Hiranyaksha And Hiranyakashipu Birth Story, Hindi, Kahnai :- शास्त्रों में सहवास करने का उचित समय बताया गया है। संधिकाल में उच्च स्वर, सहवास, भोजन, यात्रा, वार्तलाप शौचादि करने का निषेध बताया गया है। 24 घंटे में आठ प्रहर होते हैं। जब प्रहर बदलता है उसे संधि काल कहते हैं। प्रात: और शाम की संधि महत्वपूर्ण होती है। इसके अलावा महत्वपूर्ण तिथि, वार और नक्षत्र में भी उक्त कार्य नहीं करना चाहिए अन्यथा अनिष्ट ही होता है।
कहानी ययाति पुत्री माधवी की – नारी के यौन शोषण की एक पौराणिक कथा
एक बार दक्ष पुत्री दिति ने कामातुर होकर अपने पति मरीचिनंदन कश्यपजी से प्रणय निवेदन किया। उस वक्त कश्यप ऋषि संध्यावंदन की तैयारी कर रहे थे। शाम के इस वक्त को संध्या काल कहते हैं।
कश्यपजी ने कहा- तुम एक मुहूर्त ठहरो। यह अत्यंत घोर समय चल रहा है जबकि राक्षसादि प्रेत योनि की आत्माएं सक्रिय हैं और महादेवजी अपने तीसरे नेत्र से सभी को देख रहे होते हैं इसीलिए यह वक्त संध्यावंदन का है।
लेकिन दिति कामदेव के वेग से अत्यंत बेचैन हो बेबस हो रही थी। कश्यपजी ने तब कहा, इस संध्याकाल में जो पिशाचों जैसा आचरण करते हैं, वे नरकगामी होते हैं।
पति के इस प्रकार समझाने पर भी दिति नहीं मानी और निर्लज्ज होकर उसने कश्यपजी का वस्त्र पकड़ लिया। तब विवश होकर उन्होंने इस ‘शिव समय’ में देवों को नमस्कार किया और एकांत में दिति के साथ समागम किया।
सांपो के सम्पूर्ण कुल विनाश के लिए जनमेजय ने किया था ‘सर्प मेध यज्ञ’
समागम बाद दिति को इसका पश्चाताप हुआ। तब वह कश्यपजी के समक्ष सिर नीचा करके कहने लगी- ‘भूतों के स्वामी भगवान रुद्र का मैंने अपराध किया है, किंतु वह भूतश्रेष्ठ मेरे इस गर्भ को नष्ट न करें। मैं उनसे क्षमा मांगती हूं।’
फिर कश्यपजी बोले, ‘तुमने अमंगल समय में सहवास की कामना की इसलिए तुम्हारी कोख से दो बड़े ही अधम पुत्र जन्म लेंगे। तब उनका वध करने के लिए स्वयं जगदीश्वर को अवतार लेना होगा। 4 पौत्रों में से एक भगवान हरि का प्रसिद्ध भक्त होगा, 3 दैत्य होंगे।’
दिति को आशंका थी कि उसके पुत्र देवताओं के कष्ट का कारण बनेंगे अत: उसने 100 वर्ष तक अपने शिशुओं को उदर में ही रखा। इससे सब दिशाओं में अंधकार फैल गया। इस अंधकार को देख सभी देवता ब्रह्मा के पास पहुंचे और कहने लगे कि इसका निराकरण कीजिए।
पौराणिक कहानी: सेक्स कौन ज़्यादा एंजाय करता है – स्त्री या पुरुष?
ब्रह्मा ने कहा कि पूर्वकाल में सनकादि मुनियों को वैकुंठ धाम में जाने से विष्णु के पार्षदों जय और विजय ने अज्ञानतावश रोक दिया था। उन्होंने क्रुद्ध होकर उन दोनों पार्षदों को श्राप दे दिया कि वे अपना पद छोड़कर पापमय योनि में जन्म लेंगे। ये दोनों पार्षद ही पतित होकर दिति के गर्भ में बड़े हो रहे हैं।
सृष्टि में भयानक उत्पात और अंधकार के बाद दिति के गर्भ से सर्वप्रथम 2 जुड़वां पुत्र जन्मे हिरण्यकशिपु तथा हिरण्याक्ष। जन्म लेते ही दोनों पर्वत के समान दृढ़ तथा विशाल हो गए। ये दोनों ही आदि दैत्य कहलाए।
बाद में सिंहिका नामक एक पुत्री का जन्म हुआ। श्रीमद्भागवत के अनुसार इन 3 संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जो कि मरुन्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र नि:संतान रहे जबकि हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद।
Post Credit – hindi.webdunia.com
16 पौराणिक कथाएं – पिता के वीर्य और माता के गर्भ के बिना जन्मे पौराणिक पात्रों की
सम्पूर्ण पौराणिक कहानियाँ यहाँ पढ़े – पौराणिक कथाओं का विशाल संग्रह
Join the Discussion!