Sal Tree in Hindi – साल के पेड़ (Sal Tree in Hindi) को इंग्लिश में शोरिया रोबुस्टा (Shorea Robusta) कहते है, कुछ जगहों पर इसे शाला भी कहते है। शाल कहे या साल की लकड़ी, इसके औषधीकारक गुण अनगिनत होते हैं। आज के लेख हम आपको बता रहे है की साल का पेड़ क्या होता है, कहां पाया जाता है, इसकी विशेषताएं और साल के पेड़ के उपयोग। साल के पेड़ (Sal Tree In Hindi) की जानकारी के लिए लेख को पूरा अवश्य पढ़े।
साल क्या होता है-(Sal Tree in Hindi)
चरकसंहिता में शाल का वर्णन मिलता है। यह 18-30 मी तक ऊँचा, अत्यधिक विशाल, पर्णपाती वृक्ष होता है। इसकी लकड़ी का प्रयोग घर बनाने के लिए किया जाता है। इसके पौधे से एक प्रकार का पारदर्शी तथा स्वच्छ निर्यास मिलता है जिसे राल कहते हैं। शाल मुलायम छालों वाला पेड़ होता है। शाल में सफेद और लाल रंग के फूल होते हैं। शाल के बीज, बीज का तेल, तने का छाल, पत्ता, फूल और कांडसार का उपयोग आयुर्वेद में कई बीमारियों के लिए इलाज स्वरुप प्रयोग किया जाता है।
साल कहां पाया और उगाया जाता है-
यह उष्णकटिबंधीय हिमालय क्षेत्रों में लगभग 1700 मी तक की ऊँचाई पर प्राप्त होता है।
साल वृक्ष एक अर्ध-पर्णपाती और द्विबीजपत्री बहुवर्षीय वृक्ष है। इस वृक्ष की उपयोगिता मुख्यत: इसकी लकड़ियाँ हैं, जो अपनी मजबूती तथा प्रत्यास्थता के लिए प्रख्यात हैं। तरुण वृक्षों की छाल से प्रास लाल रंग और काले रंग का पदार्थ रंजक के काम आता है। साल वृक्ष के बीज, जो वर्षा के आरंभ काल में पकते हैं, विशेषकर अकाल के समय अनेक जगहों पर भोजन के रूप में काम आते हैं। आदिवासियों के लिए यह वृक्ष किसी ‘कल्प वृक्ष’ से कम नहीं है। इसकी टहनी से निकलने वाला रस प्यास बुझाने के काम भी आता है।
मुख्य क्षेत्र-
यह भारतीय उपमहाद्वीप के लिए स्थानिक है जो पूर्व में नेपाल, बांग्लादेश और भारत में म्यांमार से हिमालय के दक्षिण में स्थित है। यह भारत में असम, ओडिशा, बंगाल और हरियाणा में झारखंड के पश्चिम में शिवालिक पहाड़ियों से फैला हुआ है। यह पूर्वी घाटों और मध्य भारत के पूर्वी विंध्य और सतपुड़ा श्रेणियों तक फैला हुआ है। नेपाल में, यह उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में शिवालिक पहाड़ी में पूर्व से पश्चिम तक तराई क्षेत्र में पाया जाता है। उत्तरी भारत में, यह ओडिशा, मध्य प्रदेश और झारखंड में पाया जाता है। हिमालय की तलहटी से लेकर तीन से चार हज़ार फुट की ऊँचाई तक और उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार तथा असम के जंगलों में यह प्रमुखता से उगता है।
जल का स्रोत-
आदिवासियों के लिए साल वृक्ष किसी ‘कल्प वृक्ष’ से कम नहीं है। भरी गर्मी में घने जंगलों में जब कंठ सूखने लगे और पीने का पानी न हो तो साल वृक्ष की टहनी से बूँद-बूँद टपकने वाले रस को दोने में एकत्र कर ग्रामीण अपनी प्यास बुझा लेते हैं। यह परंपरागत तरीका वर्षों से आदिवासी अपनाए हुए हैं। जंगलों में कोसा, सालबीज, धूप, तेंदूपत्ता सहित विविध वनोपज संग्रह के लिए पहुँचने वाले ग्रामीण आमतौर पर पानी साथ लेकर नहीं जाते। ये लोग जंगल में पहुँचते ही साल वृक्ष के पत्ते का दोना तैयार करते हैं, तत्पश्चात् पत्तों से लदी साल की टहनी काटकर उल्टा लटका देते हैं। कटी हुई टहनी का रस बूँद-बूँद टपकता है, जिससे दोना भर जाता हैं और ग्रामीण अपनी प्यास बुझा लेते हैं। साल वृक्ष से प्राप्त जल (रस) हल्का कसैला होता है, परंतु नुकसानदेह नहीं होता। इसीलिए साल वृक्ष के रस का उपयोग सदियों से किया जा रहा है।
साल वृक्ष लाभदायक वृक्ष-
साल वृक्ष मानव के लिए बहुत ही लाभदायक है, जैसे- इससे प्राप्त पत्ता, पल, लकड़ी, धूप, दातून यहाँ तक पानी भी संग्रहित किया जाता है।साल वृक्षों की जड़ों के आस-पास उपजने वाला मशरूम एक प्रिय सब्जी है, जो 300 रुपए किलोग्राम तक बिकती है। साल वृक्ष के पत्तों से दोने में उतरा साल रस एक प्रकार से पूर्ण भोजन है, जिसे शर्करा भोजन कहा जा सकता है। इसमें प्रोटीन को छोड़ कर शेष सभी तत्व होते हैं। यह रस जमीन से वृक्ष द्वारा तत्व युक्त जल है। इसके सेवन से कोई हानि नहीं होती है।
साल पेड़ की विशेषताएं-
इस वृक्ष का विशेष और मुख्य लक्षण यह है कि ये अपने आपको विभिन्न प्राकृतिक वासकारकों के अनुकूल बना लेता है, जैसे- 9 सें.मी. से लेकर 508 सें.मी. वार्षिक वर्षा वाले स्थानों से लेकर अत्यंत उष्ण तथा ठंढे स्थानों तक में यह आसानी से उगता है। भारत, बर्मा तथा श्रीलंका में इसकी कुल मिलाकर नौ जातियाँ हैं, जिनमें ‘शोरिया रोबस्टा’ प्रमुख है। कुछ भारतीय राज्यों यानी झारखंड, उड़ीसा और मध्य प्रदेश के अर्थशास्त्र में इसकी प्रमुख भूमिका है।
साल एक पर्णपाती पेड़ है जो 5 मीटर तक स्टेम परिधि के साथ 50 मीटर ऊंचा मापता है। सामान्य परिस्थितियों में, यह 1.5 से 2 मीटर की परिधि के साथ 18 से 32 मीटर की ऊंचाई प्राप्त करता है। स्टेम साफ है, बेलनाकार और सीधे epimoric शाखाओं के साथ। छाल गहरे भूरे रंग की होती है। इसे वृद्धि के लिए औसत तापमान 22-47 forC की आवश्यकता होती है। इसके लिए औसत वार्षिक वर्षा लगभग 3000 मिमी और अधिकतम 6600 मिमी होनी चाहिए। यह गहरी, नम, थोड़ा अम्ल, अच्छी तरह से सूखा और रेतीले से लेकर मिट्टी से भरा हुआ है। पत्तियां नाजुक हरे, लाल, चमकदार, सरल और लगभग 10-25 सेमी लंबी होती हैं। आधार पर मोटे तौर पर अंडाकार होते हैं, जो लंबे समय तक शीर्ष पर होते हैं। फूल बड़े टर्मिनल या एक्सिलरी रेसमोस पैंसिल में सफेद से पीले रंग के होते हैं। फल १.३-१.५ सेमी लंबा और १ सेंटीमीटर व्यास के व्यास में घिरा होता है, जो पांच असमान पंखों से ५ से about.५ सेंटीमीटर लंबा होता है। बीज कैलेक्स और पंखों के साथ भूरे रंग के होते हैं।
यह भी पढ़े – साल के पेड़ के फायदे और नुकसान
अन्य भाषाओं में साल के नाम-
शाल का वानास्पतिक नाम Shorea robusta Roxb. ex Gaertn. f. (शोरिया रोबुस्टा) है। शाल Dipterocarpaceae (डिप्टेरोकार्पेसी) कूल का होता है। शाल को अंग्रेजी में Sal tree (साल ट्री) कहते हैं लेकिन शाल भारत के भिन्न-भिन्न प्रांतों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। जैसे-
संस्कृत (Sanskrit) – अश्वकर्ण, साल, कार्श्य, धूपवृक्ष, सर्ज
हिंदी (Hindi) – शालसार, साल, साखू, सखुआ
उर्दू (Urdu) – राल (Ral)
ओरिया (Odia) – सगुआ (Sagua), सल्वा (Salwa)
कन्नड़ (Kannada) – असीना (Asina), गुग्गुला (Guggula), काब्बा (kabba)
गुजराती (Gujrati) – राल (Ral), राला (Raala)
तेलुगु (Telegu) – जलरि चेट्टु (Jalarichettu), सरजमू (Sarjamu), गुगल (Gugal)
तमिल (Tamil) – शालम (Shalam), कुंगिलियम् (Kungiliyam), अट्टम (Attam)
बंगाली (Bengali) – साखू (Sakhu), साल (Sal), सलवा (Salwa), शालगाछ (Shalgach), तलूरा (Talura)
नेपाली (Nepali) – सकब (Sakab), साकवा (Sakwa)
पंजाबी (Panjabi) – साल (Sal), सेराल (Seral)
मराठी (Marathi) – गुग्गीलू (Guggilu), सजारा (Sajara), राला (Rala), रालचा वृक्ष (Ralacha vriksha)
मलयालम (Malayalam) – मारामारम (Maramaram), मूलापूमारुतु (Mulappumarutu)
अंग्रेजी (English) – कॉमन शाल (Common shal), इण्डियन डैमर (Indian dammer)
अरबी (Arbi – कैकहर (Kaikahr)
फ़ारसी (Persian) – लालेमोआब्बरी (Lalemoabbari), लाले मोहारी (Lalemohari)
साल के पेड़ के उपयोग-
- छाल और पत्तियां अल्सर, घाव, खांसी, कुष्ठ, कान का दर्द, प्रमेह और सिरदर्द के लिए सहायक हैं।
- पेचिश, दस्त और योनि स्राव के लिए छाल का उपयोग करें।
- फलों का उपयोग सेमिनल कमजोरी, ट्यूबरकुलर अल्सर, डर्मोपैथी और जलन के लिए किया जाता है।
- पित्त, अल्सर, घाव, जलने, नसों का दर्द, बुखार, पेचिश, दस्त, मोटापा, स्प्लेनोमेगाली, मोटापा और आंखों की जलन की स्थिति में इसका उपयोग करें।
- आयुर्वेद में पेचिश और रक्तस्राव बवासीर के इलाज के लिए इसका उपयोग चीनी या शहद के साथ किया जाता है ।
- सूजाक और कमजोर पाचन के लिए इसका उपयोग करें।
- कान की समस्याओं और दस्त के लिए फल के रूप में छाल काढ़े को लागू करें
- इसे उबले हुए दूध के साथ मिलाएं और खांसी, ब्रोंकाइटिस, बवासीर और ल्यूकोरिया के इलाज के लिए इसका इस्तेमाल करें।
- रेसिन का उपयोग गोनोरिया, पेचिश, दांत दर्द और फोड़े के इलाज के लिए किया जाता है।
- पेचिश के इलाज के लिए पान के रस का उपयोग करें।
- पत्तियों का उपयोग शरीर के सूजे हुए क्षेत्रों पर पुल्टिस के रूप में करें।
- पेचिश के इलाज के लिए इसे बच्चों के पेट में लगाएं।
- त्वचा की समस्याओं के उपचार के लिए बीज के तेल का उपयोग किया जाता है।
- खूनी दस्त, गर्भाशय के निर्वहन और रक्तस्राव बवासीर के लिए आंतरिक रूप से गोंद राल लें
गम राल को त्वचा के फटने, संक्रमित घाव और अल्सर पर भी लगाया जाता है। - टाइफाइड के इलाज के लिए छाल की चाय को पांच दिनों तक लें।
- इसका उपयोग फ़ुट केयर क्रीम के रूप में भी किया जाता है।
- फलों का उपयोग मिर्गी, अत्यधिक लार और क्लोरोसिस के इलाज के लिए किया जाता है।
- दंत समस्याओं के इलाज के लिए बीज पाउडर का उपयोग करें।
- बीज उबला हुआ, भुना हुआ या आटे में डाला जाता है।
- डोलिचोस बिफ्लोरस के फल और बसिया लतीफोलिया के फूलों के साथ बीज उबालकर दलिया बनाएं।
- पिसे हुए आटे का इस्तेमाल रोटी बनाने के लिए किया जाता है।
- बीज का उपयोग तेल निकालने के लिए किया जाता है।
- एक अध्ययन से यह होता है कि यह श्वेतप्रदर या लिकोरिया में लाभदायक है। 18-50 वर्ष की 52 महिलाओं में इसका प्रयोग राल चूर्ण के रूप में 1 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार किया गया तथा इसकी छाल के काढ़े से योनि को धोया जाता है। 10 वें दिन 50 प्रतिशत, 20 वें दिन 80 प्रतिशत तथा 30 दिनों के पश्चात् 100 प्रतिशत सफलता की प्राप्ति हुई।
- बीज का तेल चॉकलेट बनाने में कोकोआ मक्खन के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है ।
मात्रा – Dosage
पाउडर: 3-5 ग्राम
काढ़ा: 50-100 मिली
गोंद-राल: 1-3 ग्राम
शाल का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए-
बीमारी के लिए शाल के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए शाल का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
चिकित्सक के परामर्श के अनुसार
-शाक के छाल का 15-30 मिली काढ़ा,
-5-10 मिली रस,
-2-4 ग्राम चूर्ण का सेवन कर सकते हैं।
शाल के उपयोगी भाग-
आयुर्वेद में शाल के बीज, बीज तेल, तने की छाल, पत्ता, फूल का प्रयोग औषधि के लिए किया जाता है।
Join the Discussion!