Mantr Kya Hai |मंत्र शब्द को किसी परिभाषा में नहीं ढाला जा सकता है। वैदिक ऋचाओं के हर छंद भी मंत्र कहे जाते हैं। देवी-देवताओं की स्तुतियों व यज्ञ हवन में निश्चित किए गए शब्द समूहों को भी मंत्र कहा जाता है। तंत्र शास्त्र में मंत्र का अर्थ भिन्न है। तंत्र शास्त्रानुसार मंत्र उसे कहते हैं जो शब्द पद या पद समूह जिस देवता या शक्ति को प्रकट करता है वह उस देवता या शक्ति का मंत्र कहा जाता है।
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विद्वानों द्वारा मंत्र की परिभाषाएं इस तरह भी की गई हैं।
1. धर्म, कर्म और मोक्ष पाने के लिए प्रेरणा देने वाली शक्ति को मंत्र कहते हैं।
2. देवता के सूक्ष्म शरीर को या इष्टदेव की कृपा को मंत्र कहते हैं।
3. दिव्य-शक्तियों की कृपा को पाने में उपयोगी शब्द शक्ति को मंत्र कहते हैं।
4. अदृश्य गुप्त शक्ति को जागृत करके अपने अनुकूल बनाने वाली विधा को मंत्र कहते हैं।
5. इस तरह गुप्त शक्ति को विकसित करने वाली विधा को मंत्र कहते हैं।
मंत्र साधना के लिए समय
मंत्र साधना के लिए निम्नलिखित विशेष समय, महीने, तिथि और नक्षत्र का भी मंत्र जप में बहुत महत्व है।
1.शुभ महीने -साधना के लिए कार्तिक, अश्विन, वैशाख माघ, मार्गशीर्ष, फाल्गुन व श्रावण मास उत्तम होता है।
2. शुभ तिथि- पूर्णिमा, पंचमी, द्वितीया, सप्तमी, दशमी व त्रयोदशी तिथि उत्तम होती है।
3. शुभ पक्ष-शुक्ल पक्ष में शुभ चंद्र व शुभ दिन देखकर मंत्र जप करना चाहिए।
4.शुभ दिन -रविवार, शुक्रवार, बुधवार व गुरुवार मंत्र साधना के लिए उत्तम होते हैं।
5.शुभ नक्षत्र -पुनर्वसु, हस्त, तीनों उत्तरा, श्रवण रेवती, अनुराधा व रोहिणी नक्षत्र मंत्र सिद्धि के लिए अच्छे माने गए हैं।
मंत्र साधना में साधन आसन और माला
आसन -मंत्र जप के लिए कुशासन, मृग चर्म, बाघंबर और ऊन का बना आसन अच्छा हाेता है।
माला -रुद्राक्ष, जयंतीफल, तुलसी, स्फटिक, हाथ दांत, लाल मूंगा चंदन व कमल की माला से जप सिद्ध होते हैं। रुद्राक्ष की माला सबसे अच्छी मानी गई है।
मंत्रों की शक्ति
मंत्रों की शक्ति तथा इनका महत्व ज्योतिष में वर्णित सभी रत्नों एवम उपायों से अधिक है। मंत्रों के माध्यम से ऐसे बहुत से दोष बहुत हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं जो रत्नों तथा अन्य उपायों के द्वारा ठीक नहीं किए जा सकते।
ज्योतिष में रत्नों का प्रयोग किसी कुंडली में केवल शुभ असर देने वाले ग्रहों को बल प्रदान करने के लिए किया जा सकता है तथा अशुभ असर देने वाले ग्रहों के रत्न धारण करना वर्जित माना जाता है क्योंकि किसी ग्रह विशेष का रत्न धारण करने से केवल उस ग्रह की ताकत बढ़ती है, उसका स्वभाव नहीं बदलता। इसलिए जहां एक ओर अच्छे असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनसे होने वाले लाभ भी बढ़ जाते हैं, वहीं दूसरी ओर बुरा असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनके द्वारा की जाने वाली हानि की मात्रा भी बढ़ जाती है। इसलिए किसी कुंडली में बुरा असर देने वाले ग्रहों के लिए रत्न धारण नहीं करने चाहिएं।
वहीं दूसरी ओर किसी ग्रह विशेष का मंत्र उस ग्रह की ताकत बढ़ाने के साथ-साथ उसका किसी कुंडली में बुरा स्वभाव बदलने में भी पूरी तरह से सक्षम होता है। इसलिए मंत्रों का प्रयोग किसी कुंडली में अच्छा तथा बुरा असर देने वाले दोनो ही तरह के ग्रहों के लिए किया जा सकता है। साधारण हालात में नवग्रहों के मूल मंत्र तथा विशेष हालात में एवम विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए नवग्रहों के बीज मंत्रों तथा वेद मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।
मंत्र जाप
मंत्र जाप के द्वारा सर्वोत्तम फल प्राप्ति के लिए मंत्रों का जाप नियमित रूप से तथा अनुशासनपूर्वक करना चाहिए। वेद मंत्रों का जाप केवल उन्हीं लोगों को करना चाहिए जो पूर्ण शुद्धता एवम स्वच्छता का पालन कर सकते हैं। किसी भी मंत्र का जाप प्रतिदिन कम से कम 108 बार जरूर करना चाहिए। सबसे पहले आप को यह जान लेना चाहिए कि आपकी कुंडली के अनुसार आपको कौन से ग्रह के मंत्र का जाप करने से सबसे अधिक लाभ हो सकता है तथा उसी ग्रह के मंत्र से आपको जाप शुरू करना चाहिए।
विशेष
मंत्र जपने और ईश्वर का नाम जपने में भिन्नता है । मंत्रजप करने के लिए अनेक नियमों का पालन करना पडता है; परंतु नामजप करने के लिए इसकी आवश्यकता नहीं होती । उदाहरणार्थ मंत्रजप सात्त्विक वातावरण में ही करना आवश्यक है; परंतु ईश्वर का नामजप कहीं भी और किसी भी समय किया जा सकता है ।
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