Ganga Dussehra Story, Vrat Katha, Pujan Vidhi | गंगा दशहरा काफी महत्वपूर्ण दिन होता है। इसी दिन गंगा नदी के पृथ्वी पर उत्पत्ति होने की मान्यता है, इस कारण गंगा दशहरा के दिन दान और धर्म का खास महत्व होता है। चूंकि ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए दशमी तिथि को गंगा जंयती या गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। इस साल गंगा दशहरा 1 जून 2020, को मनाया जाएगा।
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गंगा दशहरा व्रत कथा | Ganga Dussehra Story In Hindi
एक बार महाराज सगर ने व्यापक यज्ञ किया। उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला। इंद्र ने सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया। यह यज्ञ के लिए विघ्न था। परिणामतः अंशुमान ने सगर की साठ हजार प्रजा लेकर अश्व को खोजना शुरू कर दिया। सारा भूमंडल खोज लिया पर अश्व नहीं मिला।
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फिर अश्व को पाताल लोक में खोजने के लिए पृथ्वी को खोदा गया। खुदाई पर उन्होंने देखा कि साक्षात् भगवान ‘महर्षि कपिल’ के रूप में तपस्या कर रहे हैं। उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है। प्रजा उन्हें देखकर ‘चोर-चोर’ चिल्लाने लगी।
महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्यों ही महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले, त्यों ही सारी प्रजा भस्म हो गई। इन मृत लोगों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया था।
भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को कहा तो भगीरथ ने ‘गंगा’ की मांग की। इस पर ब्रह्मा ने कहा- ‘राजन! तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो? परंतु क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी? मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए।’
महाराज भगीरथ ने वैसे ही किया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा। तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं। इसका परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका।
अब महाराज भगीरथ को और भी अधिक चिंता हुई। उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की आराधना में घोर तप शुरू किया। तब कहीं भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूटकर गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर मुड़ी।
इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके भाग्यशाली हुए। उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, मुक्ति भी देती है। इसी कारण भारत तथा विदेशों तक में गंगा की महिमा गाई जाती है।
गंगा दशहरा पूजन विधि | Ganga Dussehra Pujan Vidhi
- गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य के शरीर, मन और वचन इन दस प्रकार के पापों का शमन होता है।
- गंगा नदी में स्नान न कर पाने की स्थिति में घर के पास ही किसी नदी या तालाब में स्नान किया जा सकता है। यदि वह भी संभव ना हो, तो माता गंगा का ध्यान करते हुए घर के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान-ध्यान करना चाहिए।
- गंगा दशहरा के पूजन और दान में शामिल किए जाने वाले वस्तुओं की संख्या दस होनी चाहिए।
- गंगा नदी में डुबकी भी दस बार लगानी चाहिए।
- स्नानादि के बाद मां गंगा की पूजा करनी चाहिए।
- इस दौरान गंगा जी के मंत्र का जाप करना लाभकारी होता है।
- गंगा के साथ ही राजा भागीरथ और हिमालय देव की भी पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
- इस दिन खास तौर पर भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए, क्योंकि उन्होंने ही गंगा जी की तीव्र गति को अपनी जटाओं में धारण किया था।
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Tag : – Ganga Dussehra Story, Vrat Katha, Pujan Vidhi, Kahani
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