Nirjan-Van Poem In Hindi – मनीष नंदवाना ‘चित्रकार’ राजसमंद द्वारा रचित रचना ‘निर्जन – वन’
‘निर्जन – वन’ (Nirjan-Van)
जंगल वन एकांत निर्जन
रहता नहीं जहां कोई जन
गगनचुम्बी जहां वृक्ष खड़े हैं
विशालकाय सघन बड़े हैं
झर झर झर झर झरता रहता
प्रतिपल निर्झर बहता रहता
शहर बस्ती से बहुत दूर
जहां शांति हैं भरपूर
सरिता का बहता पल पल
जल अपनी मस्ती में कल कल
सरस सरल सुन्दर लगता हैं
मनमोहक वन का आनन
जंगल वन एकांत निर्जन
रहता नहीं जहां कोई जन
कहीं चिड़ियां चहक रही हैं
गुलों की गंध महक रहीं हैं
गिलहरियों का आना जाना
बयां के घर का ताना बाना
कभी मंद मंद पवन का बहना
मृदुल स्वर में कोयल का कहना
कहीं बंदर की उछल कूद
खग बैठा कोई नयन मूंद
तोते की टें टें की बोली
मुख से लाल जिह्वा बोली
ऐसा अनोखा अचरज भरा हैं
कानन की काया का सृजन
जंगल वन एकांत निर्जन
रहता नहीं जहां कोई जन
मनीष नंदवाना ‘चित्रकार’
राजसमंद
मनीष नंदवाना ‘चित्रकार’ राजसमंद द्वारा रचित रचनाएं-
- मंदिर का आंगन
- ‘बांसुरी बन जाऊं’
- सूरज आंख मिचोली करता
- नव वर्ष पर कविता
- नहीं होता
- ‘जहां से तू गुजर जाएं’
यह भी पढ़े –
Join the Discussion!