How Shani Dev Became Slow :- ज्योतिष शास्त्रानुसार शनि एक धीमी गति से चलने वाला ग्रह है। शनिदेव को एक राशि को पार करने में लगभग ढा़ई वर्ष का समय लगता है। पौराणिक शास्त्रानुसार शनिदेव लंगड़ाकर चलते हैं जिस कारण उनकी चलने की गति धीमी है।
आखिर शनि देव लंगड़े कैसे हुए, इसके बारे शास्त्रों में एक रोचक कथा दी हुई है। कथानुसार शनिदेव की सौतेली मां के कारण शनिदेव को लगा श्राप और शनिदेव हो गए मंदगामी। आइए जानते हैं शनिदेव के जीवन से जुड़ा यह रहस्य।
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सूर्य देव का तेज सहन न कर पाने की वजह से उनकी पत्नी संज्ञा (छाया) देवी ने अपने शरीर से अपने जैसी ही एक प्रतिमूर्ति तैयार की और उसका नाम स्वर्णा रखा। संज्ञा देवी ने स्वर्णा को आज्ञा दी कि तुम मेरी अनुपस्थिति में मेरी सारी संतानों की देखरेख करते हुए सूर्यदेव की सेवा करो और पत्नी सुख भोगो। ये आदेश देकर वह अपने पिता के घर चली गई। स्वर्णा ने भी अपने आप को इस तरह ढाला कि सूर्यदेव भी यह रहस्य न जान सके।
इस बीच सूर्यदेव से स्वर्णा को पांच पुत्र व दो पुत्रियां हुई। स्वर्णा अपने बच्चों पर अधिक और संज्ञा की संतानों पर कम ध्यान देने लगी। एक दिन संज्ञा के पुत्र शनि को तेज भूख लगी, तो उसने स्वर्णा से भोजन मांगा। तब स्वर्णा ने कहा कि अभी ठहरो, पहले मैं भगवान का भोग लगा लूं और तुम्हारे छोटे भाई बहनों को खाना खिला दूं, फिर तुम्हें भोजन दूंगी। यह सुन शनि को क्रोध आ गया और उन्होंने भोजन पर लात मरने के लिए अपना पैर उठाया तो स्वर्णा ने शनि को श्राप दे दिया कि तेरा पांव अभी टूट जाए।
माता का श्राप सुनकर शनिदेव डरकर अपने पिता के पास गए और सारा किस्सा कह दिया। सूर्यदेव समझ गए कि कोई भी माता अपने बच्चे को इस तरह का श्राप नहीं दे सकती। तब सूर्यदेव ने क्रोध में आकर पूछा कि बताओ तुम कौन हो? सूर्य का तेज देखकर स्वर्णा घबरा गई और सारी सच्चाई बता दी।
तब सूर्य देव ने शनि को समझाया कि स्वर्णा तुम्हारी माता तो नहीं है परंतु मां के समान है इसलिए उसका श्राप व्यर्थ तो नहीं होगा परंतु यह उतना कठोर नहीं होगा कि टांग पूरी तरह से अलग हो जाएं। हां, तुम आजीवन एक पांव से लंगड़ाकर चलते रहोगे। यही कारण हैं शनिदेव की मंदगति का।
पिप्पलाद मुनि से जुडी है एक अन्य कथा
पुराणों के अनुसार, भगवान शंकर ने अपने परम भक्त दधीचि मुनि के यहां पुत्र रूप में जन्म लिया। भगवान ब्रह्मा ने इनका नाम पिप्पलाद रखा, लेकिन जन्म से पहले ही इनके पिता दधीचि मुनि की मृत्यु हो गई। युवा होने पर जब पिप्पलाद ने देवताओं से अपने पिता की मृत्यु का कारण पूछा तो उन्होंने शनिदेव की कुदृष्टि को इसका कारण बताया।
पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए और उन्होंने शनिदेव के ऊपर अपने ब्रह्म दंड का प्रहार किया। शनिदेव ब्रह्म दंड का प्रहार नहीं सह सकते थे इसलिए वे उससे डर कर भागने लगे। तीनों लोगों की परिक्रमा करने के बाद भी ब्रह्म दंड ने शनिदेव का पीछा नहीं छोड़ा और उनके पैर पर आकर लगा।
मुनि पिप्पलाद द्वारा फेंके गए ब्रह्म दंड के पैर पर लगने से शनिदेव लंगड़े हो गए। तब देवताओं ने पिप्पलाद मुनि से शनिदेव को क्षमा करने के लिए कहा। देवताओं ने कहा कि शनिदेव तो न्यायाधीश हैं और वे तो अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। आपके पिता की मृत्यु का कारण शनिदेव नहीं है।
देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक के शिवभक्तों को कष्ट नहीं देंगे, यदि ऐसा हुआ तो शनिदेव भस्म हो जाएंगे। तभी से पिप्पलाद मुनि का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है।
।। जय शनि देव ।।
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