Maa Shayari By Munawwar Rana | Munawwar Rana Maa Shayari | आज मातृ दिवस (मदर्स डे) है , यदि हम ग़ज़ल और शायरी के हवाले से माँ कि बात करे तो मुनव्वर राना वो पहले शायर है जिन्होने ग़ज़ल और शायरी को माँ से सम्बोधित किया, न केवल माँ से बल्कि औरत के अन्य रुप बहन और बेटी से भी सम्बोधित किया। वरना पहले ग़ज़ल का मतलब केवल औरत या यूँ कहे कि महबूबा कि खूबसूरती का वर्णन करना हि होता था। इस बात को मुनव्वर राणा ने एक शेर मे युँ कहा
“मामूली एक कलम से कहां तक घसीट लाए
हम इस ग़ज़ल को कोठे से मां तक घसीट लाए”
हमने यहां पर मुनव्वर राना के द्वारा माँ पर लिखे गये 30 शेरो का संकलन किया है। पर पहले मुनव्वर राना द्वारा माँ पर कहे गये कुछ शब्द उनकी किताब ‘मां’ से
“शब्दकोशों के मुताबिक ग़ज़ल का मतलब महबूब से बातें करना है। अगर इसे सच मान लिया जाए, तो फिर महबूब ‘मां’ क्यों नहीं हो सकती। मेरी शायरी पर मुद्दतों, बल्कि अब तक ज़्यादा पढ़े-लिखे लोग इमोशनल ब्लैकमेलिंग का इल्ज़ाम लगाते रहे हैं। अगर इस इल्ज़ाम को सही मान लिया जाए तो फिर महबूब के हुस्न, उसके जिस्म, उसके शबाब, उसके रुख और रुख़सार, उसके होंठ, उसके जोबन और उसकी कमर की पैमाइश को अय्याशी क्यों नहीं कहा जाता है।
अगर मेरे शेर इमोशनल ब्लैकमेलिंग हैं तो श्रवण कुमार की फरमां-बरदारी को ये नाम क्यों नहीं दिया गया। जन्नत मां के पैरों के नीचे है, इसे ग़लत क्यों नहीं कहा गया। मैं पूरी ईमानदारी से इस बात का तहरीरी इकरार करता हूं कि मैं दुनिया के सबसे मुक़द्दस और अज़ीम रिश्ते का प्रचार सिर्फ़ इसलिए करता हूं कि अगर मेरे शेर पढ़कर कोई भी बेटा मां की ख़िदमत और ख़याल करने लगे, रिश्तों का एहतेराम करने लगे तो शायद इसके बदले में मेरे कुछ गुनाहों का बोझ हल्का हो जाए।”
Munawwar Rana
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मुनव्वर राना कि ‘माँ’ पर शायरी
Maa Shayari By Munawwar Rana | Munaawar Rana Maa Shayari
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मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
Maine rote hue ponchhe the kisi din aansoo
Muddaton Maa ne nahi dhoya dupatta apna
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सदक़ा भी दे दिया है नज़र भी उतार दी
दौलत सूकूनो चैन की सब मुझपे वार दी
कल शाम मैंने क्या कहा तबियत खराब है
माँ ने तमाम रात दुआ में गुज़ार दी
Sadka bhi de diya nazar bhi utar di
Daulat sukoon-o-chain ki mujh pe waar di
Kal sham maine kya kaha tabiyat kharab hai
Maa ne tamaam raat dua mein guzar di
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लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
Labon pe uske kabhi baddua nahi hoti
Bas ek Maa hai jo kabhi khafa nahi hoti
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अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है
Ab bhi chalti hai jab aandhi kabhi gham ki Rana
Maa ki mamta mujhe baahon me chhupa leti hai
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मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है
Musibat ke dino me humesha sath rahati hai
Pyambar kya pareshani mein ummat chhod sakta hai
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जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा
Jab tak raha hoon dhoop me chaadar bana raha
Main apni Maa ka aakhiri jewar bana raha
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किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
Kisi ko ghar mila hisse mein ya koi dukaan aai
Main ghar mein sabse chhota tha mere hisse mein Maa aai
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ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
Ae andhere dekh le munh tera kala hogaya
Maa ne aankhe khol di ghar me ujaala ho gaya
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इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
Is tarah mere gunaahon ko wo dho deti hai
Maa bahut gusse me hoti hai to ro deti hai
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मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
Meri khwaahish hai ki main phir se farishta ho jaaun
Maa se is tarah lipat jaaun ki baccha ho jaaun
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हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए
माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे
Haadson ki gard se khud ko bachaane ke liye
Maa hum apne saath bas teri dua le jayenge
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ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे
माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे
Khud ko is bheed me tanha nahi hone denge
Maa tujhe hum abhi boodha nahi hone denge
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जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई
Jab bhi dekha hai mere kirdar pe dhabba koi
Der tak baith ke tanhai me roya koi
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यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगा
ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा
Yahin rahoonga kahin umra bhar na jaaunga
Zameen Maa hai ise chhod kar na jaaunga
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अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
Abhi zinda hai Maa meri mujhe kuchh bhi nahi hoga
Main jab ghar se nikalta hoon dua bhi saath chalti hai
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कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी
Kuchh anhi hoga to aanchal me chhupa legi mujhe
Maa kabhi sar pe khuli chhat nahi rahne degi
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दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है
Din bhar ki mashakkat se badan chur hai lekin
Maa ne mujhe dekha to thkan bhool gai hai
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दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है
Duaaen Maa ki pahunchaane ko meelo meel jati hai
Ki jab pardesh jane ke liye beta nikalta hai
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दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करके
महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा
Diya hai Maa ne mujhe Doodh bhi wajoo karke
Mahaaze-jang se main laut kar na jaaunga
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बहन का प्यार माँ की ममता दो चीखती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था
Bahan ka pyar Maa ki mamata do cheekhati
Yahi tohafe the wo jinko main aksar yaad karta tha
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बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है
Barbaad kar diya hume pardesh ne magar
Maa sabse kah rahi hai ki beta maze main hai
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खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही
Khaane ki cheeze Maa ne jo bheji hai gaaon se
Baasi bhi ho gai hai to lazzat wahi rahi
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मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती है
किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है
Mukaddas muskuraahat Maa ke hontho par larzati hai
Kisi bacche ka jab pahla sipaara khatm hota hai
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मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दीं
सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़—ए—माँ रहने दिया
Maine kal shab Chaahaton ki sab kitaabe phad di
Sirf ik kaagaz pe likha lafz-e-Maa rahne diya
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Maa Shayari By Munawwar Rana | Munaawar Rana Maa Shayari
माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
Maa ke aage yoon kabhi khul kar nahi rona
Jahan buniyaad ho itani nami achchhi nahi hoti
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मुझे कढ़े हुए तकिये की क्या ज़रूरत है
किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है
Mujhe kadhe hue takiye ki kya jaroorat hai
Kisi ka haath abhi mere sar ke neeche hai
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बुज़ुर्गों का मेरे दिल से अभी तक डर नहीं जाता
कि जब तक जागती रहती है माँ मैं घर नहीं जाता
Bujurgon ka mere dil se abhi tak dar nahi jaata
Ki jab tak jaagti rahti hai Maa main ghar nahi jaata
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अब भी रौशन हैं तेरी याद से घर के कमरे
रौशनी देता है अब तक तेरा साया मुझको
Ab bhi raushan hai teri yaad se ghar ke kamre
Raushani deta hai ab tak tera saya mujhko
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मेरे चेहरे पे ममता की फ़रावानी चमकती है
मैं बूढ़ा हो रहा हूँ फिर भी पेशानी चमकती है
Mere chehre pe mamta ki farwaani chamkati hai
MAin boodha ho raha hoon phir bhi peshaani chamakti hai
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आँखों से माँगने लगे पानी वज़ू का हम
काग़ज़ पे जब भी देख लिया माँ लिखा हुआ
Aankhon se maangne lage paani wajoo ka hum
Kaagaz pe jab bhi dekh liya Maa likha hua
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ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,
मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है
Ye aisa karz hai jo main adaa kar hi nahi sakta
Main jab tak ghar na lautoon, meri maa sazde me rahti hai
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चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखि है
Chalti firti hui aankhon se azan dekhi hai
Maine jannat to nahi dekhi hai maa dekhi hai
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दावर-ए-हश्र तुझे मेरी इबादत की कसम
ये मेरा नाम-ए-आमाल इज़ाफी होगा
नेकियां गिनने की नौबत ही नहीं आएगी
मैंने जो मां पर लिक्खा है, वही काफी होगा
Daavar-e-harsh tujhe meri ibaadat ki kasam
Ye mera naam-e-aamaal izaafi hoga
Nekiyan ginne ki naubat hi nahi aayegi
Maine jo Maa par likha hai, wahi kaafi hoga
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पहले ये काम बड़े प्यार से माँ करती थी,
अब हमें धुप जगाती है तो दुःख होता है !
उम्र माँ की कभी बेटे से ना पूछी जाए,
माँ तो जब छोड़ के जाती है तो दुःख होता !
Pehle Ye Kaam badey pyaar se Maa karti thi,
Ab Hume’n dhoop jagaati hai tou dukh hota hai.
Umr Maa ki kabhi Bete se naa poochi jaaye,
Maa tou jab chhor ke jaati hai tou dukh hota hai.
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ऐसे तो उससे मोहब्बत में कमी होती है,
माँ का एक दिन नहीं होता है सदी होती है !
(यह शेर उन्होंने मदर्स डे के संदर्भ में कहा था)
Aese to usse mohabbt mein kami hoti hai,
MAA ka ek din nahi hota hai sadi hoti hai.
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हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
सगी है या कि सौतेली है माँ बच्चे समझते हैं
Ho chaahe jis ilaake ki jabaan bacche samjhte hai
Sagee hai ya ki sauteli hai Maa bachhe samjhte hai
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हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह
Hawa dukhon ki jab aai kabhi khijaan ki tarah
Mujhe chhupa liya mitti ne meri Maa ki tarah
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मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है
कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है
Mujhe bas isliye acchi bahaar lagti hai
Ki ye bhi Maa ki tarah khusgawar lagati hai
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भेजे गए फ़रिश्ते हमारे बचाव को
जब हादसात माँ की दुआ से उलझ पड़े
Bheje gaye farishte hamaare bachaav ko
Jab haadsaat Maa ki dua se uljh pade
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जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा
Jab tak raha hoon dhoop mein chaadar bana raha
Main apni Maa ka aakhiri jewar bana raha
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देख ले ज़ालिम शिकारी ! माँ की ममता देख ले
देख ले चिड़िया तेरे दाने तलक तो आ गई
Dekh le zaalim shikaari ! Maa ki mamta dekh le
Dekh le chidiya tere daane talak to aa gai
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गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माएँ रोज़ आती हैं
Gale milne ko aapas mein duaayein roz aati hain
Abhi maszid ke darwaaze pe maayen roz aati hain
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कभी-कभी मुझे यूँ भी अज़ाँ बुलाती है
शरीर बच्चे को जिस तरह माँ बुलाती है
Kabhi-kabhi mujhe yun bhi ajaan bulaati hai
Shareer bachhe ko jis tarah Maa bulati hai
Maa Shayari By Munawwar Rana | Munaawar Rana Maa Shayari
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मुनव्वर राना – माँ (सम्पूर्ण किताब, 300 शेर)
मुनव्वर राना की ग़ज़लों का संग्रह
निदा फ़ाज़ली – बेसन सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ
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Jivansutra says
Bhai, mother ke upar aapne bahut hi acchhi aur sundar shayri likhi hain AAPNE. padhkar aankhe bhar aayin. bahut khoob.
Alok Pratap Singh says
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manoj sharma says
मुनव्वर साहब की बात ही जुदा हैं सबसे अलग शायर हैं जिन्होंने माँ के प्यार और दुलार को अपनी कलम से लिखा सच दुनिया में माँ से बढ़ कर कोई नहीं हैं
ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे
माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे
Arjun says
Waah, Emotional kar diya in poems ne. Maa se bada koi nahi hota, aur jo pyar wo karti hai usse pure kisi ka nahi. Jyadtar logo ki problem ye hoti hai wo pyar to karte hai apne ama se par dikhate nahi, bol nahi paate maa ko. Par mujhe lagta hai ye dikhana bhi jaruri hai maa ko ki hum kitna pyar karte hai.
shabbir mohd khan says
Janab munawar rana shab assalamoalkum allaha aap ko hamasha accha rakha ma na hamasha aap ke shayre pasand ke h or aap ka bhaja houa khat jo aap na mujha hospatil sa likha tha wo mara pass aaj tak rakha h aap ke mohbat ke neshane samajkar allaha aap ko hamasha sahat de aap ka fan shabbir mod khan sironj
md zuber says
Masa allah munawwar sahab ji
Kamran Zaidi says
Kabr ki aaghosh m jab thak ke so jati h Maa,
Tab khi jakar “Raza” thoda sukoon pati h Maa,
Pyaar khte h kise or maamta kya cheez h,
Koi un baccho s puche jinki mr jati h Maa,..
By Janab Raza Sirsvi
YUSUF JAMAL FAROOQUI says
HEART TOUCHING SHAIRY
Ankit sheoran or kavi kohinoor jadoli says
अद्भत लेखनी
आपके हाथों मे कलम भी गर्व महसूस करती होगी गुरु जी।
mond. rehan says
Bahut bahut a6e jumle h. In jumlo ki tareef k liye koi word nhi h.
शुभम शर्मा says
रूला दिया SIR जी
mubarak pathan says
Bahut khoob rana sahab allah hum sab ki vaalidain ko jannat ata farmaye. ameen
Ek marathi languege me sher hai khub pyara matlab hai iska..
!! SWAMI TINHI JAGACHA !!
!! AAI VEENA BHIKHARI !!
Kirti says
Rana sab sachin mohit to yahin hai
ridam kishor says
maa pe to kavita koi bhi likh nhi sakta lakin phir bhi aapne kosis is lsliye aapko dhanyabad lgta h ki aap apni maa ko bahut pyar krte hoge waisw hm bhi apni maa ko bahut pyar krte h
Dhiraj soni says
Allah ki Barkat hi.
Ravi Rawat says
Apki shayri pad kar aakho ka chalkhna ho jata hai, Ise bahane aanko ki safai ho jati hai. Bahut Khub.
amit Kumar saini says
bahut sundar rana sahab aapne shayri ko kaha se kaha pahuncha diya
hats off sir
amit Kumar saini says
bahut sundar rana sahab aapne shayri ko kaha pahuncha diya
kothe se MAA tak hats off sir
Om Parkash says
माँ से जुड़े संस्मरणों की बेहतरीन अभिव्यक्ति I