मन हंसता है उर रोता है | Man Hasta Hai Ur Rota Hai
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सम्मान रुपी बिष से जब कोई अपनों की इज्जत धोता है ।
मन हंसता है उर रोता है ।।
विग्रह की सत्य भूमी पर ,जब द्वेष बीज कोई बोता है ।
मन हंसता है उर रोता है ।।
बिना परिश्रम उन्नति के, जब स्वप्न कोई सजाता है ।
मन हंसता है उर रोता है ।।
विश्वास का बिष दे करके कोई बिष लगे जो शूल चुभोता है ।
मन हंसता है उर रोता है ।।
जब कौवे को कह दे कोई, ये कौआ नही ये तोता है ।
मन हंसता है उर रोता है ।।
गुरु को और गुरु बानी को जब कोई कहे ये श्रोता है ।
मन हंसता है उर रोता है ।
दया की सरिता में कोई जब स्वार्थ का लगाता गोता है ।
मन हंसता है उर रोता है ।।
जब बेरी के बीज को बैजंती समझ निज कर से उसे पिरोता है।
मन हंसता है उर रोता है ।।
धर्मी बनकर जब”अजय” कोई अपने निज धर्म को खोता है ।
मन हंसता है उर रोता है ।।
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आचार्य डा.अजय दीक्षित
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