Bansuri Ban Jau – मनीष नंदवाना ‘चित्रकार’ राजसमंद द्वारा रचित कविता ‘बांसुरी बन जाऊं’
‘बांसुरी बन जाऊं’ (Bansuri Ban Jau)
जी चाहता है,बांसुरी बन जाऊं|
तेरे अधरों पर सज जाऊं|
अधर सुधारस पी पी कर के|
मधु सुमधुर सुर बरसाऊं|
जी चाहता है,बांसुरी बन जाऊं|1|
जी चाहता है,पुष्प बन जाऊं|
सुमन सुगंध से सांसें महकाऊं|
मनमोहक मनोहर माला बन|
श्रृंगारित तन का अंग बन जाऊं|
जी चाहता है,बांसुरी बन जाऊं|2|
जी चाहता है,पितांबर बन जाऊं|
कोमल काया से
लिपटाऊं|
अंग अंग तेरा छू छू कर मैं|
तन अंग संग लहराती जाऊं|
जी चाहता है,बांसुरी बन जाऊं|3|
जी चाहता है,मुकुट बन जाऊं|
तेरे सिर की शोभा को पाऊं|
मोरपंख से सजधज कर|
अपने भाग्य पर खुब इतराऊं|
जी चाहता है,बांसुरी बन जाऊं|4|
जी चाहता है,राधा बन जाऊं|
तेरे सपनों में खो जाऊं|
तुझसे प्रेम करुं इतना|
तुम मैं, मैं तुम हो जाऊं|
जी चाहता है,बांसुरी बन जाऊं|5|
जी चाहता है,मीरा बन जाऊं|
तेरी सुरत पर मर जाऊं|
तेरे प्रेम की दीवानी बन|
सुंदर मूरत में मिल जाऊं|
जी चाहता है,बांसुरी बन जाऊं|6|
जी चाहता है,गोकुल बन जाऊं|
लकुटी कंबल धेनु बन जाऊं|
कालिंदी,कदंब की डाल बनु मैं|
सखा बनु संग खेलने जाऊं|
जी चाहता है,बांसुरी बन जाऊं|7|
मनीष नंदवाना ‘चित्रकार’
मनीष नंदवाना ‘चित्रकार’ राजसमंद द्वारा रचित रचनाएं-
- रुढ़ कर तुम मुझसे कहां जाओगी
- काह्ना
- कही से महक आई हैं
- जन जन झूम रहा हैं
- ‘मुझे अच्छा लगता हैं’
- ‘भारत पुण्य धरा हैं प्यारी’
- प्रेम गीत – ‘संझा देखो फूल रहीं है’
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