प्रसिद्ध हिन्दू ग्रन्थ महाभारत में उल्लेखित कई प्राचीन शहर आज भी स्थित जो की वर्तमान भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में फैले हुए है। यहां हम आपको महाभारत के कुछ ऐसे ही शहरों के बारे में बता रहे है।
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महाभारत के प्राचीन शहर : Ancient Cities Of Mahabharat
गांधार
आज के कंधार को कभी गांधार के रूप में जाना जाता था। यह देश पाकिस्तान के रावलपिन्डी से लेकर सुदूर अफगानिस्तान तक फैला हुआ था। धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी वहां के राजा सुबल की पुत्री थीं। गांधारी के भाई शकुनी दुर्योधन के मामा थे। गंधार को लेकर ऐसी कहानी प्रचलित है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव हिमालय के लिए निकले। यहीं पांडवों के वंशज जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित की सांप काटने से मृत्यु के बाद क्रोधित होकर सर्पयज्ञ का अयोजन किया था जिसमें हजारों नाग जलकर भस्म हो गए थे।
अब कहां है – पाकिस्तान और अफगानिस्तान में
केकय प्रदेश
जम्मू-कश्मीर के उत्तरी इलाके का उल्लेख महाभारत में केकय प्रदेश के रूप में है। केकय प्रदेश के राजा जयसेन का विवाह वसुदेव की बहन राधादेवी के साथ हुआ था। उनका पुत्र विन्द जरासंध, दुर्योधन का मित्र था। महाभारत के युद्ध में विन्द ने कौरवों का साथ दिया था।
अब कहां है – जम्मू कश्मीर
इंद्रप्रस्थ और खांडवप्रस्थ
महाभारत में जिस इंद्रप्रस्थ और खांडवप्रस्थ का जिक्र किया है वह वर्तमान में भारत राजधानी दिल्ली है।
उज्जानिक
महाभारत में जिस उज्जानिक नामक स्थान का जिक्र किया गया है वह वर्तमान काशीपुर है जो उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित है। यहां पर गुरु द्रोणाचार्य ने कौरवों और पांडवों को शिक्षा दी थी। यहां स्थित द्रोणसागर झील के बारे में कहा जाता है कि पांडवों ने गुरु दक्षिणा के तौर पर इस झील का निर्माण किया था।
आज कहां पर है – उत्तराखंड
पांचाल राज्य
पांचाल पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बरेली, बदायूँ और फर्रूख़ाबाद ज़िलों से परिवृत प्रदेश का प्राचीन नाम है। यह कानपुर से वाराणसी के बीच के गंगा के मैदान में फैला हुआ था।
आज कहां पर है – उत्तरप्रदेश
वृंदावन
महाभारत काल का वृंदावन आज भी इसी नाम से जाना जाता है जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश में स्थित। यहां श्री कृष्ण रास रचाया करते थे और गाय चराया करते थे।
मथुरा
महाभारत में कंस की नगरी मथुरा का जिक्र किया गया है। यह जगह आज भी इसी नाम से जानी जाती है। यहीं पर भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। यहां आज भी जन्मभूमि में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
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