क्या बिना मन के पूजा-पाठ, ध्यान और जप करने चाहिये ? अक्सर पूजा पाठ से जुड़ा एक सवाल हमेशा हमारे मन में आता है की यदि बिना मन के पूजा पाठ किया जाए तो क्या हमें उसका फल मिलेगा? क्या बिना इच्छा के किये गए मंत्र जाप का कोई सार है? क्या बिना मन के भगवान की भक्ति करना सही है या नहीं ?
इस संबंध में श्री रामचरितमानस के रचियता गोस्वामी तुलसीदास से जुड़ा एक प्रसंग प्रचलित है। प्रसंग इस प्रकार है की जब एक दिन गोस्वामी तुलसीदास अपने भक्तों के साथ बैठे थे तब उनके एक भक्त ने उनसे सवाल किया की कभी-कभी हमारा मन भक्ति करने का नहीं होता है, लेकिन फिर भी हम पूजा-पाठ करने या मंत्र जाप करने बैठ जाते हैं, क्या इस तरीके से की गई भक्ति का भी कोई फल मिलता है? इस तरह से हमें भक्ति करनी चाहिए या नहीं?
भक्त की यह जिज्ञासा सुनकर गोस्वामी तुलसीदास ने कहा कि-
तुलसी मेरे राम को, रीझ भजो या खीज। भौम पड़ा जामे सभी, उल्टा सीधा बीज॥
इसका अर्थ है कि भूमि में जब बीज बोए जाते हैं तो ये नहीं देखा जाता कि बीज उल्टे पड़े हैं या सीधे, लेकिन समय आने पर सभी बीज अंकुरित होते हैं और सभी उल्टे-सीधे बीजों से फसल तैयार हो जाती है। ठीक इसी तरह भगवान का ध्यान करने का फल जरूर मिलता है।
इसलिए यदि मन अशांत हो, चित अस्थिर हो तो भी हमें पूजा-पाठ, ध्यान और मंत्र जप करना चाहिए। इसके दो फायदे है एक तो इससे हमें कुछ न कुछ शुभ फल अवश्य मिलेगा साथ ही हमारे मन से नकारात्मक विचार दूर होंगे और सकारात्मक विचार आएंगे। जिससे की हमारे जीवन में गुणात्मक परिवर्तन आएंगे।
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Arti says
mere hisab se bina man ke puja path nahi karna chaiye