मुक्तक
सम्बन्ध भला वह कैसे हैं जिनमें होता आह्लाद नहीं
सम्बन्ध धैर्यता मांगते हैं आतुरता या उन्माद नहीं
भावना हृदय से पढो ‘अजय” भावना की शिक्षा कोई नही
है भाषा का अनुवाद मगर इन भावों का अनुवाद नहीं
सम्बन्ध वही अच्छे, जिनमे होता विकार उत्पाद नही
सम्बन्धों में हो सहनशक्ति, होते जल्दी बर्बाद नही
सम्बन्ध वही जो इक दूजे की व्याकुलता को समझ सके
सम्बन्धों में हो प्रेम नशा, प्रभुता का ,,अजय,, प्रमाद नही
रखे जो हौंसला माझी समंदर हार जाता है
उठाता ग्वाल गोवर्धन पुरंदर हार जाता है
गवाही वक्त देता है लडे़ शिद्दत से जो पोरस
जगत को जीतने वाला सिकंदर हार जाता है
करुं अर्चना यही प्रभू से सदा प्रेम अनुबंध रहे
प्रीत वचन ही हों अधरों पर ह्रदय प्रेम सम्बंध रहे
प्रेमधुरी पर टिकी ज़िंदगी जुडे़ सदा तटबंध रहे
मन के तार जुडे़ आपस में क्यों उन पर प्रतिबंध रहे
आचार्य डा.अजय दीक्षित “अजय”
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