Prerak Prasang In Hindi | संसार चक्रवत् घूम रहा है, हमारे कर्म, कर्म फल बनकर कभी न कभी अवश्य भोगने पड़ते हैं । ये कर्म व्यवस्था के नियम सब पर लागू होते हैं, हम पर भी और आप पर भी। अतः बुरे कर्म कभी न करें।
मथुरा की माँट तहसील के एक ग्राम में एक युवक गम्भीर रूप से बीमार पड़ा। उसकी पत्नी ने दिनरात एक कर अपने पति की सेवा की। वृद्ध पिता ने यथाशक्ति सब जमा-पूंजी खर्चकर पुत्र का इलाज कराया; परंतु कोई लाभ न हुआ। युवक ठीक नहीं हुआ।
एक दिन पुत्र ने पिता को अपने पास बुलाकर कहा कि ‘पास के ग्राम में अमुक वैद्य जी से दवा ले आइये; दवा की कीमत साढ़े तीन रुपये होगी। उस दवा से मैं ठीक होऊँगा।’ पिता पास के उस ग्राम में जाकर वैद्यजी से दवा ले आये थे। दवा खाकर युवक सो गया।
दो-तीन घण्टे के बाद पिता ने पुत्र को जगाकर उसका हाल जानना चाहा तो पुत्र पिता पर बिगड़ उठा और कहने लगा—‘अब न मैं तुम्हारा पुत्र हूँ, न तुम मेरे पिता।’ पिछले जन्म में तुम एक डाकू थे और मेरी यह पत्नी पिछले जन्म में मेरी घोड़ी थी। एक दिन मैं अपनी घोड़ी पर चढ़ा कहीं जा रहा था। रास्ते में तुमने मुझे लूट लिया था और मेरी हत्या कर दी थी। पिछले जन्म का बदला मैंने इस जन्म में तुम्हारा बीमार पुत्र बनकर ले लिया है और तुम्हारी सारी कमाई खर्च करा दी है ।
पिछले जन्म में मेरी घोड़ी ने मुझे संकट में डालकर तुम्हारे हवाले करा दिया था और जब तुमने पास ही खेत की मेंड़ पर घास की गठरी लिए बैठे हुए घसियारे को डरा-धमकाकर उसकी घास मेरी घोड़ी के आगे डलवा दी थी तो मेरे लाख प्रयास करने पर भी घोड़ी अड़कर खड़ी हो गयी थी; तब तुम्हें मुझको लूटने और मेरी हत्या करने का मौका मिल गया। इस जन्म में भी मैं इसे आज अकेला छोड़कर (विधवा बनाकर) ही जा रहा हूँ । उस घसियारे के साढ़े तीन रुपये का कर्जा भी तुमसे अदा करवा दिया है । वह घसियारा ही इस जन्म में वैद्य है । मैं अब जा रहा हूँ ।’ और तभी युवक के प्राणपखेरू उड़ गये।
यह घटना हमें संकेत करती है कि जीवन में किये कर्मों का फल अवश्य भुगतना पड़ता है, इसलिए हमारा हमेशा यही प्रयास होना चाहिए कि हमारे किसी भी कार्य से किसी को कोई कष्ट न पहुंचे।
अवश्यमेव भुक्तव्यम् कृते कर्म शुभाशुभम्।
आचार्य, डा.अजय दीक्षित
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