लिए हैदराबाद के निज़ाम के रूप में कार्य किया। उस समय हैदराबाद की मूसी नदी से बाढ़ का अत्याधिक खतरा था, तब विश्वेश्वरैया जी ने इससे बचाव के लिए उपाय सुझाये। नवम्बर 1909 में विश्वेश्वरैया जी को मैसूर राज्य का मुख्य इंजिनियर बना दिया गया। इसके बाद 1912 में विश्वेश्वरैया जी को मैसूर रियासत का दीवान बना दिया गया, वे इस पद पर सात सालों तक रहे। उन्होंने 1918 में इस पद से इस्तीफा दे दिया।
मैसूर के राजा कृष्णराजा वोदेयार की मदद से विश्वेश्वरैया जी ने मैसूर राज्य के विकास के क्षेत्र में अनेकों कार्य किये. उन्होंने उपर बताये गए कार्यों के अलावा भी, बहुत से सामाजिक कार्य किये। इन्होने 1917 में बैंग्लोर में सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की, यह देश का पहला सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज था। बाद में इस कॉलेज का नाम बदल कर यूनिवर्सिटी विश्वेश्वरैया कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग रखा गया। विश्वेश्वरैया जी ने मैसूर स्टेट में नयी रेलवे लाइन की भी स्थापना की। मैसूर के दीवान के रूप में, वे राज्य के शैक्षणिक और औद्योगिक विकास के लिए अथक प्रयासरत रहे।
विश्वेश्वरैया जी का व्यक्तित्व –
एम् विश्वेश्वरैया जी बहुत साधारण तरह के इन्सान थे। जो एक आदर्शवादी, अनुशासन वाले व्यक्ति थे। वे शुध्य शाकाहारी और नशा से बहुत दूर रहते थे। विश्वेश्वरैया जी समय के बहुत पाबंद थे, वे 1 min भी कही लेट नहीं होते थे। वे हमेशा साफ सुथरे कपड़ों में रहते थे। उनसे मिलने के बाद उनके पहनावे से लोग जरुर प्रभावित होते थे। वे हर काम को परफेक्शन के साथ करते थे. यहाँ तक की भाषण देने से पहले वे उसे लिखते और कई बार उसका अभ्यास भी करते थे।
वे एकदम फिट रहने वाले इन्सान थे। 92 साल की उम्र में भी वे बिना किसी के सहारे के चलते थे, और सामाजिक तौर पर एक्टिव भी थे। उनके लिए काम ही पूजा थे, अपने काम से उन्हें बहुत लगाव था। उनके द्वारा शुरू की गई बहुत सी परियोजनाओं के कारण भारत आज गर्व महसूस करता है, उनको अगर अपने काम के प्रति इतना दृढ विश्वास एवं इक्छा शक्ति नहीं होती तो आज भारत इतना विकास नहीं कर पाता। भारत में उस ब्रिटिश राज्य था, तब भी विश्वेश्वरैया जी ने अपने काम के बीच में इसे बाधा नहीं बनने दिया, उन्होंने भारत के विकास में आने वाली हर रुकावट को अपने सामने से दूर किया था।
एम् विश्वेश्वरैया जी अवार्ड (Mokshagundam Visvesvaraya awards) –
- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1955 में विश्वेश्वरैया जी को भारत के सबसे बड़े सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था।
- लन्दन इंस्टीट्यूशन सिविल इंजीनियर्स की तरफ से भी विश्वेश्वरैया जी को सम्मान दिया गया था।
- इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस की तरह से भी विश्वेश्वरैया जी को सम्मानित किया गया।
- विश्वेश्वरैया जी कर्नाटका के सबसे प्रसिद्ध लोगों में से एक है।
- इसके अलावा देश के आठ अलग अलग इंस्टिट्यूट के द्वारा उन्हें डोक्टरेट की उपाधि दी गई।
- विश्वेश्वरैया जी के 100 साल के होने पर भारत सरकार ने उनके सम्मान में स्टाम्प निकाला।
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