Advertisements123
ग़ज़ल – इक लगन तिरे शहर में जाने की लगी हुई थी (Ik Lagan Tire Shahar Me Jane Ki Lagi Hui Thi)
Advertisements123
ग़ज़ल
इक लगन तिरे शहर में जाने की लगी हुई थी
इक लगन तिरे शहर में जाने की लगी हुई थी,
आज जा के देखा मुहब्बत कितनी बची हुई थी।
Advertisements123
आपसे जहाँ बात फिर मिलने की कभी हुई थी,
आज मैं देखा गर्द उन वादों पर जमी हुई थी।
लग रही थी हर रहगुज़र वीराँ हम जहाँ मिले थे,
सिर्फ़ ख़ूब-रू एक याद-ए-माज़ी सजी हुई थी।
Advertisements123
सोचता हूँ तक़दीर कितनी थी मेहरबान हम पर,
क्यूँ मगर ये तक़दीर अपनी उस दिन क़सी हुई थी।
आपको भी आ कर ज़रूरी था एक बार मिलना,
चौक पर वही चाय मन-भावन भी बनी हुई थी।
Advertisements123
Advertisements123
– अमित राज श्रीवास्तव ‘अर्श’
- Amit Raj Shrivastava Best Shayari
- कविता – नज़ारें
- इश्क़ से गर यूँ डर गए होते
- सुनो तो मुझे भी ज़रा तुम
- तो देखते
Related posts:
ग़ज़ल - तो देखते (To Dekhte) - अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श'
पुष्प वाटिका में सीया राम - मनीष नंदवाना 'चित्रकार'
सुनो तो मुझे भी ज़रा तुम -अमित राज श्रीवास्तव
ग़ज़ल - इश्क़ से गर यूँ डर गए होते
मनीष नंदवाना 'चित्रकार' राजसमंद द्वारा रचित रचनाओं का संग्रह
समधी का खत - आचार्य डा.अजय दीक्षित "अजय"
उड़ान से पहले - बस्ती कुम्हारों की Basti kumharon ki
उड़ान से पहले - भाई बिना तुम्हारे Bhai Bina Tumhare
दर्द का इस रूह से रिश्ता पुराना हो गया - आचार्य डा.अजय दीक्षित "अजय"
कलियुग की माया - आचार्य डा.अजय दीक्षित "अजय"
Advertisements123
Advertisements123
Advertisements123
Join the Discussion!