Magh Sankashti Chaturthi Vrat Katha In Hindi | Magh Month Ganesh Chaturthi Story | Vrat Vidhi | संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है । माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाने वाला व्रत, माघ संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कहलाता है। भविष्य पुराण में कहा गया है कि जब मन संकटों से घिरा महसूस करे, तो गणेश चतुर्थी का व्रत करें । इससे कष्ट दूर होते हैं और धर्म, अर्थ, मोक्ष, विद्या, धन व आरोग्य की प्राप्ति होती है ।
माघ संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा | Magh Sankashti Chaturthi Vrat Katha In Hindi
ऋषि शर्मा ब्राह्मण की कथा | पार्वती जी ने पूछा कि हे वत्स! माघ महीने में किस गणेश की पूजा करनी चाहिए तथा इसका क्या नाम है? उस दिन पूजन में किस वस्तु का नैवेध अर्पित करना चाहिए? और क्या आहार ग्रहण करना चाहिए। इसे आप सविस्तार बतलाने की कृपा करे।
गणेश जी ने कहा कि हे माता! माघ में ‘भालचंद्र’ नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए। इनका पूजन षोडशोपचार विधि से करना चाहिए। हे माता पार्वती! इस दिन तिल के दस लड्डू बना लें। पांच लड्डू देवता चढ़ावे और शेष पांच ब्राह्मण को दान दे देवें। ब्राह्मण की पूजा भक्तिपूर्वक करके, उन्हें दक्षिणा देने के बाद उन पांच लड्डुओं को उन्हें प्रदान कर दें। हे देवी! तिल के दस लड्डुओं का स्वयं आहार करें। इस सम्बन्ध में मैं आपको राजा हरिश्चंद्र का वृतांत सुनाता हूँ।
सतयुग में हरिश्चंद्र नामक एक प्रतापी राजा हुए थे। वे सरल स्वभाव के एक सत्यनिष्ठ राजा थे। हे देवी! उनके शासन काल में अधर्म नाम की कोई वस्तु नहीं थी। उनके राज्य में कोई अपाहिज, दरिद्र या दुखी नहीं था। सभी लोग आधी व्याधि से रहित एवं दीर्धायु होते थे। उन्हीं के राज्य में एक ऋषिशर्मा नामक तपस्वी ब्राह्मण रहते थे। एक पुत्र प्राप्ति के बाद वे स्वर्गवासी हो गए। पुत्र का भरण-पोषण उनकी पत्नी करने लगी। वह विधवा ब्राह्मणी भिक्षाटन के द्वारा पुत्र का पालन-पोषण करती थी। उस ब्राह्मणी ने माघ मास की संकटा चतुर्थी का व्रत किया।
वह पतिव्रता ब्राह्मणी गोबर से गणेश जी की प्रतिमा बनाकर सदैव पूजन किया करती थी। हे पार्वती! भिक्षाटन के द्वारा ही उसने पूर्वोक्त रीति से तिल के दस लड्डू बनाये। इसी बीच उसका पुत्र गणेश जी की मूर्ति अपने गले में बांधकर स्वेच्छा से खेलने के लिए बाहर चला गया। तब एक नर पिशाच कुम्हार ने उस ब्राह्मणी के पांच वर्षीय बालक को जबरन पकड़कर अपने आवां में छोड़कर मिटटी के बर्तनों को पकाने के लिए उसमें आग लगा दी। इधर उसकी माता अपने बच्चों को ढूंढने लगी। उसे न पाकर वह बड़ी व्याकुल हुई। वह ब्राह्मणी विलाप करती हुई गणेश जी की पार्थना करने लगी। हे गणेश जी! आप इस दुःखिनी की रक्षा कीजिये। मैं पुत्र के वियोग में व्यथित हूँ। आप मेरी रक्षा कीजिये। वह ब्राह्मणी इसी प्रकार आधी रात तक विलाप करती रही। प्रातःकाल होने पर कुम्हार अपने पके हुए बर्तनों को देखने के लिए आया जब उसने आवां खोल के देखा तो उसमें जांघ भर पानी जमा हुआ पाया और इससे भी अधिक आश्चर्य उसे जब हुआ कि उसमें बैठे एक खेलते हुए बालक को देखा। ऐसी अद्भुत घटना देखकर वह भयवश कांपने लगा और इस बात की सुचना उसने राज दरबार में दी। उसने राज्य सभा में अपने कुकृत्य का वर्णन किया।
कुम्हार ने कहा- हे महाराज हरिश्चंद्र! मैं अपने दुष्कर्म के लिए वध योग्य हूँ। उसने आगे कहा-हे महाराज! कन्या के विवाह के लिए मैंने कई बार मिटटी के बर्तन पकाने के लिए आवां लगाया। परन्तु मेरे बर्तन कभी नहीं पके और सदैव कच्चे रहे गये। तब मैंने भयभीत होकर एक तांत्रिक से इसका कारण पूछा। उसने कहा कि चुपचाप किसी लड़के की तुम बलि चढ़ा दो, तुम्हारा आवां पाक जायेगा। मैंने सोचा कि मैं किसके बालक की बलि दूँ? जिसके बालक की बलि दूंगा वह मुझे क्योंकर जीवित छोड़ेगा? इसी भय से हे महाराज! मैंने दृढ़ निश्चय किया कि इसे ही बैठाकर आग लगा दूंगा। मैंने अपनी पत्नी से परामर्श किया कि ऋषिशर्मा ब्राह्मण मृत हो गए हैं। उनकी विधवा पत्नी भीख मांगकर अपना गुजारा करती है। अरी! वह लड़के को लेकर क्या करेगी? मैं यदि उसके पुत्र की बलि दे दूँ तो मेरे बर्तन पक जाएंगे। मैं इस जघन्य कर्म को करके रात में निश्चिन्त होकर सो गया। प्रातः जब मैंने आंवां खोलकर देखा तो क्या देखता हूँ कि उस लड़के को मैंने जिस स्तिथि में बैठा गया था, वह उसी तरह निर्भय भाव से बैठा है और उसमे जांघ भर पानी भरा हुआ हैं। इस भयावह दृश्य से मैं काँप उठा और इसकी सूचना देने आपके पास आया हूँ।
कुम्हार की बात सुनकर राजा बहुत ही विस्मित हुए और उस लड़के को देखने आए। बालक को प्रसन्नता पूर्वक खेलते देखकर मंत्री से राजा ने कहा कि यह क्या बात हैं? यह किसका लड़का हैं? इस बात का पता लगाएं.इस आंवे में जांघ भर जल कहाँ से आया? इसमें कमल के फूल कहाँ से खिल गये? इस दरिद्र कुम्हार के आंवें में हरी-हरी दूब कहाँ से उग गई। बालक को न तो आग की जलन हुई न तो इसे भूख-प्यास ही हैं। यह आंवे में भी वैसा ही खेल रहा हैं, मानो अपने घर में खेल रहा हो। राजा इस तरह की बात कह ही रहे थे कि वह ब्राह्मणी वहां बिलखती हुई आ पहुंची। वह कुम्हार को कोसने लगी। जिस प्रकार गाय अपने बछड़े रंभाती है, ठीक वही अवस्था उस बुढ़िया की थी। वह बुढ़िया बालक को गोद में लेकर प्यार करने लगी और कांपती हुई राजा के सामने बैठ गई।
राजा हरिश्चंद्र ने पूछा कि हे ब्राह्मणी! इस बालक के न जलने का क्या कारण हैं? क्या तू कोई जादू जानती है अथवा तूने कोई धर्माचरण किया हैं। जिसके कारण बच्चे को आंच तक नहीं आई?
राजा की बात सुनकर ब्राह्मणी ने कहा कि हे महाराज! मैं कोई जादू नहीं जानती और न तो कोई धर्माचरण, तपस्या, योग दान आदि की प्रक्रिया ही जानती हूँ। हे राजन! मैं तो संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करती हूँ। उसी व्रत के से मेरा पुत्र जीता-जागता बचा हैं। राजा ने सम्पूर्ण नगरवासियों को गणेश जी का व्रत करने का आदेश दिया। इस आश्चर्यजनक घटना के कारण सभी लोग उस दिन से प्रत्येक मास की गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगे। इस व्रत के प्रभाव से ब्राह्मणी ने अपने पुत्र के जीवन को पुनः पाया था।
इतना कहने के बाद श्रीकृष्ण ने कहा कि हे युधिष्ठिर! आप भी इस सर्वोत्तम व्रत को कीजिए। इस व्रत के प्रभाव से आपकी सभी कामनाएं पूर्ण होगी। आप मित्रों, पुत्रों, और पौत्रों को सुख देने वाले साम्राज्य को प्राप्त करेंगे। हे महाराज! जो लोग इस व्रत को करेंगे उन्हें पूर्ण सफलता मिलेगी। भगवान कृष्ण की बात से युधिष्ठिर बहुत प्रसन्न हुए और माघ कृष्ण गणेश चतुर्थी का व्रत करके निष्कंटक राज्य भोगने लगे।
माघ मास गणेश चतुर्थी व्रत पूजन विधि | Magh Month Ganesh Chaturthi Vrat Pujan Vidhi –
माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सकट का व्रत किया जाता है। इस दिन संकट हरण गणपति का पूजन होता है। इस दिन विद्या, बुद्धि, वारिधि गणेश तथा चंद्रमा की पूजा की जाती है। भालचंद्र गणेश की पूजा सकट चौथ को की जाती है। प्रात:काल नित्य क्रम से निवृत होकर षोड्शोपचार विधि से गणेश जी की पूजा करें।
अब निम्न श्लोक पढ़कर गणेश जी की वंदना करें|
गजाननं भूत गणादि सेवितं,कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥
इसके बाद भालचंद्र गणेश का ध्यान करके पुष्प अर्पित करें।
पूरे दिन मन ही मन श्री गणेश जी के नाम का जप करें । सुर्यास्त के बाद स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र पहन लें । अब विधिपूर्वक (अपने घरेलु परम्परा के अनुसार ) गणेश जी का पूजन करें । एक कलश में जल भर कर रखें । धूप-दीप अर्पित करें । नैवेद्य के रूप में तिल तथा गुड़ के बने हुए लड्डु, ईख, गंजी (शकरकंद), अमरूद, गुड़ तथा घी अर्पित करें।
यह नैवेद्य रात्रि भर बांस के बने हुए डलिया (टोकरी) से ढ़ंककर यथावत् रख दिया जाता है । पुत्रवती स्त्रियां पुत्र की सुख समृद्धि के लिये व्रत रखती है। इस ढ़ंके हुए नैवेद्य को पुत्र ही खोलता है तथा भाई बंधुओं में बांटता है। ऐसी मान्यता है कि इससे भाई-बंधुओं में आपसी प्रेम-भावना की वृद्धि होती है। अलग-अलग राज्यों मे अलग-अलग प्रकार के तिल और गुड़ के लड्डु बनाये जाते हैं। तिल के लड्डु बनाने हेतु तिल को भूनकर ,गुड़ की चाशनी में मिलाया जाता है ,फिर तिलकूट का पहाड़ बनाया जाता है, कहीं-कहीं पर तिलकूट का बकरा भी बनाते हैं। तत्पश्चात् गणेश पूजा करके तिलकूट के बकरे की गर्दन घर का कोई बच्चा काट देता है। गणेश पूजन के बाद चंद्रमा को कलश से अर्घ्य अर्पित करें। धूप-दीप दिखायें। चंद्र देव से अपने घर-परिवार की सुख और शांति के लिये प्रार्थना करें। इसके बाद एकाग्रचित होकर कथा सुनें अथवा सुनायें। सभी उपस्थित जनों में प्रसाद बांट दें।
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