Why did Lord Krishna attack Bhishma in Mahabharata war ( Hindi Story) : हम सब जानते है की महाभारत युद्ध में श्री कृष्ण, अर्जुन के सारथि बने थे। लेकिन युद्ध में एक समय ऐसा भी आया था जब श्री कृष्ण अपना सुदर्शन चक्र लेकर, भीष्म सहित समस्त कौरवों का नाश करने के लिए रण भूमि में कूद पड़े थे। आइए जानते है की कृष्ण जो युद्ध में केवल अर्जुन के सारथि की ही भूमिका निभाने वाले थे, उन्हें आखिर युद्ध क्षेत्र में क्यों कूदना पड़ा और इसका क्या परिणाम निकला?
यह घटना महाभारत युद्ध के तीसरे दिन की है। जब रात बीती और सबेरा हुआ तो भीष्म ने अपनी सेना को रणभ्रूमि में चलने की आज्ञा दी। वहां जाकर उन्होंने सेना का गरुड़-व्यूह रचा और उस व्यूह के अग्रभाग में चोंच के स्थान पर वे खुद ही खड़े हुए। दोनों नेत्रों की जगह द्रोणाचार्य और कृतवर्मा थे। शिरोभाग में अश्चत्थामा और कृपाचार्य खड़े हुए। इनके साथ त्रैगर्त, कैकय, और वाटधान भी थे।
मद्रक, सिंधुवीर और पंचनददेशीय वीरों के साथ भूरिश्रवा, शल, शल्य, भगदत व जयद्रथ- ये कण्ठ की जगह खड़े किए गए थे। दुर्योधन पुष्ठभाग पर खड़ा हुआ। कम्बोज, शक और शूरसेनदेशीय योद्धाओं को साथ लेकर विन्द तथा अनुविन्द उस व्यूह के पुच्छभाग में स्थित हुए। अर्जुन ने कौरव सेना की वह व्यूह रचना देखी तो धृष्टद्युम्न को साथ लेकर उन्होंने अपनी सेना का अर्धचंद्राकार व्यूह बनाया।
उसके दक्षिण शिखर पर भीमसेन सुशोभित उनके साथ अनेकों अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न भिन्न-भिन्न देशों के राजा थे। भीमसेन के पीछे महारथी विराट और द्रुपद खड़े हुए। उनके बाद धृष्टकेतु थे। धृष्टकेतु के साथ चेदि, काशि और करूष एवं प्रभद्रकदेशीय योद्धाओं के साथ सेना के साथ धर्मराज युधिष्ठिर भी वहां ही थे। उनके बाद सात्यकि और द्रोपदी के पांच पुत्र थे। फिर अभिमन्यु और इरावान थे। इसके बाद युद्ध आरंभ हुआ। रथ से रथ और हाथी से हाथी भिड़ गए। कौरवों ने एकाग्रचित्त होकर ऐसा युद्ध किया की पांडव सेना के पैर उखड़ गए। पांडव सेना में भगदड़ मच गई।
पांडव सेना का ऐसा हाल देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम अगर इस तरह मोह वश धीरे-धीरे युद्ध करोगे तो अपने प्राणों से हाथ धो बैठोगे। यह सुनकर अर्जुन ने कहा केशव आप मेरा रथ पितामह के रथ के पास ले चलिए। कृष्ण रथ को हांकते हुए भीष्म के पास ले गए। अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म का धनुष काट दिया। भीष्मजी फिर नया धनुष लेकर युद्ध करने लगे। भीष्म ने अर्जुन और श्रीकृष्ण को बाणों की वर्षा करके खूब घायल किया। भगवान श्रीकृष्ण ने जब देखा कि पाण्डव सेना के सब प्रधान राजा भाग खड़े हुए हैं और अर्जुन भी युद्ध में ठंडे पढ़ रहे हैं तो तब श्रीकृष्ण ने कहा अब मैं स्वयं अपना चक्र उठाकर भीष्म और द्रोण के प्राण लूंगा और धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को मारकर पाण्डवों को प्रसन्न करूंगा। कौरवपक्ष के सभी राजाओं का वध करके मैं आज युधिष्ठिर को अजातशत्रु राजा बनाऊंगा।
इतना कहकर कृष्ण ने घोड़ों की लगाम छोड़ दी और हाथ में सुदर्शन चक्र लेकर रथ से कूद पड़े। भगवान कृष्ण बहुत वेग से भीष्म की ओर झपटे, उनके पैरों की धमक से पृथ्वी कांपने लगी। वे भीष्म की ओर बढ़े। वे हाथ में चक्र उठाए बहुत जोर से गरजे। उन्हें क्रोध में भरा देख कौरवों के संहार का विचार कर सभी प्राणी हाहाकार करने लगे। उन्हें चक्र लिए अपनी ओर आते देख भीष्म बिल्कुल नहीं घबराए। उन्होंने कृष्ण से कहा आइए-आइए मैं आपको नमस्कार करता हूं।
कृष्ण को आगे बढ़ते देख अर्जुन भी रथ से उतरकर उनके पीछे दौड़े और पास जाकर उन्होंने उनकी दोनों बांहे पकड़ ली। भगवान रोष मे भरे हुए थे, अर्जुन के पकडऩे पर भी वे रूक न सके। अर्जुन ने जैसे -तैसे उन्हें रोका और कहा केशव आप अपना क्रोध शांत कीजिए, आप ही पांडवों के सहारे हैं। अब मैं भाइयों और पुत्रों की शपथ लेकर कहता हूं कि मैं अपने काम में ढिलाई नहीं करूंगा, प्रतिज्ञा के अनुसार ही युद्ध करूंगा। तब अर्जुन की यह प्रतिज्ञा सुनकर श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए और वापस रथ पर लौट गए।
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