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Log Sar Par phosphorus Hai Ugaaye – लोग सर पर फॉस्फोरस है उगाये
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तीलियों से जल रहे है बिन जलाये
लोग सर पर फॉस्फोरस है उगाये
माचिसों से घर, घरों में फंसे चेहरे
जिंदगी में दूर तक है धँसे चेहरे
आग इनकी कौन आखिरकार बुझाये
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रौशनी के साथ बींधे जा रहे है
खाक होने तक खरीदे जा रहे है
घूमते चारों तरफ बस तमतमाये
है जुलूसों में, अकेले भी खड़े है
इस तरह पीछे मशालों के पड़े है
दर्द इनके संग लपट सा गुनगुनाये
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Log Sar Par phosphorus Hai Ugaaye
यह रचना यश मालवीय द्वारा रचित पुस्तक उड़ान से पहले से ली गई है।
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