Traditions of Karwa Chauth in Hindi | हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है। करवा चौथ के पर्व से जुडी कई ऐसी परम्पराएं है जिनका पालन सदियों से होता आ रहा है। यहां हम करवा चौथ से जुडी कुछ ऐसी ही परम्पराओं और उनके पीछे छिपे भावार्थ को जानेंगे।
महिलायें क्यों करती है चाँद की पूजा-
करवा चौथ के दिन महिलाएं चंद्रमा की पूजा कर अपना व्रत खोलती हैं। इस दिन चंद्रमा की ही पूजा क्यों की जाती है? इस संबंध में कई कथाएं व किवंदतियां प्रचलित हैं। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा करने के संबंध में एक मनोवैज्ञानिक पक्ष भी है, जो इस प्रकार है-
रामचरितमानस के लंका कांड के अनुसार, जिस समय भगवान श्रीराम समुद्र पार कर लंका में स्थित सुबेल पर्वत पर उतरे और श्रीराम ने पूर्व दिशा की ओर चमकते हुए चंद्रमा को देखा तो अपने साथियों से पूछा – चंद्रमा में जो कालापन है, वह क्या है? सभी ने अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार जवाब दिया। किसी ने कहा चंद्रमा में पृथ्वी की छाया दिखाई देती है। किसी ने कहा राहु की मार के कारण चंद्रमा में कालापन है तो किसी ने कहा कि आकाश की काली छाया उसमें दिखाई देती है।
तब भगवान श्रीराम ने कहा- विष यानी जहर चंद्रमा का बहुत प्यारा भाई है (क्योंकि चंद्रमा व विष समुद्र मंथन से निकले थे)। इसीलिए उसने विष को अपने ह्रदय में स्थान दे रखा है, जिसके कारण चंद्रमा में कालापन दिखाई देता है। अपनी विषयुक्त किरणों को फैलाकर वह वियोगी नर-नारियों को जलाता रहता है।
इस पूरे प्रसंग का मनोवैज्ञानिक पक्ष यह है कि जो पति-पत्नी किसी कारणवश एक-दूसरे से बिछड़ जाते हैं, चंद्रमा की विषयुक्त किरणें उन्हें अधिक कष्ट पहुंचाती हैं। इसलिए करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा कर महिलाएं ये कामना करती हैं कि किसी भी कारण उन्हें अपने प्रियतम का वियोग न सहना पड़े। यही कारण है कि करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा करने का विधान है।
महिलाएं छलनी से क्यों देखती हैं अपने पति को
हिंदू धर्म में हर पर्व व व्रत के साथ कई परंपराएं देखने को मिलती हैं। इनमें से कुछ परंपराओं का वैज्ञानिक पक्ष होता है, कुछ का धार्मिक तो कई परंपराओं का मनोवैज्ञानिक पक्ष भी होता है। करवा चौथ पर छलनी से चंद्रमा व पति को देखकर पूजन करने के पीछे भी मनोवैज्ञानिक पक्ष ही निहित है।
परंपरा के अनुसार, करवा चौथ का पूजन करते समय सर्वप्रथम विवाहित महिलाएं छलनी से चंद्रमा को देखती हैं व बाद में अपने पति को। ऐसा करने के पीछे कोई वैज्ञानिक तर्क नहीं होता बल्कि पत्नी के ह्रदय की भावना होती है। पत्नी जब छलनी से अपने पति को देखती है तो उसका मनोवैज्ञानिक अभिप्राय यह होता है कि मैंने अपने ह्रदय के सभी विचारों व भावनाओं को छलनी में छानकर शुद्ध कर लिया है, जिससे मेरे मन के सभी दोष दूर हो चुके हैं और अब मेरे ह्रदय में पूर्ण रूप से आपके प्रति सच्चा प्रेम ही शेष है। यही प्रेम में आपको समर्पित करती हूं और अपना व्रत पूर्ण करती हूं।
करवे का पानी पीकर ही व्रत क्यों किया जाता है पूरा
मिट्टी का करवा पंच तत्व का प्रतीक है, मिट्टी को पानी में गला कर बनाते हैं जो भूमि तत्व और जल तत्व का प्रतीक है, उसे बनाकर धूप और हवा से सुखाया जाता है जो आकाश तत्व और वायु तत्व के प्रतीक हैं फिर आग में तपाकर बनाया जाता है।
भारतीय संस्कृति में पानी को ही परब्रह्म माना गया है, क्योंकि जल ही सब जीवों की उत्पत्ति का केंद्र है। इस तरह मिट्टी के करवे से पानी पिलाकर पति पत्नी अपने रिश्ते में पंच तत्व और परमात्मा दोनों को साक्षी बनाकर अपने दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने की कामना करते हैं।
सास बहु को क्यों खिलाती है सरगी
सरगी करवा चौथ की एक महत्वपूर्ण परंपरा है। पंजाब, कश्मीर आदि प्रदेशों में ये परंपरा अधिक प्रचलित है। इसके अंतर्गत सूर्योदय से पहले सास अपनी बहू को कुछ विशेष चीजें बनाकर खिलाती हैं जैसे- ड्राय फ्रूट्स की मिठाई, हलवा आदि। इसे ही सरगी कहते हैं। दरअसल इस परंपरा के पीछे का पक्ष भी मनोवैज्ञानिक है।
जब नई बहू घर में आती है तो उसके लिए करवा चौथ पर पूरे दिन भूखा-प्यासा रहना संभव नहीं होता। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सास अपनी बहू को व्रत शुरू होने से पहले ऐसी चीजें खिलाती हैं जिससे कि दिन भर शरीर को ऊर्जा मिलती रहे। इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि जब बहू गर्भवती होती है तो पूरे दिन निराहार रहने से गर्भ में पल रहे बच्चे को भी पोषण नहीं मिल पाता। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरगी की परंपरा प्रचलन में आई।
यह भी पढ़े-
- करवा चौथ शुभकामना संदेश | Karwa Chauth Wishes in Hindi
- Karva Chauth Vrat Katha | करवा चौथ व्रत कथा, व्रत विधि व महत्व
- Karwa Chauth Shayari | करवा चौथ शायरी
Join the Discussion!