Watan Ro raha hai – Hindi Poem | वतन रो रहा है – हिंदी कविता
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भारतीय सभ्यता का पतन हो रहा है ।
पतन देख करके ये वतन रो रहा है ।।
–1–
हवा चल गयी कुछ यहां पे दहेजी ।
जल गयी दुल्हन कल थी जो बेटी ।।
घर-घर में लंका दहन हो रहा है ।
दहन देख कर ये वतन रो रहा है ।।
–2–
सफल है वही राजनीति में नेता ।
पांव छूकर के है जो वोट लेता ।।
ठग डाकुओं को नमन हो रहा है ।
नमन देख कर ये वतन रो रहा है ।।
–3–
मोबाइल व टी.वी.से जन्मी बेशर्मी ।
इसी से इस तन में है बढ गई गर्मी ।।
चौराहे पर सीता हरन हो रहा है ।
हरन देख कर ये वतन रो रहा है ।।
–4–
हैं अलगाव की आज ऊंची मीनारें ।
बनाई गई है दिल में ऊंची दिवारें ।।
विरासत की संस्कृति का हनन हो रहा है ।
हनन देख कर ये वतन रो रहा है ।।
–5–
है दोषी स्वयं आज जनता ये सारी ।
निभाते नही अपनी-अपनी जिम्मेदारी ।।
दुखी मन “अजय”का तन रो रहा है ।
पतन देख करके वतन रो रहा है ।।
डा.अजय दीक्षित “अजय”
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