|| अदभुत मंत्र रहस्य ||
|| अतुलनीय शक्ति ||
साल में एक ही बार आता है ऐसा मौका :—-
डा.अजय दीक्षित
२८-१०-२०१६ से ०२- ११- २०१६ तक :—
हर मुसीबत से पायें छुटकारा
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- घर में जलायें घी का चौमुखा दीपक
- बालू का शिव लिंग करें स्थापित
- महाकाली, गणेश,लक्ष्मी,हनुमान जी,काल भैरव की मिट्टी की प्रतिमा करें स्थापित
- नवग्रह स्थापित करें
- षोडशोपचार से करें पूजन
- फिर शिव जी की करें आराधना
वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवितः । मृत्युञ्जयो महादेवः प्राच्यां मां पातु सर्वदा ॥१॥
जरासे अभय करनेवाले, निरन्तर यज्ञ करनेवाले, सभी देवतओंसे आराधित हे मृत्युञ्जय महादेव ! आप पर्व-दिशामें मेरी सदा रक्षा करें ॥१॥
दधाअनः शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्भुजः प्रभुः ।सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा ॥२॥
अभय प्रदान करनेवाली शक्तिको धारण करनेवाले, तीन मुखोंवाले तथा छ: भुजओंवाले, अग्रिरूपी प्रभु सदाशिव अग्रिकोणमें मेरी सदा रक्षा करें ॥२॥
अष्टदसभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभुः । यमरूपि महादेवो दक्षिणस्यां सदावत।।३।।
अट्ठारह भुजाओंसे युक्त, हाथमें दण्ड और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, सर्वत्र व्याप्त यमरुपी महादेव शिव दक्षिण-दिशामें मेरी सदा रक्षा करें ॥३॥
खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवितः । रक्षोरूपी महेशो मां नैरृत्यां सर्वदावतु।।४।।
हाथमें खड्ग और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, धैर्यशाली, दैत्यगणोंसे आराधित रक्षोरुपी महेश नैर्ऋत्यकोणमें मेरी सदा रक्षा करें ॥४॥
पाशाभयभुजः सर्वरत्नाकरनिषेवितः । वरुणात्मा महादेवः पश्चिमे मां सदावतु ॥५॥
हाथमें अभयमुद्रा और पाश धाराण करनेवाले, शभी रत्नाकरोंसे सेवित, वरुणस्वरूप महादेव भगवान् शंकर पश्चिम- दिशामें मेरी सदा रक्षा करें ॥५॥
गदाभयकरः प्राणनायकः सर्वदागतिः । वायव्यां मारुतात्मा मां शङ्करः पातु सर्वदा ॥६॥
हाथोंमें गदा और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, प्राणोमके रक्षाक, सर्वदा गतिशील वायुस्वरूप शंकरजी वायव्यकोणमें मेरी सदा रक्षा करें ॥६॥
शङ्खाभयकरस्थो मां नायकः परमेश्वरः । सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्करः प्रभुः ॥७।।
हाथोंमें शंख और अभयमुद्रा धारण करनेवाले नायक (सर्वमार्गद्रष्टा) सर्वात्मा सर्वव्यापक परमेश्वर भगवान् शिव समस्त दिशाओंके मध्यमें मेरी रक्षा करें ॥७॥
शूलाभयकरः सर्वविद्यानमधिनायकः ।ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वरः ॥८॥
हाथोंमें शंख और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, सभी विद्याओंके स्वामी, ईशानस्वरूप भगवान् परमेश्वर शिव ईशानकोणमें मेरी रक्षा करें ॥८॥
ऊर्ध्वभागे ब्रःमरूपी विश्वात्माऽधः सदावतु ।शिरो मे शङ्करः पातु ललाटं चन्द्रशेखरः॥९॥
ब्रह्मरूपी शिव मेरी ऊर्ध्वभागमें तथा विश्वात्मस्वरूप शिव अधोभागमें मेरी सदा रक्षा करें । शंकर मेरे सिरकी और चन्द्रशेखर मेरे ललाटकी रक्षा करें ॥९॥
भूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिणेत्रो लोचनेऽवतु । भ्रूयुग्मं गिरिशः पातु कर्णौ पातु महेश्वरः ॥१०॥
मेरे भौंहोंके मध्यमें सर्वलोकेश और दोनों नेत्रोंकी त्रिनेत्र भगवान् शंकर रक्षा करें, दोनों भौंहोंकी रक्षा गिरिश एवं दोनों कानोंको रक्षा भगवान् महेश्वर करें ॥१०॥
नासिकां मे महादेव ओष्ठौ पातु वृषध्वजः ।जिह्वां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु ॥११।।
महादेव मेरी नासीकाकी तथा वृषभध्वज मेरे दोनों ओठोंकी सदा रक्षा करें । दक्षिणामूर्ति मेरी जिह्वाकी तथा गिरिश मेरे दाँतोंकी रक्षा करें ॥११॥
मृतुय्ञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषणः ।पिनाकि मत्करौ पातु त्रिशूलि हृदयं मम ॥१२।।
मृत्युञ्जय मेरे मुखकी एवं नागभूषण भगवान् शिव मेरे कण्ठकी रक्षा करें । पिनाकी मेरे दोनों हाथोंकी तथा त्रिशूली मेरे हृदयकी रक्षा करें ॥१२॥
पञ्चवक्त्रः स्तनौ पातु उदरं जगदीश्वरः । नाभिं पातु विरूपाक्षः पार्श्वौ मे पार्वतीपतिः ॥१३।।
पञ्चवक्त्र मेरे दोनों स्तनोकी और जगदीश्वर मेरे उदरकी रक्षा करें । विरूपाक्ष नाभिकी और पार्वतीपति पार्श्वभागकी रक्षा करें ॥१३॥
कटद्वयं गिरीशौ मे पृष्ठं मे प्रमथाधिपः । गुह्यं महेश्वरः पातु ममोरू पातु भैरवः ॥१४॥
गिरीश मेरे दोनों कटिभागकी तथा प्रमथाधिप पृष्टभागकी रक्षा करें । महेश्वर मेरे गुह्यभागकी और भैरव मेरे दोनों ऊरुओंकी रक्षा करें ॥१४॥
जानुनी मे जगद्दर्ता जङ्घे मे जगदम्बिका । पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्यः सदाशिवः ॥१५।।
जगद्धर्ता मेरे दोनों घुटनोंकी, जगदम्बिका मेरे दोनों जंघोकी तथा लोकवन्दनीय सदाशिव निरन्तर मेरे दोनों पैरोंकी रक्षा करें ॥१५॥
गिरिशः पातु मे भार्यां भवः पातु सुतान्मम ।मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायकः ॥१६॥
गिरीश मेरी भार्याकी रक्षा करें तथा भव मेरे पुत्रोंकी रक्षा करें । मृत्युञ्जय मेरे आयुकी गणनायक मेरे चित्तकी रक्षा करें ॥१६॥
सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकालः सदाशिवः ।एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानां च दुर्लभम् ॥१७।।
कालोंके काल सदाशिव मेरे सभी अंगोकी रक्षा करें । [ हे वत्स ! ] देवताओंके लिये भी दुर्लभ इस पवित्र कवचका वर्णन मैंने तुमसे किया है ॥१७॥
मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम् ।सह्स्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम् ॥१८॥
महादेवजीने मृतसञ्जीवन नामक इस कवचको कहा है । इस कवचकी सहस्त्र आवृत्तिको पुरश्चरण कहा गया है ॥१८॥
यः पठेच्छृणुयान्नित्यं श्रावयेत्सु समाहितः ।सकालमृत्युं निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते।।१९।।
जो अपने मनको एकाग्र करके नित्य इसका पाठ करता है, सुनता अथावा दूसरोंको सुनाता है, वह अकाल मृत्युको जीतकर पूर्ण आयुका उपयोग करता है ॥ १९॥
हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ ।आधयोव्याध्यस्तस्य न भवन्ति कदाचन ॥२०॥
जो व्यक्ति अपने हाथसे मरणासन्न व्यक्तिके शरीसका स्पर्श करते हुए इस मृतसञ्जीवन कवचका पाठ करता है, उस आसन्नमृत्यु प्राणीके भीतर चेतनता आ जाती है । फिर उसे कभी आधि-व्याधि नहीं होतीं ॥२०॥
कालमृयुमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा ।अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तमः ॥२१॥
यह मृतसञ्जीवन कवच कालके गालमें गये हुए व्यक्तिको भी जीवन प्रदान कर देता है और वह मानवोत्तम अणिमा आदि गुणोंसे युक्त ऐश्वर्यको प्राप्त करता है ॥२१॥
युद्दारम्भे पठित्वेदमष्टाविशतिवारकं । युद्दमध्ये स्थितः शत्रुः सद्यः सर्वैर्न दृश्यते ॥२२॥
युद्ध आरम्भ होनेके पूर्व जो इस मृतसञ्जीवन कवचका २८ बार पाठ करके रणभूमिमें उपस्थित होता है, वह उस समय सभी शत्रुऔंसे अदृश्य रहता है ॥२२॥
न ब्रह्मादीनि चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै । विजयं लभते देवयुद्दमध्येऽपि सर्वदा ॥२३॥
यदि देवतऔंके भी साथ युद्ध छिड जाय तो उसमें उसका विनाश ब्रह्मास्त्र भी नही कर सकते, वह विजय प्राप्त करता है ॥२३॥
प्रातरूत्थाय सततं यः पठेत्कवचं शुभं । अक्षय्यं लभते सौख्यमिह लोके परत्र ।।२४।।
जो प्रात:काल उठकर इस कल्याणकारी कवच सदा पाठ करता है, उसे इस लोक तथा परलोकमें भी अक्षय्य सुख प्राप्त होता है ॥२४॥
सर्वव्याधिविनिर्मृक्तः सर्वरोगविवर्जितः ।अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिकः ॥२५॥
वह सम्पूर्ण व्याधियोंसे मुक्त हो जाता है, सब प्रकारके रोग उसके शरीरसे भाग जाते हैं । वह अजर-अमर होकर सदाके लिये सोलह वर्षवाला व्यक्ति बन जाता है ॥२५॥
विचरव्यखिलान् लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान् । तस्मादिदं महागोप्यं कवचम् समुदाहृतम् ।।२६।।
इस लोकमें दुर्लभ भोगोंको प्राप्त कर सम्पूर्ण लोकोंमें विचरण करता रहता है । इसलिये इस महागोपनीय कवचको मृतसञ्जीवन नामसे कहा है ॥२६॥
मृतसञ्जीवनं नाम्ना देवतैरपि दुर्लभम् ॥२७
यह देवतओंके लिय भी दुर्लभ है ॥२७॥
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पाँच दिन तक लगातार अखंड दीपक जलाना है ।
निम्न लिखित मंत्र का प्रतिदिन १९०००हजार रूद्राक्ष की माला से जप करना है।
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पहले एक माला:–ॐ शुक्राय नम: का जप करें ।
फिर मूल मंत्र का १९०००हजार
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ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यबकंयजामहे
ॐ तत्सर्वितुर्वरेण्यं ॐ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम्
ॐ भर्गोदेवस्य धीमहि ॐ उर्वारुकमिव बंधनान्
ॐ धियो योन: प्रचोदयात् ॐ मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्
ॐ स्व: ॐ भुव: ॐ भू: ॐ स: ॐ जूं ॐ हौं ॐ ।
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आचार्य, डा.अजय दीक्षित
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