Manusmriti updesh in Hindi : धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति का अपना एक मुख्य स्थान है। समाज को सही राह और ज्ञान प्रदान करने के लिए मनुस्मृति की नीतियां बहुत महत्वपूर्ण मानी गई हैं। इन नीतियों का पालन करके मनुष्य जीवन में कई लाभ ले सकता है।मनुस्मृति में इन्द्रियों के बारे में बताया गया है। जिन्हें अगर वश में न रखा जाए तो मनुष्य अपना नुकसान कर बैठता है। मनुस्मृति के इस श्लोक से इसके बारे में अच्छी तरह समझा जा सकता है-
श्लोक
इन्द्रियाणां प्रसड्गेन दोषमृच्छत्यसंशयम्।
संनियम्य तु तान्येव ततः सिद्धिं नियच्छति।।
अर्थात- शब्द (मुंह), स्पर्श (हाथ), रूप (आंखें), रस (जिव्हा, जुबान), और गन्ध (नाक)- इन इन्द्रियों के आसक्त (वश) में होकर मनुष्य अवश्य ही दोष का भागी हो जाता है।
1. शब्द
कहा जाता है कि शब्द बाणों की तरह होते है। मुंह से निकला हुआ शब्द और धनुष से निकता हुआ बाण वापस नहीं लिया जा सकता, इस्लिए उनका प्रयोग सोच-समझ कर करना चाहिए। बिना सोचे-समझे प्रयोग किए गए शब्दों से मनुष्य अपना नुकसान कर बैठता है। कई बार गुस्से में मनुष्य वे बातें बोल जाता है, जो उसे बिल्कुल नहीं कहनी चाहिए। जिनकी वजह से वह दोष का भी पात्र बन जाता है। इसलिए, मनुष्य को हमेशा ही शब्दों का प्रयोग बहुत सोच-समझकर करना चाहिए।
2. स्पर्श
अगर किसी मनुष्य के ऊपर कामभाव हावी हो जाता है तो वह मनुष्य अपने वश से बाहर हो जाता है। कामी व्यक्ति के लिए अच्छा-बूरा कुछ नहीं होता। कामभावना सा पीड़ित मनुष्य अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए किसी के साथ भी बुरा व्यवहार कर सकता है। ऐसी भावना उसे दोषी बनने पर भी मजबूर कर सकती है। इसलिए, मनुष्य को कभी ऐसी भावनाओं के अधीन नहीं होना चाहिए।
3. रूप
किसी के रूप-सौंर्दय से आकर्षित होने पर मनुष्य के मन में उसे पाने की चाह जागने लगती है। रूप-सौंर्दय के वश में होकर मनुष्य हर काम में उस व्यक्ति का साथ लेने लगता है। अपनी आंखों पर नियंत्रण होना चाहिए। हम क्या देखें और किस भाव से देखें, इस बात का निर्णय हमें अपनी बुद्धि से लेना है। जब इंसान बिना विवेक के अपनी आंखों का उपयोग करता है तो, ऐसी स्थिति में वह सही-गलत की पहचान नहीं कर पाता और कई बार दोष का भागी भी बन जाता है।
4. रस
जिस इंसान का अपनी जुबान पर काबू नहीं होता है, जो सिर्फ स्वाद के लिए ही खाना खोजता है। ऐसा इंसान जल्दी बीमारियों की गिरफ्त में आ जाता है। वह हमेशा ही अपना नुकसान करता ही है। जुबान को वश में करने की बजाय वह खुद उसके वश में हो जाता है। ऐसा इंसान सिर्फ स्वाद के चक्कर में अपनी सेहत से समझौता करता है और कई बीमारियों का शिकार हो जाता है।
5. गन्ध
नासिका यानी हमारी नाक भी हमारी पांच इंद्रियों में बहुत महत्वपूर्ण है। सांस लेने के अलावा यह सूंघने का भी काम करती है। अक्सर इंसान किसी चीज के पीछे तीन कारणों से ही पड़ता है, या तो उसका रंग-रुप और आकृति देखकर, उसके स्वाद के कारण या फिर उसकी गंध के कारण। कई बार अच्छी महक वाली वस्तुएं भी स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होती है। हमें अपनी नाक पर भी नियंत्रण रखना चाहिए, जिससे नुकसान से बचा जा सके।
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