Advertisements123
Log Sar Par phosphorus Hai Ugaaye – लोग सर पर फॉस्फोरस है उगाये
Advertisements123
तीलियों से जल रहे है बिन जलाये
लोग सर पर फॉस्फोरस है उगाये
माचिसों से घर, घरों में फंसे चेहरे
जिंदगी में दूर तक है धँसे चेहरे
आग इनकी कौन आखिरकार बुझाये
Advertisements123
रौशनी के साथ बींधे जा रहे है
खाक होने तक खरीदे जा रहे है
घूमते चारों तरफ बस तमतमाये
है जुलूसों में, अकेले भी खड़े है
इस तरह पीछे मशालों के पड़े है
दर्द इनके संग लपट सा गुनगुनाये
Advertisements123
यह रचना यश मालवीय द्वारा रचित पुस्तक उड़ान से पहले से ली गई है।
Advertisements123
Advertisements123
यह भी पढ़े –
Related posts:
कवि की करुण पुकार - आचार्य डॉ अजय दीक्षित "अजय"
शरीर का सार - आचार्य डा.अजय दीक्षित "अजय"
भोंर का उजाला - डॉ लोकमणि गुप्ता
कविता - बेटी जब घर आती हैं
'कोरोना का आना........गजब हो गया'- मनीष नंदवाना 'चित्रकार'
माँ की रसोई -अंजलि देवांगन (मातृ दिवस पर कविता)
विश्व रेडक्रॉस दिवस पर हिंदी कविता | World Redcross Day Poem In Hindi
पुस्तक दिवस पर काव्य रचना - कमलेश जोशी 'कमल'
मानव बस्तियां - कमलेश जोशी 'कमल'
महावीर - कमलेश जोशी 'कमल'
Advertisements123
Advertisements123
Advertisements123
Join the Discussion!