Shri Ram Sumiran – कमलेश जोशी ‘कमल’ राजसमंद द्वारा रचित रचना ‘श्रीराम सुमिरण’
श्रीराम सुमिरण (Shri Ram Sumiran)
जय अवधनाथ दशरथ नन्दन
हम सब करते तेरा वंदन
दशरथ की आंखो के तारे
कौशल्या के राज दुलारे
भरत लखन शत्रुघ्न सब भाई
देखि देखि सब हि मुसकाई
गुरुकुल जाय के शिक्षा लिन्ही
पाय आशीष सेवा किन्ही
विश्वामित्र संग वन जाये
ताड़का मारीच दोउ मारे
मिथिला जाय शिव धनु तोड़ा
माँ सिया संग नाता जोड़ा
भयि कुटिल मंथरा औ रानी
राम के वन गमन की ठानी
दशरथ वचन दे भये व्याकुल
नयन राम दर्शन को आकुल
सिय लखन संग वन को जाये
मित्र निषाद देखि सुख पाये
केवट लिए चरणहि पखारन
जनम जनम का सुखबहु पावन
चित्रकुट कुटी एक बनाई
संग सिया प्रिय लखन भाई
भरत माता सबहि तब आए
पितु समाचार सुनि दुख पाए
रूप धरि सूर्पनखा तह आई
बहू भांति लखन को रिझाई
कटि नासिका राक्षसी भागी
बैर भाव रावण मन जागी
जाय हरण सीता तब किन्ही
राम लखन को दुख तब दिन्ही
खोज हि सिया राम अकुलाए
चखि चखि बेर शबरि के खाए
निरखि राम हनुमत मुसकाने
चरण वंदना करने लागे
सुग्रीव जाय दर्शन किन्ही
जीवन पीर दूर कर लिन्ही
लंका जाय दशानन मारे
जन जन की पीड़ा को तारे
पाय सिया दुख सब जाए
जीव जगत सब ही हरषाए
लौटे पुनहि अवध के राजा
दीप जले बहु बाजे बाजा
जगमग जगमग अयोध्या सारी
देखि राम सुख पाई भारी
राम नाम सुमिरन करते जन
पाते सुख सब ही जनम जनम
क्लेश द्वेष सबहि मिट जावे
राम नाम गुण जोई गावे
क़हत कमल सब सुनलो ज्ञानी
राम नाम बिन सुख ना आनी
स्वरचित
कमलेश जोशी ‘कमल’
राजसमंद
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