Nachta Basant Poem In Hindi – मनीष नंदवाना ‘चित्रकार’ राजसमंद द्वारा रचित रचना ‘नाचता बसंत’
‘नाचता बसंत’ (Nachta Basant)
कोपल में, कलियों में, कोयल की कुहू – कुहू में,
गांव की गलियों में घूमता बसंत हैं|
पुष्पों में, पुंजों में, पराग में, पाहन में,
झरने की झर – झर में झरता बसंत हैं|
तुझ में, मुझ में, लता और कुंज में,
प्रकृति के अंग – अंग में नाचता बसंत हैं|
भुजा में भुजबंध को, कलाई में कंगन को,
पांव की पायल को, पूजता बसंत हैं|
कमर कन्दौरे में, गोरे – गोरे गालों में,
बालों के झालों में, झूमता बसंत हैं|
तुझ में, मुझ में, लता और कुंज में,
प्रकृति के अंग – अंग में नाचता बसंत हैं|
श्रृंगार में, ना संयोग में, प्रेमी के वियोग में,
प्रेमिका को पीड़ा पहुंचाता बसंत हैं|
कोयल की बोली भी, कर्णकटू लगती हैं|
आंखों से आंसू बहाता बसंत हैं|
तुझ में, मुझ में, लता और कुंज में,
प्रकृति के अंग – अंग में नाचता बसंत हैं|
हवा की हरकत में, दिन में, दिवाकर में,
नैनों से नैनों में नाचता बसंत हैं|
गोरा और गोरी में, इशारों – इशारों में,
नजर से नजर में नाचता बसंत हैं|
तुझ में, मुझ में, लता और कुंज में,
प्रकृति के अंग – अंग में नाचता बसंत हैं|
गोकुल में, ग्वाल में, गोपी में, गोपाल में,
सुबह में, सांझ में, शरमाता बसंत हैं|
ताल तट तन्हाई में, राधा के मन को,
वियोग में, रैन में, रुलाता बसंत हैं|
तुझ में, मुझ में, लता और कुंज में,
प्रकृति के अंग – अंग में, नाचता बसंत हैं|
मनीष नंदवाना ‘चित्रकार’
राजसमन्द
मनीष नंदवाना ‘चित्रकार’ राजसमंद द्वारा रचित रचनाओं का संग्रह
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